रविवार, 31 मई 2020

मां धूमावती जयंती पर विशेष

माँ धूमावती सरल की पूजा-
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष अष्टमी को मां
की जयंती मनाई जाती है। इस
वर्ष 30/05/2020 को मां की
 जयंती मनाई जाएगी। पर सुहागिनों को इस पूजा से दूर रहना चाहिए। क्योंकि वैधव्य होने का डर रहता। इस लिए वे इस पूजा से दूर ही रहे। जय माई की
गृहस्थ पुरुष को माँ का यह मंत्र 'ॐ धूं धूं धूमावती स्वाहा' रुद्राक्ष की माला से जपते हुए माँ के सौम्यरूप की पूजा करनी चाहिए। इन्हीं मन्त्रों द्वारा राई में नमक मिलाकर होम करने से शत्रुनाश, नीम की पत्तियों सहित घी का होम करने से कर्ज से मुक्ति मिलजाती जाती है। काली मिर्च से होम करने से कोर्ट कचहरी के मामलों में विजय एवं कारागार से मुक्ति मिलती है। जटामांसी और कालीमिर्च से होम करने पर जन्मकुंडली के सभी अकारक, गोचर एवं मारक दशाओं के ग्रहदोष नष्ट हो जाते हैं। माँ का सर्वोत्तम भोग मीठी रोटी और घी के द्वारा होम करने से से प्राणियों के जीवन आया घोर से घोर संकट भी समाप्त हों जाता है। माँ की पूजा के लिए सफेद रंग के फूल, आक के फूल, सफेद वस्त्र, केसर, अक्षत, घी, सफेद तिल, धतूरा, आक, जौ, सुपारी दूर्वा, गंगाजल, शहद, कपूर, चन्दन, नारियल पंचमेवा आदि ही प्रयोग में लायें।

आचार्य मनोज तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही
9451280720
9005618107

श्राद्धकर्म क्यो और कब करना चाहिए कुछ विशेष जानकारी।

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🌺जय माई की🌺
श्राद्ध किसे कहते हैं?
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श्रद्धार्थमिंद श्राद्धम्।
 श्रद्धया इदं श्राद्धम्।

पितरों के उद्देश्य से विधिपूर्वक जो कर्म श्रद्धा से किया जाता है उसे
  श्राद्ध कहते हैं।

क्या करें?
शास्त्रों में मनुष्य के लिए देवऋण, ऋषिऋण और पितृऋण उतारना आवश्यक है।अतः पितृऋण 
से मुक्ति हेतु श्राद्ध करके हम मुक्ति को प्राप्त होता सकते है
  

पितृपक्ष में श्राद्ध कब करें?
पितृपक्ष में मृत व्यक्ति की जो तिथि आये, उस तिथि पर मुख्य रूप से पार्वण श्राद्ध करने का विधान है। सोलह दिनों तक पितरों को तर्पण करें और विशेष तिथि को श्राद्ध करें (जिस दिन उनका स्वर्गवास हुआ हो)। यदि किसी को पितरों के स्वर्गवास का दिन ज्ञात न हो तो वे अमावस्या को श्राद्ध करें। इस श्राद्ध को पार्वण श्राद्ध कहते हैं। पार्वण श्राद्ध का समय-
पूर्वाह्णे दैविकं श्राद्धमपराह्णेतु पार्वणम्।
एकोदिष्टं तु मध्याह्ने प्रातर्वृद्धि- निमित्तकम्॥
अत: पार्वण श्राद्ध अपराह्ण में (अर्थात् लगभग 2pm) बजे करना चाहिए।

श्राद्ध का महत्त्व:-
महर्षि जाबालि कहते हैं-
पुत्रानायुस्तथाऽऽरोग्यमैश्वर्यमतुलं तथा।
प्राप्नोति पञ्चेमान् कृत्वा श्राद्धं कामांश्च पुष्कलान्॥

अर्थात् पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पुत्र, आयु,आरोग्य,अतुल एैश्वर्य और अभिलाषित वस्तुओं की
      प्राप्ति होती है।

श्राद्ध न करने पर:-
महर्षि काण्वायिनि कहते हैं-
वृश्चिके समनुप्राप्ते पितरो दैवतै: सह।
नि:श्वस्य प्रतिगच्छन्ति शापं दत्वाबुदारुणम्॥

अर्थात् सूर्य के वृश्चिक राशि में प्रवेश करते तक 
यदि श्राद्ध न किया जाए तो पितर गृहस्थ को दारुण शाप देकर 
   पितृलोक लौट जाते है।
   

पूर्वजों के अतृप्त होने के कारण होने वाले कष्ट विवाह न होना, पति-पत्नी में अनबन, गर्भधारण न होना, मंदबुद्धि या विकलांग संतान होना, केवल कन्या ही पैदा होना, पितृदोष के कारण सन्तान  
   में समस्या आदि।

 उपर्युक्त पितृपक्ष संदेश निर्णय सिन्धु व धर्म सिन्धु के आधार पर वैदिक द्वारा शोधित है।

*श्राद्धपक्ष आने वाले हैं,पढें श्राद्ध करते समय ध्यान रखने योग्य छब्बीस बातें ?*

धर्म ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं। ऐसी मान्यता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है। 

वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है।पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है। 

इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारंभ भी माना जाता है। श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है।

श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्ड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है।

श्राद्ध से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं। मगर ये बातें श्राद्ध करने से पूर्व जान लेना बहुत जरूरी है क्योंकि कई बार विधिपूर्वक श्राद्ध न करने से पितृ श्राप भी दे देते हैं। आज हम आपको श्राद्ध से जुड़ी कुछ विशेष बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं-

1- श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए। यह ध्यान रखें कि गाय को बच्चा हुए दस दिन से अधिक हो चुके हैं। दस दिन के अंदर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए।

2- श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है। पितरों के लिए चांदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिए जाए तो वह अक्षय तृप्तिकारक होता है। पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के बर्तन भी चांदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है।
 
3- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने चाहिए, एक हाथ से लाए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं।

4- ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर एवं व्यंजनों की प्रशंसा किए बगैर करना चाहिए क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं जब तक ब्राह्मण मौन रहकर भोजन करें।
 
5- जो पितृ शस्त्र आदि से मारे गए हों उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए। इससे वे प्रसन्न होते हैं। श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए। पिंडदान पर साधारण या नीच मनुष्यों की दृष्टि पडने से वह पितरों को नहीं पहुंचता।

6- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते, श्राप देकर लौट जाते हैं। ब्राह्मण हीन श्राद्ध से मनुष्य महापापी होता है।

7- श्राद्ध में जौ, कांगनी, मटर और सरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है। तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है। वास्तव में तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं। कुशा (एक प्रकार की घास) राक्षसों से बचाते हैं।

8- दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए। वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ एवं मंदिर दूसरे की भूमि नहीं माने जाते क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं माना गया है। अत: इन स्थानों पर श्राद्ध किया जा सकता है।

9- चाहे मनुष्य देवकार्य में ब्राह्मण का चयन करते समय न सोचे, लेकिन पितृ कार्य में योग्य ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए क्योंकि श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों द्वारा ही होती है।

10- जो व्यक्ति किसी कारणवश एक ही नगर में रहनी वाली अपनी बहिन, जमाई और भानजे को श्राद्ध में भोजन नहीं कराता, उसके यहां पितर के साथ ही देवता भी अन्न ग्रहण नहीं करते।

11- श्राद्ध करते समय यदि कोई भिखारी आ जाए तो उसे आदरपूर्वक भोजन करवाना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसे समय में घर आए याचक को भगा देता है उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता और उसका फल भी नष्ट हो जाता है।

12- शुक्लपक्ष में, रात्रि में, युग्म दिनों (एक ही दिन दो तिथियों का योग)में तथा अपने जन्मदिन पर कभी श्राद्ध नहीं करना चाहिए। धर्म ग्रंथों के अनुसार सायंकाल का समय राक्षसों के लिए होता है, यह समय सभी कार्यों के लिए निंदित है। अत: शाम के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए।

13- श्राद्ध में प्रसन्न पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, विद्या, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष और स्वर्ग प्रदान करते हैं। श्राद्ध के लिए शुक्लपक्ष की अपेक्षा कृष्णपक्ष श्रेष्ठ माना गया है।

14- रात्रि को राक्षसी समय माना गया है। अत: रात में श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए। दोनों संध्याओं के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए। दिन के आठवें मुहूर्त (कुतपकाल) में पितरों के लिए दिया गया दान अक्षय होता है।

15- श्राद्ध में ये चीजें होना महत्वपूर्ण हैं- गंगाजल, दूध, शहद, दौहित्र, कुश और तिल। केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है। सोने, चांदी, कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल उपयोग की जा सकती है।

16- तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णु लोक को चले जाते हैं। तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक संतुष्ट रहते हैं।

17- रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं। आसन में लोहा किसी भी रूप में प्रयुक्त नहीं होना चाहिए।

18- चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं।

19- भविष्य पुराण के अनुसार श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार हैं-
1- नित्य, 2- नैमित्तिक, 3- काम्य, 4- वृद्धि, 5- सपिण्डन, 6- पार्वण, 7- गोष्ठी, 8- शुद्धर्थ, 9- कर्मांग, 10- दैविक, 11- यात्रार्थ, 12- पुष्टयर्थ

20- श्राद्ध के प्रमुख अंग इस प्रकार हैं-

तर्पण- इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने हेतु दिया जाता है। श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य करने का विधान है।

भोजन व पिण्ड दान- पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है। श्राद्ध करते समय चावल या जौ के पिण्ड दान भी किए जाते हैं।

वस्त्रदान- वस्त्र दान देना श्राद्ध का मुख्य लक्ष्य भी है।

दक्षिणा दान- यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती उसका फल नहीं मिलता।

21 – श्राद्ध तिथि के पूर्व ही यथाशक्ति विद्वान ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलावा दें। श्राद्ध के दिन भोजन के लिए आए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में बैठाएं।

22- पितरों की पसंद का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर आदि है। इसलिए ब्राह्मणों को ऐसे भोजन कराने का विशेष ध्यान रखें।

23- तैयार भोजन में से गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग निकालें। इसके बाद हाथ जल, अक्षत यानी चावल, चन्दन, फूल और तिल लेकर ब्राह्मणों से संकल्प लें।

24- कुत्ते और कौए के निमित्त निकाला भोजन कुत्ते और कौए को ही कराएं किंतु देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं। इसके बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं। पूरी तृप्ति से भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों के मस्तक पर तिलक लगाकर यथाशक्ति कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान कर आशीर्वाद पाएं।

25- ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करके आएं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितर लोग भी चलते हैं। ब्राह्मणों के भोजन के बाद ही अपने परिजनों, दोस्तों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं।
 
26- पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है। पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में सपिंडों ( एक ही परिवार के) को श्राद्ध करना चाहिए। एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करता है। पर श्राद्ध जरुर करना चाहिए।
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आचार्य मनोज तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही
9451280720
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भूत प्रेत से मुक्ति के दश उपाय


भूत-प्रेत और दुष्ट आत्माओं से बचने के 10 सरल उपाय :-
ज्योतिष साहित्य के मूल ग्रंथों- प्रश्नमार्ग, वृहत्पराषर, होरा सार, फलदीपिका, मानसागरी आदि में ज्योतिषीय योग हैं जो प्रेत पीड़ा, पितृ दोष आदि बाधाओं से मुक्ति का उपाय बताते हैं।
 
अथर्ववेद में भूतों और दुष्ट आत्माओं को भगाने से संबंधित अनेक उपायों का वर्णन मिलता है। यहां प्रस्तुत है प्रेतबाधा से मुक्ति के 10 सरल उपाय।
 
1. ॐ या रुद्राक्ष का अभिमंत्रित लॉकेट गले में पहने और घर के बाहर एक त्रिशूल में जड़ा ॐ का प्रतीक दरवाजे के ऊपर लगाएं। सिर पर चंदन, केसर या भभूति का तिलक लगाएं। हाथ में मौली (नाड़ा) अवश्य बांध कर रखें।
 
2. दीपावली के दिन सरसों के तेल का या शुद्ध घी का दिया जलाकर काजल बना लें। यह काजल लगाने से भूत, प्रेत, पिशाच, डाकिनी आदि से रक्षा होती है और बुरी नजर से भी रक्षा होती है।
 
3. घर में रात्रि को भोजन पश्चात सोने से पूर्व चांदी की कटोरी में देवस्थान या किसी अन्य पवित्र स्थल पर कपूर तथा लौंग जला दें। इससे आकस्मिक, दैहिक, दैविक एवं भौतिक संकटों से मुक्त मिलती है।
 
4. प्रेत बाधा दूर करने के लिए पुष्य नक्षत्र में चिड़चिटे अथवा धतूरे का पौधा जड़सहित उखाड़ कर उसे धरती में ऐसा दबाएं कि जड़ वाला भाग ऊपर रहे और पूरा पौधा धरती में समा जाएं। इस उपाय से घर में प्रेतबाधा नहीं रहती और व्यक्ति सुख-शांति का अनुभव करता है।
 
5. प्रेत बाधा निवारक हनुमत मंत्र – ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ऊँ नमो भगवते महाबल पराक्रमाय भूत-प्रेत पिशाच-शाकिनी-डाकिनी-यक्षणी-पूतना-मारी-महामारी, यक्ष राक्षस भैरव बेताल ग्रह राक्षसादिकम् क्षणेन हन हन भंजय भंजय मारय मारय शिक्षय शिक्षय महामारेश्वर रुद्रावतार हुं फट् स्वाहा। 
 
इस हनुमान मंत्र का पांच बार जाप करने से भूत कभी भी निकट नहीं आ सकते।
 
6. अशोक वृक्ष के सात पत्ते मंदिर में रख कर पूजा करें। उनके सूखने पर नए पत्ते रखें और पुराने पत्ते पीपल के पेड़ के नीचे रख दें। यह क्रिया नियमित रूप से करें, आपका घर भूत-प्रेत बाधा, नजर दोष आदि से मुक्त रहेगा।
 
7. गणेश भगवान को एक पूरी सुपारी रोज चढ़ाएं और एक कटोरी चावल दान करें। यह क्रिया एक वर्ष तक करें, नजर दोष व भूत-प्रेत बाधा आदि के कारण बाधित सभी कार्य पूरे होंगे।
 
8. मां काली के लिए उनके नाम से प्रतिदिन अच्छी तरह से पवित्र की हुई दो अगरबत्ती सुबह और दो दिन ढलने से पूर्व लगाएं और उनसे घर और शरीर की रक्षा करने की प्रार्थना करें।
 
9. हनुमान चालीसा और गजेंद्र मोक्ष का पाठ करें और हनुमान मंदिर में हनुमान जी का श्रृंगार करें व चोला चढ़ाएं।
 
10. मंगलवार या शनिवार के दिन बजरंग बाण का पाठ शुरू करें। यह डर और भय को भगाने का सबसे अच्छा उपाय है। 
 
इस तरह यह कुछ सरल और प्रभावशाली टोटके हैं, जिनका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता। ध्यान रहें, नजर दोष, भूत-प्रेत बाधा आदि से मुक्ति हेतु उपाय ही करने चाहिए टोना या टोटके नहीं।
 
सावधानी : सदा हनुमानजी का स्मरण करें। चतुर्थी, तेरस, चौदस और अमावस्या को पवित्रता का पालन करें। शराब न पीएं और न ही मांस का सेवन करें।
आचार्य मनोज तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही
9005618107

धनहीन के कुछ कारण

*समुद्र शास्त्र:- नाक से भी जान सकते हैं व्यक्ति के स्वभाव और भविष्य के बारे में खास बाते
✍🏻सामुद्रिक शास्त्र ज्योतिष से संबंधित प्रमुख ग्रंथ है। इस ग्रंथ से शरीर के विभिन्न अंगों के माध्यम से व्यक्ति के स्वभाव और भविष्य के बारे में जाना जा सकता है। *सामुद्रिक शास्त्र में नाक से* किसी व्यक्ति के स्वभाव का पता करने के तरीके बताए गए हैं। इससे हम यह जान सकते हैं कि कौन व्यक्ति खुश मिजाज है, कौन गंभीर स्वभाव का है और कौन व्यक्ति जल्दी सफलता प्राप्त करते हैं- जैसे:-
*१:-सीधी नाक:-* सीधी नाक वाले व्यक्ति सीधे-साधे होते हैं। ऐसे लोग जल्दी किसी से अपने दिल की बात नहीं कहते हैं। मुश्किल समय में भी ये लोग शान्ति से काम लेते हैं। ऐसे लोगों के अंदर क्या चल रहा है यह जानना काफी मुश्किल होता है।
*२:-चपटी नाक वाले लोग:-* चपटी नाक वाले लोग कम उम्र में ही सक्सेस हासिल कर लेते हैं। कला और खेल के क्षेत्र में ऐसे लोगों की काफी रुची होती है। ऐसे लोग ईमानदार होते हैं। ऐसे लोग परिवार का नाम रौशन करते हैं।
*३:-तोते जैसी नाक:-* तोते जैसी या तीखी नाक वाले लोग स्वभाव से तेज होते हैं। ऐसे लोग दिल के साफ होते हैं और सक्सेस के लिए काफी मेहनत करते हैं। ऐसे लोग समाज की ज्यादा चिंता नहीं करते, उनका जो मन होता है वही करते हैं।
*४:-उठी हुई नाक:-* उठी हुई नाक वाले ज्यादातर लोग फूर्तीले और जोशीले होते हैं। ऐसे लोग किसी भी व्यक्ति पर जल्दी भरोसा नहीं करते हैं। ये लोग दिल के बहुत साफ होते हैं।
*५:-छोटी नाक:-* छोटी नाक वाले लोग अपनी लाइफमें मस्त रहते हैं। अगर इनको कोई परेशान न करे तो ये हमेशा खुश रहते हैं। लेकिन इनको कोई ज्यादा परेशान करता है तो ये किसी भी सीमा तक चले जाते हैं।
*६:-मोटी नाक:-* मोटी नाक वाले लोग शब्दों के जाल बिछाने में काफी माहिर होते हैं। ये लोग समाज में काफी सम्मान प्राप्त करते हैं।

ऐसे_लोग_कभी_धनवान_नहीं_हो_सकते 
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🚩🌺 जय माई की 🌺🚩

राम चर‌ित मानस के अरण्य कांड में एक प्रसंग है ज‌िसमें रावण की बहन सूर्पणखा राम और लक्ष्मण से व‌िवाह करने की इच्छा प्रगट करती है। उस समय राम और लक्ष्मण जी ने सूर्पणखा को बताया क‌ि वह उनकी इच्छा पूरी नहीं कर सकते साथ ही बातों यह भी बताया क‌ि कुछ पुरुषों की इच्छाएं कभी पूरी नहीं हो सकती हैं। और इन इच्छाओं का संबंध धन से है।

➡लक्ष्मण जी के माध्यम से रामचर‌ित मानस में बताया गया है क‌ि 5 लोग जीवन में कभी धनवान नहीं हो सकते।
➡ज‌िन लोगों में क‌िसी चीज का नशा करने की आदत है वह कभी धनी नहीं हो सकते। ऐसे व्यक्त‌ि के पास अगर पुरखों का खजाना भी हो तो उन्हें भी खाली कर देते हैं।
➡पराए स्‍त्री पुरुष से संबंध रखने वाले व्यक्त‌ि कभी धनवान और सुखी नहीं हो सकते हैं। इनका धन व्यभ‌‌िचार में नष्‍ट हो जाता है और इन्हें मृत्यु के बाद सद्गत‌ि भी नहीं म‌िलती।
➡जो धन के पीछे ज्यादा भागता है धन और यश दोनों उससे उतनी ही दूर होते जाते हैं। लोभी व्यक्त‌ि न तो अपनी मर्यादा का ध्यान रख पाता है और न दूसरे के सम्मान का इसल‌िए यह आदर रूपी धन से भी वंच‌ित रह जाते हैं।
➡अभ‌िमानी व्यक्त‌ि के पास धन अध‌िक समय तक नहीं ठहरता है क्योंक‌ि इनका अहंकार या तो इन्हें ले डूबता है या इनके धन को।
 ➡नौकरी करने वाले लोग कभी धनी हो सकते हैं। इनके पास भले ही अच्छा बैंक बैलेंस हो जाए लेक‌िन कभी सुखी नहीं रह सकता है क्योंक‌ि इनका सुख इनके स्वामी की खुशी पर न‌िर्भर करता है।

आपका 
आचार्य मनोज तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही
9005618107
9451280720

नाक से भी भविष्य जाना जा सकता है

*समुद्र शास्त्र:- नाक से भी जान सकते हैं व्यक्ति के स्वभाव और भविष्य के बारे में खास बाते
✍🏻सामुद्रिक शास्त्र ज्योतिष से संबंधित प्रमुख ग्रंथ है। इस ग्रंथ से शरीर के विभिन्न अंगों के माध्यम से व्यक्ति के स्वभाव और भविष्य के बारे में जाना जा सकता है। *सामुद्रिक शास्त्र में नाक से* किसी व्यक्ति के स्वभाव का पता करने के तरीके बताए गए हैं। इससे हम यह जान सकते हैं कि कौन व्यक्ति खुश मिजाज है, कौन गंभीर स्वभाव का है और कौन व्यक्ति जल्दी सफलता प्राप्त करते हैं- जैसे:-
*१:-सीधी नाक:-* सीधी नाक वाले व्यक्ति सीधे-साधे होते हैं। ऐसे लोग जल्दी किसी से अपने दिल की बात नहीं कहते हैं। मुश्किल समय में भी ये लोग शान्ति से काम लेते हैं। ऐसे लोगों के अंदर क्या चल रहा है यह जानना काफी मुश्किल होता है।
*२:-चपटी नाक वाले लोग:-* चपटी नाक वाले लोग कम उम्र में ही सक्सेस हासिल कर लेते हैं। कला और खेल के क्षेत्र में ऐसे लोगों की काफी रुची होती है। ऐसे लोग ईमानदार होते हैं। ऐसे लोग परिवार का नाम रौशन करते हैं।
*३:-तोते जैसी नाक:-* तोते जैसी या तीखी नाक वाले लोग स्वभाव से तेज होते हैं। ऐसे लोग दिल के साफ होते हैं और सक्सेस के लिए काफी मेहनत करते हैं। ऐसे लोग समाज की ज्यादा चिंता नहीं करते, उनका जो मन होता है वही करते हैं।
*४:-उठी हुई नाक:-* उठी हुई नाक वाले ज्यादातर लोग फूर्तीले और जोशीले होते हैं। ऐसे लोग किसी भी व्यक्ति पर जल्दी भरोसा नहीं करते हैं। ये लोग दिल के बहुत साफ होते हैं।
*५:-छोटी नाक:-* छोटी नाक वाले लोग अपनी लाइफमें मस्त रहते हैं। अगर इनको कोई परेशान न करे तो ये हमेशा खुश रहते हैं। लेकिन इनको कोई ज्यादा परेशान करता है तो ये किसी भी सीमा तक चले जाते हैं।
*६:-मोटी नाक:-* मोटी नाक वाले लोग शब्दों के जाल बिछाने में काफी माहिर होते हैं। ये लोग समाज में काफी सम्मान प्राप्त करते हैं। किसी प्रकार की समस्या है तो सम्पर्क करें।
आचार्य मनोज तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही
9005618107

प्रेत दोष किसको होता है

🔸बचपन से हमे सुनने में आता है कि उसके ऊपर भूत आ गया है या उसको प्रेत ने पकड़ लिया है जिसके कारण उसके घर वाले बहुत परेशान हैं. 

🔸उसे संभाल ही नहीं पा रहे हैं. 

🔸तान्त्रिक, मौलवी या ओझा के पास जाकर भी कुछ नहीं हुआ है. 

🔸समझ नहीं आता है क्या करें

🔸ज्योतिष द्वारा कैसे जाने की भूत-प्रेत बाधा है या नहीं

🔸आप अपनी या किसी की कुण्डली देखें और यदि ये योग उसमें विद्यमान हैं तो समझ लें कि जातक या जातिका भूत-प्रेत बाधा से परेशान है.

🔻क्या होते है कुंडली में भूत प्रेत बाधा के योग :

🔸यदि किसी जातक की कुण्डली के पहले भाव में चन्द्र के साथ राहु हो और पांचवे और नौवें भाव में क्रूर ग्रह स्थित हों. इस योग के होने पर जातक या जातिका पर भूत-प्रेत, पिशाच या गन्दी आत्माओं का प्रकोप शीघ्र होता है. यदि गोचर में भी यही स्थिति हो तो अवश्य ऊपरी बाधाएं तंग करती हैं.

🔸यदि किसी जातक की कुण्डली में शनि, राहु, केतु या मंगल में से कोई भी ग्रह सप्तम भाव में हो तो ऐसे लोग भी भूत-प्रेत बाधा या पिशाच या ऊपरी हवा आदि से परेशान रहते हैं.

🔸यदि किसी जातक की कुण्डली में शनि-मंगल-राहु की युति हो तो उसे भी ऊपरी बाधा, प्रेत, पिशाच या भूत बाधा तंग करती है. उक्त योगों में दशा-अर्न्तदशा में भी ये ग्रह आते हों और गोचर में भी इन योगों की उपस्थिति हो तो समझ लें कि जातक या जातिका इस कष्ट से अवश्य परेशान है.

🔸भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती है. इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि विभिन्न नामों से पुकारा जाता है. ज्योतिष के अनुसार राहु की महादशा में चंद्र की अंतर्दशा हो और चंद्र दशापति राहु से भाव 6 8या 12 में बलहीन हो, तो व्यक्ति पिशाच दोष से ग्रस्त होता है.

🔸वास्तुशास्त्र में भी उल्लेख है कि पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, ज्येष्ठा, अनुराधा, स्वाति या भरणी नक्षत्र में शनि के स्थित होने पर शनिवार को गृह-निर्माण आरंभ नहीं करना चाहिए, अन्यथा वह घर राक्षसों, भूतों और पिशाचों से ग्रस्त हो जाएगा.

किसी भी प्रकार के समस्या के निराकरण हेतु सम्पर्क करें।
आचार्य मनोज तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही
9005618107

आक बीर सिद्धि

आक वीर की सिद्धियां

आक वीर सिद्धि--यह साधना कृतिका नक्षत्र के प्रारम्भ से शुरू करके उसी दिन सिद्ध की जाती है।साधक को यह सिद्धि मात्र 21 माला जप करने से प्राप्त हो जाती है।यह एक दिन की साधना होती है।साधक को अपने माथे पर सफेद तिलक लगाना चाहिये।सफेद वस्त्र ,आसन ग्रहण करने चाहिये।आक के पेड़ के नीचे साधक शांत मन से बैठे।देशी घी का दिया जलाये,उद की धूप करे।मीठा रोट का भोग लगाय।मन्त्र जाप करे। प्रत्येक माला पर बेरी के कांटे से खरोंच लगाय आक के पेड़ पर । सम्पूर्ण कार्य होने पर शांत मन से बैठे रहे।मन्त्र जाप के समय या बाद में वीर साधक को आवाज देता है,डरे नही ,निर्भय होकर वीर से वचन ले।पवित्रीकरण,वास्तुदोष पूजन, संकल्प,सुरक्षा रेखा,गुरुमन्त्र अनिवार्य है।जब वीर सिद्ध होता है तो सभी कार्य सम्पन्न करता है। यह वीर बन्द आँखो में ही दर्शन देते है।सिद्धि के समय भयानक दृश्य दिख जाने पर साधक को डरना नही चाहिये। मन्त्र -ॐ नमो आदेश गुरु का वीर कम्बली, वीर घात करे,चेते हनुमान वीर नही तो शिव की दुहाई।।

आचार्य मनोज तिवारी

गुरुवार, 28 मई 2020

ग्रहण कब होगा 2020 में जाने

ग्रहण को लेकर भ्रमित न हो, सही जानकारी रखे और वही लोगों तक पहुँचायेंI
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साल 2020 में इन तारीखों पर अगले ग्रहण -
1. 10-11 जनवरी - माद्य (उपच्छायी) चंद्रग्रहण - भारत में हुआ पर ग्रहण की श्रेणी में नहीं आता।
2. 5 जून 2020 -  माद्य (उपच्छायी) चंद्रग्रहण - भारत में होगा, पर ग्रहण की श्रेणी में नहीं आता।
3. 21 जून 2020 - कंकण/खग्रास सूर्यग्रहण - भारत में होगा, सूतक भी मान्य
4. 5 जुलाई 2020 -  माद्य (उपच्छायी) चंद्रग्रहण - भारत में होगा, पर ग्रहण की श्रेणी में नहीं आता।  
5. 30 नवंबर 2020 -  माद्य (उपच्छायी) चंद्रग्रहण - भारत में होगा, पर ग्रहण की श्रेणी में नहीं आता।  
6. 14 दिसंबर 2020 -  खग्रास सूर्यग्रहण - भारत के बाहर होगा, भारत में मान्य नहीं है।