शनिवार, 26 दिसंबर 2020

🚩🌺पेड पौधों से बदले अपना भाग्य🌺🚩

इन पौधों की जड़ से बदल जाएगी आपकी किस्मत, जानिए कैसे...


आयुर्वेद के अलावा भारत की स्थानीय संस्कृति में कई चमत्कारिक पौधों के बारे में पढ़ने और सुनने को मिलता है। कहते हैं कि एक ऐसी जड़ी है जिसको खाने से जब तक उसका असर रहता है, तब तक व्यक्ति गायब रहता है। एक ऐसी भी जड़ी-बूटी है जिसका सेवन करने से व्यक्ति को भूत-भविष्‍य का ज्ञान हो जाता है। कुछ ऐसे भी पौधे हैं जिनके बल पर स्वर्ण बनाया जा सकता है। इसी तरह कहा जाता है कि धन देने वाला पौधा जिनके भी पास है, वे धनवान ही नहीं बन सकते बल्कि वे कई तरह की चमत्कारिक सिद्धियां भी प्राप्त कर सकते हैं।

क्या सचमुच होते हैं इस तरह के पौधे व जड़ी-बूटियां जिनको घर या आंगन में लगाने से आपके बुरे दिन समाप्त और अच्छे दिन शुरू हो सकते हैं? कई शास्त्रों में यह पढ़ने को मिलता है कि जड़ी-बूटियों के माध्यम से धन, यश, कीर्ति, सम्मान आदि सभी कुछ पाया जा सकता है। हो सकता है कि आपके आसपास ही हो इसी तरह की जड़ी बूटियां। यदि आप इन्हें घर में ले आएं तो आपको हर तरह की सुख और सुविधाएं प्राप्त हो सकती हैं।

दरअसल, हम आपको बता रहे हैं ऐसे पौधों की जड़ों के बारे में जिनके प्रयोग से आपकी किस्मत बदल सकते हैं। हालांकि यह जड़े किसी जानकार से पूछकर ही घर में लाएं। यहां जो जानकारी दी जा रही है वह भिन्न भिन्न स्रोत से एकत्रित की गई है। हालांकि इसमें कितनी सचाई है यह बताना मुश्किल है। अगले पन्ने पर जानिये इन जड़ों के बारे में...


* बहेड़ा की जड़:- पुष्य नक्षत्र में बहेड़ा वृक्ष की जड़ तथा उसका एक पत्ता लाकर पैसे रखने वाले स्थान पर रख लें। इस प्रयोग से घर में कभी भी दरिद्रता नहीं रहेगी। इसके अलावा पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में बेहड़े का पत्ता लाकर घर में रखें, घर पर ऊपरी हवाओं के प्रभाव से मुक्त रहेगा।

*मंगल्य : मंगल्य नामक जड़ी भी तांत्रिक क्रियानाशक होती है। 

 

* धतूरे की जड़:- धतूरे की जड़ के कई तां‍त्रिक प्रयोग किए जाते हैं। इसे अपने घर में स्थापित करके महाकाली का पूजन कर 'क्रीं' बीज का जाप किया जाए तो धन सबंधी समस्याओं से मुक्ति मिलती है।  

* धतूरे की जड़ : अश्लेषा नक्षत्र में धतूरे की जड़ लाकर घर में रखें, घर में सर्प नहीं आएगा और आएगा भी तो कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा।

* काले धतूरे की जड़:- इसका पौधा सामान्य धतूरे जैसा ही होता है, हां इसके फूल अवश्य सफेद की जगह गहरे बैंगनी रंग के होते हैं तथा पत्तियों में भी कालापन होता है। इसकी जड़ को रविवार, मंगलवार या किसी भी शुभ नक्षत्र में घर में लाकर रखने से घर में ऊपरी हवा का असर नहीं होता, सुख -चैन बना रहता है तथा धन की वृद्धि होती है।


* मदार की जड़:- रविपुष्प नक्षत्र में लाई गई मदार की जड़ को दाहिने हाथ में धारण करने से आर्थिक समृधि में वृद्धि होती हैं।

* मदार की जड़:- रविपुष्प में उसकी मदार की जड़ को बंध्या स्त्री भी कमर में बंधे तो संतान होगी।

* मदार की जड़:- कोर्ट कचहरी के मामलों में विजय हेतु आर्द्रा नक्षत्र में आक की जड़ लाकर तावीज की तरह गले में बांधें।

* हत्था जोड़ी:- हत्था जोड़ी का मुकदमा, शत्रु संघर्ष, दरिद्रता आदि के निवारण में इसका प्रयोग किया जाता है। तांत्रिक विधि में इसके वशीकरण के उपयोग किए जाते हैं। सिद्ध करने के बाद इसे लाल रंग के कपड़े में बांधकर घर में किसी सुरक्षित स्थान में अथवा तिजोरी में रख दिया जाता है। इससे आय में वृद्घि होती है और सभी तरह के संकटों से मुक्ति मिलती है।

 

* बेला की जड़:-विवाह की समस्या दूर करने के लिए बेला के फूलों का प्रयोग किया जाता है। इसकी एक और जाति है जिसको मोगरा या मोतिया कहते हैं। बेला के फूल सफेद रंग के होते हैं। मोतिया के फूल मोती के समान गोल होते हैं। महिला को गुरु की जड़ और पुरुष को शुक्र की जड़ अपने पास रखनी चाहिए।

 

* चमेली की जड़:- अनुराधा नक्षत्र में चमेली की जड़ गले में बांधें, शत्रु भी मित्र हो जाएंगे। विष्णुकांता का पौधा भी शत्रुनाशक होता है।

* चंपा की जड़:- हस्त नक्षत्र में चंपा की जड़ लाकर बच्चे के गले में बांधें। इस उपाय से बच्चे की प्रेत बाधा तथा नजर दोष से रक्षा होगी।

* शंखपुष्पी की जड़:- शंखपुष्पी की जड़ रवि-पुष्य नक्षत्र में लाकर इसे चांदी की डिब्बी में रख कर घर की तिरोरी में रख लें। यह धन और समृद्धि दायक है।

* तुलसी की जड़:- पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में तुलसी की जड़ लाकर मस्तिष्क पर धारण करें। इससे अग्निभय से मुक्ति मिलेगी।

* दूधी की जड़:- सुख की प्राप्ति के लिए पुनर्वसु नक्षत्र में दूधी की जड़ लाकर शरीर में लगाएं।

* नीबू की जड़:- उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में नीबू की जड़ लाकर उसे गाय के दूध में मिलाकर निःसंतान स्त्री को पिलाएं। इस प्रयोग से उसे पुत्र की प्राप्ति होगी।

* काले एरंड की जड़:- श्रवण नक्षत्र में एरंड की जड़ लाकर निःसंतान स्त्री के गले में बांधें। इस प्रयोग से उसे संतान की प्राप्ति होगी।

* लटजीरा:- लटजीरा की जड़ को जलाकर भस्म बना लें। उसे दूध  के साथ पीने से संतानोत्पति की क्षमता आ जाती हैं। 


* अपामार्ग के प्रयोग : अपामार्ग बाजीकरण के काम में आती है। इसके भी कई प्रयोग हैं। एक प्रयोग यह है कि अश्विनी नक्षत्र में अपामार्ग की जड़ लाकर इसे तावीज में रखकर किसी सभा में जाएं, सभा के लोग वशीभूत होंगे।

* संखाहुली की जड़ : भरणी नक्षत्र में संखाहुली की जड़ लाकर ताबीज में जड़ दे और इसे गले में पहनें तो विपरीत लिंग वाले प्राणी आ

पसे आकर्षित होने लगेंगे।

 

*उटकटारी:- यदि आप राजनीति के क्षेत्र में तरक्की करना चाहते हैं तो यह जड़ी राजयोग दाता है। इस पौधे को बहुत से लोगों ने देखा होगा। इसके प्रभाव से व्यक्ति के भाग्य में वृद्धि होती है। लेकिन इस पौधे को विधिपूर्वक लाकर पूजा करना होती है।

 

*रक्तगुंजा की जड़:- रक्तगुंजा को लगभग सभी लोग जानते होंगे। इसे रत्ती भी कहते हैं क्योंकि इसका वजन एक रत्ती के बराबर होता है और किसी समय इससे सोने की तौल की जाती थी। इस पौधे की जड़ रवि पुष्य के दिन, किसी भी शुक्रवार को अथवा पूर्णिमा के दिन निर्मल भाव से धूप-दीप से पूजन कर उखाड़ें और घर में लाकर गाय के दूध से धो कर रख दें। इस जड़ का एक भाग अपने पास रखने से सारे कार्य सिद्ध होते हैं। मान-सम्मान में वृद्धि होती है।

 

सुदर्शन की जड़:-

करे सौदर्शनं बध्वा राजप्रियो भवेत्।

सिंही मूले हरेत्पुष्ये कटि बध्वा नृपप्रिय:।

हाथ में सुदर्शन की जड़ बांधें। तो राजा प्रिय होता है अथवा कांकरासिंही की जड़ पुष्य नक्षत्र में लाकर कमर में बाँधें तो राजा (मंत्री, अधिकारी) वश में होता है अथवा राजा का प्रिय हो जाता है।


सिद्धि देने वाली जड़ी-बूटी : गुलतुरा (दिव्यता के लिए), तापसद्रुम (भूतादि ग्रह निवारक), शल (दरिद्रता नाशक), भोजपत्र (ग्रह बाधाएं निवारक), विष्णुकांता (शस्त्रु नाशक), मंगल्य (तांत्रिक क्रिया नाशक), गुल्बास (दिव्यता प्रदानकर्ता), जिवक (ऐश्वर्यदायिनी), गोरोचन (वशीकरण), गुग्गल (चामंडु सिद्धि), अगस्त (पितृदोष नाशक), अपमार्ग (बाजीकरण)।

बांदा (चुम्बकीय शक्ति प्रदाता), श्‍वेत और काली गुंजा (भूत पिशाच नाशक), उटकटारी (राजयोग दाता), मयूर शिका (दुष्टात्मा नाशक) और काली हल्दी (तांत्रिक प्रयोग हेतु) आदि ऐसी अनेक जड़ी-बूटियां हैं, जो व्यक्ति के सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन को साधने में महत्वपूर्ण मानी गई हैं।


आचार्य मनोज तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही
9005618107

रविवार, 22 नवंबर 2020

लक्ष्मी जी का निवास स्थान

दरिद्रा कहां रहती हैं लक्ष्मी जी व उनकी बड़ी बहन दरिद्रा की कथा ।

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वां निर्णुद मे गृहात्।।(श्रीसूक्त ८)

लक्ष्मी की ज्येष्ठ बहिन अलक्ष्मी (दरिद्रता की अधिष्ठात्री देवी) का, जो क्षुधा और पिपासा से मलिन–क्षीणकाय रहती हैं, मैं नाश चाहता हूँ। देवि! मेरे घर से सब प्रकार के दारिद्र्य और अमंगल को दूर करो।

जगत्पति भगवान विष्णु ने जगत को दो प्रकार का बनाया है। भगवान विष्णु ने ब्राह्मणों, वेदों, सनातन वैदिक धर्म, श्री तथा पद्मा लक्ष्मी की उत्पत्ति करके एक भाग किया और अशुभ ज्येष्ठा अलक्ष्मी, वेद विरोधी अधम मनुष्यों तथा अधर्म का निर्माण करके दूसरा भाग बनाया।

अलक्ष्मी (ज्येष्ठा, दरिद्रा) तथा लक्ष्मी का प्रादुर्भाव

समस्त देवताओं व राक्षसों ने मन्दराचल पर्वत को मथानी, कच्छप को आधार और शेषनाग को मथानी की रस्सी बनाकर समुद्रमन्थन किया। उसके परिणामस्वरूप क्षीरसागर से सबसे पहले भयंकर ज्वालाओं से युक्त कालकूट विष निकला जिसके प्रभाव से तीनों लोक जलने लगे। भगवान विष्णु ने लोककल्याण के लिए शिव जी से प्रार्थना की और शिव जी ने हलाहल विष को कण्ठ में धारण कर लिया। पुन: समुद्र-मंथन होने पर कामधेनु, उच्चै:श्रवा नामक अश्व, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ नामक पद्मरागमणि, कल्पवृक्ष, व अप्सराएं प्रकट हुईं। फिर लक्ष्मी जी प्रकट हुई। उसके बाद वारुणी देवी (मदिरा), चन्द्रमा, पारिजात, पांचजन्य शंख, तदनन्तर समुद्र-मंथन से हाथ में अमृत का कलश लिए धन्वतरि प्रकट हुए।

श्री लिंग महापुराण के अनुसार समुद्र मंथन में महाभयंकर विष निकलने के बाद ज्येष्ठा अशुभ लक्ष्मी उत्पन्न हुईं फिर विष्णुपत्नी पद्मा लक्ष्मी प्रकट हुईं। लक्ष्मी जी से पहले प्रादुर्भूत होने के कारण अलक्ष्मी ज्येष्ठा कही गयीं हैं।

अलक्ष्मी (दरिद्रा, ज्येष्ठा देवी)

ततो ज्येष्ठा समुत्पन्ना काषायाम्बरधारिणी।
पिंगकेशा रक्तनेत्रा कूष्माण्डसदृशस्तनी।।
अतिवृद्धा दन्तहीना ललज्जिह्वा घटोदरी।
यां दृष्ट्वैव च लोकोऽयं समुद्विग्न: प्रजायते।।

समुद्रमंथन से काषायवस्त्रधारिणी, पिंगल केशवाली, लाल नेत्रों वाली, कूष्माण्ड के समान स्तनवाली, अत्यन्त बूढ़ी, दन्तहीन तथा चंचल जिह्वा को बाहर निकाले हुए, घट के समान पेट वाली एक ऐसी ज्येष्ठा नाम वाली देवी उत्पन्न हुईं, जिन्हें देखकर सारा संसार घबरा गया।

क्षीरोदतनया, पद्मा लक्ष्मी

या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी।
गम्भीरावर्तनाभिस्तनभरनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया।।
या लक्ष्मीर्दिव्यरूपैर्मणिगणखचितै: स्नापिता हेमकुम्भै:।
सा नित्यं पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमांगल्ययुक्ता।।

उसके बाद तिरछे नेत्रों वाली, सुन्दरता की खान, पतली कमर वाली, सुवर्ण के समान रंग वाली, क्षीरसमुद्र के समान श्वेत साड़ी पहने हुए तथा दोनों हाथों में कमल की माला लिए, खिले हुए कमल के आसन पर विराजमान, भगवान की नित्य शक्ति ‘क्षीरोदतनया’ लक्ष्मी उत्पन्न हुईं। उनके सौन्दर्य, औदार्य, यौवन, रूप-रंग और महिमा देखकर देवता और दैत्य दोनों ही मोहित हो गए।

नम: कमलवासिन्यै नारायण्यै नमो नम:।
कृष्णप्रियायै सततं महालक्ष्म्यै नमो नम:।।
पद्मपत्रेक्षणायै च पद्मास्यायै नमो नम:।
पद्मासनायै पद्मिन्यै वैष्णव्यै च नमो नम:।।

लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु के साथ अपने विवाह से पहले कहा कि बड़ी बहन का विवाह हुए बिना छोटी बहन का विवाह शास्त्रसम्मत नहीं है। तब भगवान विष्णु ने दु:सह ऋषि को समझा-बुझाकर ज्येष्ठा से विवाह करने के लिए मना लिया। कार्तिकमास की द्वादशी तिथि को पिता समुद्र ने दरिद्रा देवी का कन्यादान कर दिया। विवाह के बाद दु:सह ऋषि जब दरिद्रा को लेकर अपने आश्रम पर आए तो उनके आश्रम में वेदमन्त्र गुंजायमान हो रहे थे। वहां से ज्येष्ठा दोनों कान बंद कर भागने लगी। यह देखकर दु:सह मुनि उद्विग्न हो गये क्योंकि उन दिनों सब जगह धर्म की चर्चा और पुण्यकार्य हुआ करते थे। सब जगह वेदमन्त्रों और भगवान के गुणगान से बचकर भागते-भागते दरिद्रा थक गई। तब दरिद्रा ने मुनि से कहा–’जहां वेदध्वनि, अतिथि-सत्कार, यज्ञ-दान, भस्म लगाए लोग आदि हों, वहां मेरा निवास नहीं हो सकता। अत: आप मुझे किसी ऐसे स्थान पर ले चलिए जहां इन कार्यों के विपरीत कार्य होता हो।’

दु:सह मुनि उसे निर्जन वन में ले गए। वन में दु:सह मुनि को मार्कण्डेय ऋषि मिले। दु:सह मुनि ने मार्कण्डेय ऋषि से पूछा कि ‘इस भार्या के साथ मैं कहां रहूं और कहां न रहूं?’

दरिद्रा के प्रवेश करने के स्थान

मार्कण्डेय ऋषि ने दु:सह मुनि से कहा– जिसके यहां शिवलिंग का पूजन न होता हो तथा जिसके यहां जप आदि न होते हों बल्कि रुद्रभक्ति की निन्दा होती हो, वहीं पर तुम निर्भय होकर घुस जाना।

लिंगार्चनं यस्य नास्ति यस्य नास्ति जपादिकम्।
रुद्रभक्तिर्विनिन्दा च तत्रैव विश निर्भय:।।

जहां पति-पत्नी परस्पर झगड़ा करते हों,  घर में रात्रि के समय लोग झगड़ा करते हों,  जो लोग बच्चों को न देकर स्वयं भोज्य पदार्थ खा लेते हों,  जो स्नान नहीं करते, दांत-मुख साफ नहीं करते,  गंदे कपड़े पहनते, संध्याकाल में सोते व खाते हों,  जुआ खेलते हों,  ब्राह्मण के धन का हरण करते हों, परायी स्त्री से सम्बन्ध रखते हों,  हाथ-पैर न धोते हों, उस घर में तुम दोनों घुस जाओ।

दरिद्रा से बचने के लिए घरों में न लगाये जाने वाले वृक्ष

जिस घर में  कांटेदार, दूधवाले, पलाश के व निम्ब के वृक्ष हों,  सेम की लता हो,  दोपहरिया, तगर तथा अपराजिता के फूल का पेड़ हो, वे घर तुम दोनों के रहने के योग्य है। जिस घर में जटामांसी, बहुला, अजमोदा, केला, ताड़, तमाल, भिलाव, इमली, कदम्ब, खैर, बरगद, पीपल, आम, गूलर तथा कटहल के पेड़ हों वहां तुम दरिद्रा के साथ घुस जाया करो। जिस घर में व बगीचे में कौवों का निवास हो उसके यहां तुम पत्नी सहित निवास करो। जिस घर में प्रेतरूपा काली प्रतिमा व भैरव-मूर्ति हो, वहां तुम पत्नी सहित निवास करो।

दरिद्रा के प्रवेश न करने के स्थान

मार्कण्डेय जी ने दु:सह मुनि को  कहा– जहां नारायण व रुद्र के भक्त हों, भस्म लगाने वाले लोग हों,  भगवान का कीर्तन होता हो,  घर में भगवान की मूर्ति व गाएं हों उस घर में तुम दोनों मत घुसना।  जो लोग नित्य वेदाभ्यास में संलग्न हों,  नित्यकर्म में तत्पर हों तथा वासुदेव की पूजा में रत हों, उन्हें दूर से ही त्याग देना–

वेदाभ्यासरता नित्यं नित्यकर्मपरायणा:।
वासुदेवार्चनरता दूरतस्तान् विसर्जयेत्।।

तथा  जो लोग वैदिकों, ब्राह्मणों, गौओं, गुरुओं, अतिथियों तथा रुद्रभक्तों की नित्य पूजा करते हैं, उनके पास मत जाना।

यह कहकर मार्कण्डेय ऋषि चले गए। तब दु:सह मुनि ने दरिद्रा को एक पीपल के मूल में बिठाकर कहा कि मैं तुम्हारे लिए रसातल जाकर उपयुक्त आवास की खोज करता हूँ। दरिद्रा ने कहा–’तब तक मैं खाऊंगी क्या?’ मुनि ने कहा–’तुम्हें प्रवेश के स्थान तो मालूम हैं, वहां घुसकर खा-पी लेना। लेकिन जो स्त्री तुम्हारी पुष्प व धूप से पूजा करती हो, उसके घर में मत घुसना।’

यह कहकर मुनि बिल मार्ग से रसातल में चले गए। लेकिन बहुत खोजने पर भी उन्हें कोई स्थान नहीं मिला। कई दिनों तक पीपल के मूल में बैठी रहने से भूख-प्यास से व्याकुल होकर दरिद्रा रोने लगीं। उनके रुदन से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया। उनके रोने की आवाज को जब उनकी छोटी बहन लक्ष्मीजी ने सुना तो वे भगवान विष्णु के साथ उनसे मिलने आईं। दरिद्रा ने भगवान विष्णु से कहा–’मेरे पति रसातल में चले गए है, मैं अनाथ हो गई हूँ, मेरी जीविका का प्रबन्ध कर दीजिए।’

भगवान विष्णु ने कहा ’हे दरिद्रे! जो माता पार्वती, शंकरजी व मेरे भक्तों की निन्दा करते हैं; शंकरजी की निन्दा कर मेरी पूजा करते हैं, उनके धन पर तुम्हारा अधिकार है। तुम सदा पीपल (अश्वत्थ) वृक्ष के मूल में निवास करो। तुमसे मिलने के लिए मैं लक्ष्मी के साथ प्रत्येक शनिवार को यहां आऊंगा और उस दिन जो अश्वत्थ वृक्ष का पूजन करेगा, मैं उसके घर लक्ष्मी के साथ निवास करुंगा।’ उस दिन से दरिद्रादेवी पीपल के नीचे निवास करने लगीं। रविवार को अश्वत्थ/पीपल वृक्ष की पूजा नहीं करनी चाहिए।

देवताओं द्वारा दरिद्रा को दिए गए निवासयोग्य स्थान

पद्मपुराण के उत्तरखण्ड में बताया गया है– जिसके घर में सदा कलह होता हो, जो झूठ और कड़वे वचन बोलते हैं,  जो मलिन बुद्धि वाले हैं व संध्या के समय सोते व भोजन करते हैं, बहुत भोजन करते हैं, मद्यपान में लगे रहते हैं, बिना पैर धोये जो आचमन या भोजन करते हैं,  बालू, नमक या कोयले से दांत साफ करते हैं, जिनके घर में कपाल, हड्डी, केश व भूसी की आग जलती हो, जो छत्राक (कुकुरमुत्ता) तथा सड़ा हुआ बेल खाते हैं,  जहां गुरु, देवता, पितर और अतिथियों का पूजन तथा यज्ञदान न होता हो, ब्राह्मण, सज्जन व वृद्धों की पूजा न होती हो, जहां द्यूतक्रीडा होती हो, जो दूसरों के धन व स्त्री का अपहरण करते हों, वहां अशुभ दरिद्रे तुम सदा निवास करना।

स्वयं लक्ष्मी जी द्वारा रुक्मिणी जी को बताये गए अपने निवासस्थान

दीपावली की रात्रि में विष्णुप्रिया लक्ष्मी गृहस्थों के घरों में विचरण कर यह देखती हैं कि हमारे निवास-योग्य घर कौन-कौन से हैं? महाभारत के अनुशासनपर्व में रुक्मिणीजी के पूछने पर कि हे देवि! आप किन-किन पर कृपा करती हैं, स्वयं लक्ष्मीजी कहती हैं–आमलक फल (आंवला), गोमय, शंख, श्वेत वस्त्र, चन्द्र, सवारी, कन्या, आभूषण, यज्ञ, जल से पूर्ण मेघ, फूले हुए कमल, शरद् ऋतु के नक्षत्र, हाथी, गायों के रहने के स्थान, उत्सव मन्दिर, आसन, खिले हुए कमलों से सुशोभित तालाब, मतवाले हाथी, सांड, राजा, सिंहासन, सज्जन पुरुष, विद्वान ब्राह्मण, प्रजापालक क्षत्रिय, खेती करने वाले वैश्य तथा सेवापरायण शूद्र मेरे प्रधान निवासस्थान हैं।
लक्ष्मीजी ने देवराज इन्द्र को बताया कि–भूमि (वित्त), जल (तीर्थादि), अग्नि (यज्ञादि) एवं विद्या (ज्ञान)–ये चार स्थान मुझे प्रिय हैं। सत्य, दान, व्रत, तपस्या, पराक्रम एवं धर्म जहां वास करते हैं, वहां मेरा निवास रहता है।

जिस स्थान पर श्रीहरि, श्रीकृष्ण की चर्चा होती है,  जहां तुलसी शालिग्राम की पूजा, शिवलिंग व दुर्गा का आराधन होता है वहां पद्ममुखी लक्ष्मी सदा विराजमान रहती हैं।

‘मैं उन पुरुषों के घरों में निवास करती हूँ  जो सौभाग्यशाली, निर्भीक, सच्चरित्र, कर्तव्यपरायण, अक्रोधी, भक्त, कृतज्ञ, जितेन्द्रिय, सदाचरण में लीन व गुरुसेवा में निरत रहते हैं।

इसी प्रकार उन स्त्रियों के घर मुझे प्रिय हैं जो क्षमाशील, शीलवती, सौभाग्यवती, गुणवती, पतिपरायणा, सद्गुणसम्पन्ना होती हैं व जिन्हें देखकर सबका चित्त प्रसन्न हो जाता है, जो देवताओं, गौओं तथा ब्राह्मणों की सेवा में तत्पर रहती हैं तथा घर में धान्य के संग्रह में तत्पर रहती हैं।

लक्ष्मीजी किन लोगों के घरों को छोड़कर चली जाती हैं।

लक्ष्मीजी ने देवराज इन्द्र से कहा– जो पुरुष अकर्मण्य, नास्तिक, कृतघ्न, दुराचारी, क्रूर, चोर, गुरुजनों के दोष देखने वाला है, बात-बात में खिन्न हो उठते हैं, जो मन में दूसरा भाव रखते हैं और ऊपर से कुछ और दिखाते हैं, ऐसे मनुष्यों में मैं निवास नहीं करती। जो नखों से भूमि को कुरेदता और तृण तोड़ता है, सिर पर तेल लगाकर उसी हाथ से दूसरे अंग का स्पर्श करता है,  अपने किसी अंग को बाजे की तरह बजाता है, निरन्तर बोलता रहता है, जो भगवान के नाम का व अपनी कन्या का विक्रय करता है, जहां बालकों के देखते रहने पर उन्हें बिना दिये ही लोग भक्ष्य पदार्थ स्वयं खा जाते हैं, जिसके यहां अतिथि को भोजन नहीं कराया जाता, ब्राह्मणों से द्वेषभाव रखता है,  दिन में शयन करता है, उसके घर से लक्ष्मी रुष्ट होकर चली जाती है।

वे स्त्रियां भी लक्ष्मीजी को प्रिय नहीं हैं जो अपवित्र, चटोरी, निर्लज्ज, अधीर, झगड़ालू व अधिक सोती हैं, जो अपनी गृहस्थी के सामानों की चिन्ता नहीं करतीं, बिना सोचे-बिचारे काम करती हैं, पति के प्रतिकूल बोलती हैं और  दूसरों के घरों में घूमने-फिरनें में आसक्ति रखती हैं, घर की मान-मर्यादा को भंग करने वाली हैं, जो स्त्रियां देहशुद्धि से रहित व सभी (भक्ष्याभक्ष्य) पदार्थों को खाने के लिए तत्पर रहती हों–उन्हें मैं त्याग देती हूँ।

इन दुर्गुणों के होने पर भले ही कितनी ही लक्ष्मी-पूजा की जाए, उनके घर में लक्ष्मीजी का निवास नहीं हो सकता।

लक्ष्मीजी द्वारा असुरराज बलि और प्रह्लाद का त्याग

महाभारत के शान्तिपर्व में कथा है कि एक बार असुरराज प्रह्लाद ने एक ब्राह्मण को अपना शील प्रदान कर दिया, इस कारण उनका तेज, धर्म, सत्य, व्रत और अंत में लक्ष्मी भी साथ छोड़कर चली गयीं। प्रह्लादजी की प्रार्थना पर लक्ष्मीजी ने उन्हें दर्शन देकर कहा–’शील और चारित्र्य मुझे सबसे अधिक प्रिय हैं, इसी कारण शीलवान व्यक्ति के यहां रहना मुझे अच्छा लगता है। जिसके पास शील नहीं है, वहां मेरा नहीं, अपितु दरिद्रा का निवास होता है।’

एक बार दानवीर बलि को भी लक्ष्मीजी ने इसलिए त्याग दिया कि उन्होंने उच्छिष्टभक्षण किया था और देवताओं व ब्राह्मणों का विरोध किया था।

अतएव मानव को अपना घर ऐसा बनाना चाहिए जो लक्ष्मीजी के मनोनुकूल हो और जहां पहुंचकर वे किसी अन्य जगह जाने का विचार मन में न लावें। साथ ही लक्ष्मी प्राप्ति मनुष्य के उत्कृष्ट पुरुषार्थ पर भी निर्भर है क्योंकि कहा गया है–

‘उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी:’।

सोमवार, 10 अगस्त 2020

बजरंग बाण से सिद्ध चमत्कारी उपाय

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पवनपुत्र और श्रीराम के परम सेवक हनुमान जी से अगर कोई वरदान पाना हो तो आपको इसके लिए सबसे पहले श्रीराम का नाम लेना होगा। अगर इतने से भी काम न बने तो आप हनुमान जी को श्रीराम के नाम की सौगंध दे दीजिये। बस फिर देखिये की कैसे नहीं बनते आपके बिगड़े काम। आपके जीवन की 8 ऐसी समस्याओं की जिनका समाधान सिर्फ और सिर्फ बजरंगबाण के पास ही है। बस इसके लिए आपको अलग-अलग तरीके से बजरंगबाण का पाठ करना होगा।     
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1)― बजरंगबाण से विवाह बाधा खत्म―
कदली वन, या कदली वृक्ष के नीचे बजरंग बाण का पाठ करने से विवाह की बाधा खत्म हो जाती है। यहां तक कि तलाक जैसे कुयोग भी टलते हैं बजरंग बाण के पाठ से।
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2)― बजरंग बाण से ग्रहदोष समाप्त― अगर किसी प्रकार के ग्रहदोष से पीड़ित हों, तो प्रात:काल बजरंग बाण का पाठ, आटे के दीप में लाल बत्ती जलाकर करें। ऐसा करने से बड़े से बड़ा ग्रह दोष पल भर में टल जायेगा।
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3)― साढ़ेसाती-राहु से नुकसान की भरपाई― अगर शनि, राहु, केतु जैसे क्रूर ग्रहों की दशा, महादशा चल रही हो तो उड़द दाल के 21 या 51 बड़े एक धागे में माला बनाकर चढ़ायें। सारे बड़े प्रसाद के रुप में बांट दें। आपको तिल के तेल का दीपक जलाकर सिर्फ 3 बार बजरंगबाण का पाठ करना होगा।
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4)― बजरंगबाण से कारागार से मुक्ति― अगर किसी कारणवश जेल जाने के योग बन रहे हों, या फिर कोई संबंधी जेल में बंद हो तो उसे मुक्त कराने के लिए हनुमान जी की पूंछ पर सिंदूर से 11 टीका लगाकर 11 बार बजरंग बाण पढ़ने से कारागार योग से मुक्ति मिल जाती है। अगर आप हनुमान जी को 11 गुलाब चढ़ाते हैं या फिर चमेली के तेल में 11 लाल बत्ती के दीपक जलाते हैं तो बड़े से बड़े कोर्ट केस में भी आपको जीत मिल जायेगी।
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5)― सर्जरी और गंभीर बीमारी टाले बजरंग बाण― कई बार पेट की गंभीर बीमारी जैसे लीवर में खराबी, पेट में अल्सर या कैंसर जैसे रोग हो जाते हैं, ऐसे रोग अशुभ मंगल की वजह से होते हैं। अगर इस तरह के रोग से मुक्ति पानी हो तो हनुमान जी को 21 पान के पत्ते की माला चढ़ाते हुए 5 बार बजरंग बाण पढ़ना चाहिये। ध्यान रहे कि बजरंगबाण का पाठ राहुकाल में ही करें। पाठ के समय घी का दीप ज़रुर जलायें।
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6)― छूटी नौकरी दोबारा दिलाए बजरंग बाण― अगर नौकरी छूटने का डर हो या छूटी हुई नौकरी दोबारा पानी हो तो बजरंगबाण का पाठ रात में नक्षत्र दर्शन करने के बाद करें। इसके लिए आपको मंगलवार का व्रत भी रखना होगा। अगर आप हनुमान जी को नारियल चढ़ाने के बाद, उसे लाल कपड़े में लपेट कर घर के आग्नेय कोण रखते हैं तो मालिक स्वयं आपको नौकरी देने आ सकता है।
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7)― वास्तुदोष दूर करे बजरंगबाण― कई बार घर में वास्तुदोष के चलते कई समस्या हो जाती है। तो घर में वास्तुदोष दूर करने के लिए 3 बार बजरंगबाण का  पाठ करना चाहिए। हनुमान जी को लाल झंडा चढ़ाने के बाद उसे घर के दक्षिण दिशा में लगाने से भी वास्तुदोष से मुक्ति मिलती है। घर में सकारात्मक ऊर्जा के लिए पंचमुखी हनुमान की प्रतिमा घर के मुख्य द्वार पर लगायें।
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8)― बजरंग बाण से दवा असर करे― कई बार गंभीर बीमारी में दवा फायदा नहीं करती। दवा फायदा करे इसके लिए 2 बार बजरंग बाण का पाठ करना चाहिए। साथ ही साथ संजीवनी पर्वत की रंगोली बनाकर उस पर तुलती के 11 दल चढ़ाने से दवा धीरे धीरे असर करने  लगती है।
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रात्रि में बजरंग बाण पाठ करने की विधि―
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आज के समय में हर मनुष्य किसी न किसी परेशानी से घिरा हुआ है। हर समाधान के बाद भी उसे कोई हल नही मिलता। पूजा-पाठ करने के बाद भी अभिष्ठ फल की प्राप्ति नही हो पाती है। पूजा-पाठ की भी एक विधि होती है अगर पूजा-पाठ विधि अनुसार नही की जाती है तो उसका फल आपको मिलता तो है किन्तु बहुत प्रयत्न के बाद मिलता है।
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आज हम आपको हनुमान जी के बजरंग बाण के रात्रि में किये जाने वाले पाठ के विषय में बता रहे है। वैसे तो बजरंग बाण का नियमित रूप से पाठ आपको हर संकट से दूर रखता है। किन्तु अगर रात्रि में बजरंग बाण को इस प्रकार से सिद्ध किया जाये तो इसके चमत्कारी प्रभाव तुरंत ही आपके सामने आने लगते है। अगर आप चाहते है अपने शत्रु को परास्त करना या फिर व्यापर में उन्नति या किसी भी प्रकार के अटके हुए कार्य में पूर्णता तो रात्रि में बजरंग बाण पाठ को अवश्य करें।
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विधि इस प्रकार है―
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किसी भी मंगलवार को रात्रि का 11 से रात्रि 1 बजे तक का समय सुनिश्चित कर ले। बजरंग बाण का पाठ आपको 11 से रात्रि 1 तक करना है। सबसे पहले आप एक चौकी को पूर्व दिशा की तरफ स्थापित करें अब इस चौकी पर एक पीला कपडा बिछा दे। अब आप इस मंत्र को एक कागज पर लिख कर इसे फोल्ड करके इस चौकी पर रख दे। मंत्र इस प्रकार है―
“ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्”
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अब आप चौकी के दायें तरफ एक मिटटी के दिए में घी का दीपक जला दे। आपको इस चौकी के सामने आसन पर बैठ जाना है। इस प्रकार आपका मुख पूर्व दिशा कर तरफ हो जायेगा और दीपक आपके बाएं तरफ होगा। अब आप परमपिता परमेश्वर का ध्यान करते हुए इस प्रकार बोले― हे परमपिता परमेश्वर मै (अपना नाम बोले) गोत्र (अपना गोत्र बोले) आपकी कृपा से बजरंग बाण का यह पाठ कर रहा हु इसमें मुझे पूर्णता प्रदान करें। अब आप ठीक 11 बजते ही इस मंत्र का जाप शुरू कर दे “ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्” इस मंत्र को आप 5 मिनट तक जाप करें, ध्यान रहे मंत्र में जहाँ पर फट शब्द आता है वहा आप फट बोलने के साथ-साथ  2 उँगलियों से दुसरे हाथ की हथेली पर ताली बजानी है।
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अब आप 11 बजकर 5 मिनट से और रात्रि 1 बजे तक लगातार बजरंग बाण का पाठ करना प्रारंभ कर दे। ध्यान रहे बजरंग बाण पाठ आपको याद होना चाहिए। किताब से पढ़कर बिलकुल न करें।  जैसे ही 1 बजता है आप बजरंग बाण के पाठ को पूरा कर अब आप फिर से इस मंत्र “ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्” का जाप 5 मिनट तक करें। अब आप कागज पर लिखे हुए मंत्र को जला दे। इस प्रकार आपका यह बजरंग बाण का पाठ एक ही रात्रि में सिद्ध हो जाता है।
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इस प्रकार सिद्ध किया गया यह बजरंग बाण पाठ आपके जीवन में चमत्कारिक प्रभाव दिखता है।
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―बजरंग बाण का पाठ―
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जय श्री राम
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।। दोहा ।।
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निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करे सन्मान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करै हनुमान।।
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।। चौपाई ।।
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जय हनुमन्त सन्त हितकारी।
सुन लीजै प्रभु अरज हमारी।।१।।
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जन के काज विलम्ब न कीजै।
आतुर दौरि महा सुख दीजै।।२।।
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जैसे कूदि सिन्धु के पारा।
सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।३।।
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आगे जाई लंकिनी रोका।
मारेहु लात गई सुर लोका।।४।।
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जाय विभीषण को सुख दीन्हा।
सीता निरखि परम पद लीन्हा।।५।।
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बाग उजारि सिन्धु महं बोरा।
अति आतुर जमकातर तोरा।।६।।
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अक्षय कुमार मारि संहारा।
लूम लपेट लंक को जारा।।७।।
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लाह समान लंक जरि गई।
जय जय धुनि सुरपुर में भई।।८।।
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अब विलम्ब केहि कारण स्वामी।
कृपा करहु उर अन्तर्यामी।।९।।
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जय जय लखन प्राण के दाता।
आतुर होय दुःख हरहु निपाता।।१०।।
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जय गिरिधर जय जय सुखसागर।
सुर समूह समरथ भटनागर।।११।।
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ॐ हनु हनु हनु हनुमन्त हठीले।
बैरिहि मारु बज्र की कीले।।१२।।
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गदा बज्र लै बैरिहि मारो।
महाराज निज दास उबारो।।१३।।
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सुनि पुकार हुंकार देय धावो।
बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो।।१४।।
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ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमन्त कपीसा।
ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा।।१५।।
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सत्य होहु हरि शपथ पाय के।
रामदूत धरु मारु जाय के।।१६।।
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जय जय जय हनुमन्त अगाधा।
दुःख पावत जन केहि अपराधा।।१७।।
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पूजा जप तप नेम अचारा।
नहिं जानत हौं दास तुम्हारा।।१८।।
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वन उपवन, मग गिरि गृह माहीं।
तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।१९।।
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पांय परों कर जोरि मनावौं।
यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।२०।।
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जय अंजनि कुमार बलवन्ता।
शंकर सुवन बीर हनुमन्ता।।२१।।
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बदन कराल काल कुल घालक।
राम सहाय सदा प्रति पालक।।२२।।
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भूत प्रेत पिशाच निशाचर।
अग्नि बेताल काल मारी मर।।२३।।
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इन्हें मारु तोहि शपथ राम की।
राखु नाथ मरजाद नाम की।।२४।।
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जनकसुता हरि दास कहावो।
ताकी शपथ विलम्ब न लावो।।२५।।
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जय जय जय धुनि होत अकाशा।
सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा।।२६।।
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चरण पकर, कर जोरि मनावौं।
यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।२७।।
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उठु उठु उठु चलु राम दुहाई।
पांय परों, कर जोरि मनाई।।२८।।
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ॐ चं चं चं चं चं चपल चलन्ता।
ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता।।२९।।
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ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल।
ॐ सं सं सहमि पराने खल दल।।३०।।
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अपने जन को तुरत उबारो।
सुमिरत होय आनन्द हमारो।।३१।।
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ताते बिनती करौं पुकारी।
हरहु सकल दुःख विपत्ति हमारी।।३२।।
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परम प्रबल प्रभाव प्रभु तोरा।
कस न हरहु अब संकट मोरा।।३३।।
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हे बजरंग ! बाण सम धावौ।
मेटि सकल दुःख दरस दिखावौ।।३४।।
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हे कपिराज काज कब ऐहौ।
अवसर चूकि अन्त पछतैहौ।।३५।।
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जन की लाज जात एहि बारा।
धावहु हे कपि पवन कुमारा।।३६।।
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जयति जयति जय जय हनुमाना।
जयति जयति गुन ज्ञान निधाना।।३७।।
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जयति जयति जय जय कपि राई।
जयति जयति जय जय सुख दाई।।३८।।
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जयति जयति जय, राम पियारे।
जयति जयति जय, सिया दुलारे।।३९।।
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जयति जयति मुद मंगल दाता।
जयति जयति त्रिभुवन विख्याता।।४०।।
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एहि प्रकार गावत गुण शेषा।
पावत पार नहीं लव लेसा।।४१।।
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राम रूप सर्वत्र समाना।
देखत रहत सदा हर्षाना।।४२।।
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विधि सारदा सहित दिन राती।
गावत कपि के गुन बहु भांती।।४३।।
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तुम सम नहीं जगत में बलवाना।
करि विचार देखउं विधि नाना।।४४।।
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यह जिय जानि सरन हम आये।
ताते विनय करौं मन लाये।।४५।।
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सुनि कपि आरत बचन हमारे।
हरहु सकल दुःख सोच हमारे।।४६।।
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एहि प्रकार विनती कपि केरी।
जो जन करै, लहै सुख ढेरी।।४७।।
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याके पढ़त बीर हनुमाना।
धावत बान तुल्य बलवाना।।४८।।
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मेटत आय दुःख छिन माहीं।
दै दर्शन रघुपति ढिंग जाहीं।।४९।।
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डीठ मूठ टोनादिक नासै।
पर कृत यन्त्र मन्त्र नहिं त्रासै।।५०।।
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भैरवादि सुर करै मिताई।
आयसु मानि करै सेवकाई।।५१।।
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आवृत ग्यारह प्रति दिन जापै।
ताकी छांह काल नहिं व्यापै।।५२।।
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शत्रु समूह मिटै सब आपै।
देखत ताहि सुरासुर कांपै।।५३।।
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तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई।
रहै सदा कपिराज सहाई।।५४।।
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यह बजरंग बाण जेहि मारै।
ताहि कहो फिर कौन उबारै।।५५।
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पाठ करै बजरंग बाण की।
हनुमत रक्षा करै प्राण की।।५६।।
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यह बजरंग बाण जो जापै।
ताते भूत प्रेत सब कांपै।।५७।।
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धूप देय अरु जपै हमेशा।
ताके तन नहिं रहै कलेशा।।५८।।
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।। दोहा ।।
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उर प्रतीति दृढ सरन हवै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करै सब काज सफल हनुमान।।
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प्रेम प्रतीतिहि कपि भजे, सदा धरै उर ध्यान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करै हनुमान।।
जय श्री राम🌹

आचार्य मनोज तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही

सोमवार, 27 जुलाई 2020

शिवलिंग पर किस वस्तु को चढ़ाने से क्या फल मिलता है।

🌹शिवलिंग पर क्या चढ़ाने से क्या फल मिलता है 
🌹श्रावण माह में भगवान शिव की पुजा करने से  भोले नाथ की असीम कृपा एवं आशीर्वाद मिलता है । 
🌷शिवलिंग पर दूध अर्पित करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है।
🌷शिवलिंग पर दही अर्पित करने से हमें जीवन में हर्ष और उल्लास की प्राप्ति होती है।
🌷 शिवलिंग पर शहद चढाने से रूप और सौंदर्य प्राप्त होता है, वाणी में मिठास रहती है, समाज में लोकप्रियता बढ़ती है।
🌷 शिवलिंग पर घी चढ़ाने से हमें तेज की प्राप्ति होती है।
🌷 शिवलिंग पर शक्कर चढ़ाने से सुख - समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
🌷शिवलिंग पर ईत्र चढ़ाने से धर्म की प्राप्ति होती हैं।
🌷शिवलिंग पर सुगंधित तेल चढ़ाने से धन धान्य की वृद्धि होती है, जीवन में सभी भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है।
🌷शिवलिंग पर चंदन चढ़ाने से समाज में यश और मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।
🌷शिवलिंग पर केसर अर्पित करने से दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है,  विवाह में आने वाली समस्त अड़चने दूर होती है, मनचाहा जीवन साथी प्राप्त होता है विवाह के योग शीघ्र बनते है ।
🌷शिवलिंग पर भांग चढ़ाने से हमारे समस्त पाप समस्त बुराइयां दूर होती हैं।
🌷 शिवलिंग पर आँवला अथवा आँवले का ऱस चढ़ाने से दीर्घ आयु प्राप्त होती है ।
🌷शिवलिंग पर गन्ने का रस चढ़ाने से समस्त पारिवारिक सुखो की प्राप्ति होती है , परिवार के सदस्यों के मध्य में प्रेम बना रहता है।
 🌷शिवलिंग पर गेहूं चढ़ाने से वंश वृद्धि होती है, योग्य संतान की प्राप्ति होती है, संतान आज्ञाकारी होती है।
🌷शिवलिंग पर चावल चढ़ाने से धन और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।
🌷 शिवलिंग पर तिल चढ़ाने से पापों समस्त रोगो का नाश होता है।
🌷 शिवलिंग पर जौ अर्पित करने से सांसारिक सुखो की प्राप्ति होती है।
🌷भगवान भोलेनाथ की बेलपत्र से पूजा करने से सभी संकट दूर होते है।
🌷भगवान भोलेनाथ की दूर्वा से पूजन करने दीर्घ आयु की प्राप्ति होती है।
🌷भगवान भोलेनाथ की हारसिंगार के फूलों से पूजन करने पर जीवन में सुख-संपत्ति और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
🌷 भगवान भोलेनाथ पर चमेली के फूल चढ़ाने से सुख समृद्धि प्राप्त होती है।
🌷भगवान भोलेनाथ की धतूरे से पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है।
🌷 भगवान भोलेनाथ की आंकड़े के फूल से पूजन, श्रृंगार करने से जीवन के सभी सुख मिलते है, पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
🌷भगवान भोलेनाथ की अलसी के फूलों से पूजन करने से मनुष्य सभी देवताओं का प्रिय हो जाता है।
🌷 भगवान भोलेनाथ की बेला के फूल से पूजन करने पर मनचाहा, सुंदर जीवन साथी मिलता है।
🌷भगवान भोलेनाथ की जूही के फूल से पूजन करने से घर कारोबार में धन धान्य की कोई भी कमी नहीं होती है।

आचार्य मनोज तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही
9005618107

शनिवार, 25 जुलाई 2020

राहू ग्रह का सूर्यादि ग्रह के साथ युति होने पर उसका प्रभाव


*राहु के अन्य ग्रह के साथ युति बनने पर पड़ने वाले प्रभाव:-*
*१:- राहु और सूर्य:-* राहु और सूर्य नकारात्मक प्रभाव पैदा करता है, सूर्य और राहु की युति से पिता और पुत्र में विवाद पैदा होने लगता है, मान्यता है कि सूर्य ग्रहण के दौरान राहु सूर्य को ग्रास करता है.।
*२:- राहु और चंद्रमा:-* राहु और चंद्रमा की जब युति से व्यक्ति को मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है, इस युति से जातकों की कुंडली में असर होता है उसका प्रभाव पड़ता है.!
*३:- राहु और मंगल:-* राहु और मंगल की युति होने पर अंगारक योग का निर्माण होता है, इस योग के निर्माण से प्रभावित जातकों को खून से संबंधित परेशानियां बढ़ती हैं, यह योग भाई के लिए अशुभ रहता है.!
*४:- राहु और बुध:-* राहु और बुध की युति होने से व्यक्ति को सिर से संबंधित बीमारियां होने लगती है.!
*५:- राहु और गुरु:-* राहु और गुरु की युति से शुभ और अशुभ दोनों तरह के प्रभाव पड़ते है, राहु और गुरु की युति बनती है तब व्यक्ति की आयु लंबी होती है, लेकिन जीवन में छोटी-छोटी परेशानियां बनी रहती है.!
*६:-राहु और शुक्र:-* राहु की युति शुक्र ग्रह के साथ बनने पर शुक्र का शुभ प्रभाव राहु के कारण समाप्त हो जाता है, शुक्र ग्रह के साथ राहु की युति होने पर व्यक्ति गलत संगति का शिकार बन जाता है.!
*७:-राहु और शनि:-* जिन व्यक्तियों की कुंडली में राहु और शनि की युति बन जाती है तब ऐसा व्यक्ति गलत तरीके से पैसे कमाना शुरू कर देता है...!!


आचार्य मनोज तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही
9005618107

शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

फिटकरी से समस्या का समाधान कैसे करें।

फिटकरी के ये टोटके बदल सकते हैं आपकी किस्मत, हर परेशानी को करेंगे दूर:-

1.फिटकरी से फिट करें लाइफ की खुशियां:-

ज्यादातर घरों में फिटकरी का प्रयोग एंटीसेप्टिक के रूप में किया जाता है। खड़े नमक की तरह दिखने वाली फिटकरी से ना केवल स्वास्थ्य सही रहता है बल्कि आपकी कई समस्याओं को खत्म कर सकता है। खून रोकने से लेकर पानी साफ करने तक फिटकरी में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। यही वजह है कि आफ्टर शेव कई भारतीय फिटकरी का प्रयोग करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एंटीसेप्टिक गुणों के अलावा फिटकरी के कई और भी उपाय महत्व रखते हैं। दरअसल फिटकरी के टोटके आपकी किस्मत को बदल सकते हैं। तंत्र शास्त्र के अनुसार, फिटकरी के छोटे से उपाय आपके लिए काफी लाभदायक हो सकते हैं। इसके उपाय करने से नकारात्मक ऊर्जा और दरिद्रता के साथ कई तरह की परेशानियों से आपको मुक्ति मिल सकती है। आइए जानते हैं फिटकरी के उपाय…

2.व्यापार में तरक्की के लिए करें यह उपाय:-

अगर दुकान या ऑफिस मंदी की वजह से सही से नहीं चल रही है तो काले कपड़े में फिटकरी रखकर उसे दुकान या ऑफिस के मेन गेट पर बांध दें। ऐसा करने से ना सिर्फ नकारात्मक ऊर्जा दूर जाएगी बल्कि आपको व्यापार में तरक्की देखने को मिलेगी। धीरे-धीरे आपकी समस्या खत्म हो जाएगी।

3.घर की कलह को दूर करेगा यह उपाय:-

घर के सदस्यों के बीच लड़ाई-झगड़ा होता रहता है तो रात को पलंग के नीचे पानी के गिलास में फिटकरी के कुछ टुकड़े डाल दें और फिर उसको अगली सुबह उस जल को पीपल पर डाल दें। ऐसा करने से आपके घर की कलह दूर हो जाएगी, साथ ही परिवार के सदस्यों के बीच प्रेम भाव बढ़ने लगेगा। ऐसा आप एक महीने तक करते रहें।

4.इंटरव्यू में मिलेगी सफलता:-

अगर आप इंटरव्यू में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं तो सबसे पहले फिटकरी के पांच टुकड़े, 6 नीले फूल और एक बेल्ट (कमर में बांधने वाली) लें और इन सबको नवमी के दिन देवी मां को चढ़ा दें। फिर दशमी के दिन बेल्ट किसी कन्या को दे दें, फूल बहते पानी में प्रवाहित कर दें और फिटकरी के टुकड़े अपने पास रख लें और फिर इंटरव्यू देने जाएं। ऐसा करने से आपको सफलता जरूर मिलेगी।

5.कर्ज से मुक्ति के लिए:-

कर्ज से आप परेशान हैं तो फिटकरी का यह उपाय आपकी जरूर मदद करेगा। इसके लिए आप बुधवार के दिन थोड़ी सी फिटकरी पर सिंदूर छिड़क दें और फिर उसे पान के पत्ते में लपेटकर कलावा से बांध दें। फिर उसको शाम के समय पीपल के पेड़ के नीचे किसी भारी चीज जैसे बड़े पत्थर से दबा दें। ऐसा आप लगातार तीन बुधवार करें। ध्यान रहे ऐसा करते समय कोई आपको देखे ना। इस फिटकरी के टोटके से आपको कर्ज से जरूर मुक्ति मिलेगी।

6.धन लाभ के लिए जरूर करें यह उपाय:-

हर रोज सोने से पहले फिटकरी से दांत साफ करेंगे तो आपको धन लाभ जरूर होगा। साथ ही कभी-कभार नहाने के पानी में फिटकरी को डाल लें। साथ ही पोंछे के पानी में थोड़ी फिटकरी और नमक मिलाकर अगर सफाई करेंगे तो इससे वास्तु दोष भी दूर होता है और नकारात्मक ऊर्जा घर में नहीं रहती।

7.इस उपाय से बुरी नजर से मिलेगी मुक्ति:-

अगर कोई व्यक्ति नजर दोष से पीड़ित है तो उसे लिटा दें फिर फिटकरी के टुकड़ों से सिर से लेकर पांव तक सात बार वार लें। ध्यान रखें कि पांव तक ले जाते समय तलवे पर फिटकरी जरूर लगाएं। फिर इसको आग में डाल दें। ऐसा करने से बुरी नजर का असर खत्म हो जाएगा।


आचार्य मनोज तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही
9005618107

कालसर्प दोष के उपाय

कालसर्प दोष के नागपंचमी के उपाय || Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay


अनन्त कालसर्प दोष के नागपंचमी के उपाय || Anant Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay

एकमुखी, आठमुखी या नौ मुखी रुद्राक्ष अभिमंत्रित करके जातक को धारण करना चाहिए !

अनन्त कालसर्प दोष के कारण जातक का स्वास्थ्य सही नही रहता हो तो Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay के अनुसार नाग पंचमी वाले दिन रांगे का बना सिक्का बहते हुए जल में प्रवाहित कर देना चाहिए ! 
कुलिक कालसर्प दोष के नागपंचमी के उपाय || Kulik Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay

इस दोष से पीड़ित जातक को Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay के अनुसार दो रंग के कंबल या गर्म कपडे ग़रीबों को दान करना चाहिए !
नाग पंचमी वाले दिन जातक को चांदी की बनी ठोस गोली लेकर उसकी पूजा करके और उसे आजीवन अपने पास रखना चाहिए ! 
वासुकि कालसर्प दोष के नागपंचमी के उपाय || Vasuki Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay

इस दोष से पीड़ित जातक को नाग पंचमी से एक दिन पहले रात में सोते समय सिरहाने पर थोड़ा बाजरा रखकर सोना चाहिए फिर नाग पंचमी वेक दिन सुबह जल्दी जगकर उसे पक्षियों को खिला देना चाहिए ! 
इस दोष से पीड़ित जातक को Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay के अनुसार नागपंचमी वाले दिन लाल धागे में तीन मुखी, आठ मुखी या नौ मुखी रुद्राक्ष अभिमंत्रित करने धारण करना चाहिए !



 
शंखपाल कालसर्प दोष के नागपंचमी के उपाय || Shankhpal Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay

इस दोष से पीड़ित जातक को Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay के अनुसार नाग पंचमी वाले दिन बहते हुए जल में 400 ग्राम साबूत बादाम बहाने चाहिए !
शंखपाल कालसर्प दोष होने पर जातक को नाग पंचमी वाले दिन शिवलिंग का अभिषेक दूध से करना चाहिए ! 
पद्म कालसर्प दोष के नागपंचमी के उपाय || Padam Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay

पद्म कालसर्प दोष वाले जातक को नाग पंचमी वाले दिन से रोज़ाना लगातार 43 दिनों तक माँ सरस्वती जी चालीसा का पाठ करना चाहिए !
इस दोष से पीड़ित जातकों को Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay के अनुसार नाग पंचमी वाले दिन पीले कपडे का दान गरीबों को करना चाहिए !
जिस भी जातक के यह दोष है तो उसे नाग पंचमी वाले दिन अपने घर में तुलसी का पौधा लगाना चाहिए ! 
महापद्म कालसर्प दोष के नागपंचमी के उपाय || Mahapadma Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay

महापद्म कालसर्प दोष से पीड़ित जातक को नाग पंचमी वाले दिन श्री हनुमान मंदिर में जाकर सुन्दरकाण्ड का पाठ करना चाहिए !
इस दोष से पीड़ित व्यक्तिओं को Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay के अनुसार नागपंचमी वाले दिन गरीब लोंगो को भोजन करवाना चाहिए ! 


तक्षक कालसर्प दोष के नागपंचमी के उपाय || Takshak Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay

तक्षक कालसर्प दोष वाले जातक को Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay के अनुसार नागपंचमी वाले दिन 11 नारियल बहते हुए जल मे प्रवाहित करने चाहिए !
जिस भी व्यक्ति के यह दोष हो तो उसे नागपंचमी वाले दिन सफेद वस्त्र और चावल का दान करना चाहिए ! 
कर्कोटक कालसर्प दोष के नागपंचमी के उपाय || Karkotak Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay

इस दोष से पीड़ित व्यक्तिओं को नागपंचमी वाले दिन बटुकभैरव के मंदिर मे जाकर दही-गुड़ का भोग लगाकर उनकी पूजा अर्चना करनी चाहिए !
कर्कोटक कालसर्प दोष वाले जातकों को Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay के अनुसार नागपंचमी वाले दिन बहते हुए जल में आठ टुकड़े शीशे के बहाने चाहिए !
शंखचूड़ कालसर्प दोष के नागपंचमी के उपाय || Shankhachur Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay

यह दोष कुंडली में होने पर जातक को Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay के अनुसार नागपंचमी से एक दिन पहले रात में सोते समय अपने सिरहाने जौ रखकर सोये और इस जौ को नागपंचमी दिन सुबह जगकर पक्षियों को खिला दें !
शंखचूड़ कालसर्प दोष वाले जातक को पांचमुखी, आठमुखी या नौ मुखी रुद्राक्ष अभिमंत्रित करके धारण करने चाहिए

घातक कालसर्प दोष के नागपंचमी के उपाय || Ghatak Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay

घातक कालसर्प दोष वाले जातक को नागपंचमी वाले दिन पीतल के बर्तन में गंगाजल भरकर अपने पूजा स्थल में रखना चाहिए !
इस दोष से पीड़ित जातक को Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay के अनुसार नागपंचमी वाले दिन हरे रंग के धागे में चार मुखी, आठमुखी और नौ मुखी रुद्राक्ष अभिमंत्रित करके धारण करना चाहिए !
विषधर कालसर्प दोष के नागपंचमी के उपाय || Vishdhar Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay

विषधर कालसर्प दोष से पीड़ित व्यक्तिओं को नागपंचमी वाले दिन अपने घर के परिवार की सदस्यों की संख्या के बराबर नारियल लेकर उन सबका हाथ छुआ कर उसे बहते हुए जल में बहाना चाहिए !
इस दोष से पीड़ित जातक को Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay के अनुसार नागपंचमी वाले दिन भगवान शिव मंदिर में जाकर दान करना चाहिए ! 
शेषनाग कालसर्प दोष के नागपंचमी के उपाय || Sheshnag Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay

शेषनाग कालसर्प दोष वाले जातक को Kaal Sarp Dosh Ke Nag Panchami Ke Upay के अनुसार नागपंचमी की पूर्व रात्रि को लाल कपड़े में थोड़े से बताशे व सफेद फूल बांधकर अपने सिरहाने रखकर सो जाये और नागपंचमी वाले दिन उन सब को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें !
इस दोष से पीड़ित जातकों को नागपंचमी वाले दिन गरीबों को दूध या कोई भी सफ़ेद रंग की वस्तुएं दान करनी चाहिए !

आचार्य मनोज तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही
9005618107

रविवार, 21 जून 2020

मां बगलामुखी माला मंत्र

मां बगलामुखी माला मंत्र बहुत ही उत्तम एवं विशेष प्रभावी है। किसी भी देवता का माला मंत्र बहुत ही
उग्र होता है किसी जानकार से या गुरु के सानिध्य में
इसका जप करना चाहिए। अगर नियम पूर्वक जप किया जाए तो मां अपने साधक के समस्त शत्रुओं का शमन कर देती है। और उसके समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करती है। और अंत में मोक्ष प्रदान करती है। पर माला मंत्र का जप वृद्धावस्था में विशेष प्रभावी होता है।
🚩🌺🌺🐚🔱 जय माई की 🔱🐚🌺🌺🚩
देवतुल्य पूज्य पिता जी को समर्पित
        कर्मकाण्ड मर्मज्ञ
स्व. पंडित श्री राघव राम तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही

🚩🌺🌺🌺 जय माई की 🌺🌺🌺🚩

किसी भी प्रकार की साधना के लिए सम्पर्क करें
          आचार्य मनोज तिवारी
          सहसेपुर खमरिया भदोही
      9005618107,9451280720
   

आषाढ़ मास के गुप्त नवरात्रि में दशमहाविद्या कि साधना विशेष रूप से लाभदायक होती है।

गुप्त नवरात्रि विशेष
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इस वर्ष आषाढ़ गुप्त नवरात्र 22 जून 2020 से लेकर 29 जून 2020 तक रहेगी। गुप्त नवरात्रि में साधक गुप्त साधनाएं करने शमशान व गुप्त स्थान पर जाते हैं। नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों में वृद्धि करने के लिये अनेक प्रकार के उपवास, संयम, नियम, भजन, पूजन योग साधना आदि करते हैं । सभी नवरात्रों में माता के सभी 51पीठों पर भक्त विशेष रुप से माता के दर्शनों के लिये एकत्रित होते हैं। माघ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं, क्योंकि इसमें गुप्त रूप से शिव व शक्ति की उपासना की जाती है जबकि चैत्र व शारदीय नवरात्रि में सार्वजिनक रूप में माता की भक्ति करने का विधान है । आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि में जहां वामाचार उपासना की जाती है । वहीं माघ मास की गुप्त नवरात्रि में वामाचार पद्धति को अधिक मान्यता नहीं दी गई है । ग्रंथों के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष का विशेष महत्व है।

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते 

“सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित: ।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय: ॥”

प्रत्यक्ष फल देते हैं गुप्त नवरात्र
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गुप्त नवरात्र में दशमहाविद्याओं की साधना कर ऋषि विश्वामित्र अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन गए। उनकी सिद्धियों की प्रबलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक नई सृष्टि की रचना तक कर डाली थी । इसी तरह, लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद ने अतुलनीय शक्तियां प्राप्त करने के लिए गुप्त नवरात्रों में साधना की थी शुक्राचार्य ने मेघनाद को परामर्श दिया था कि गुप्त नवरात्रों में अपनी कुलदेवी निकुम्बाला की साधना करके वह अजेय बनाने वाली शक्तियों का स्वामी बन सकता है…गुप्त नवरात्र दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्रों से एक प्राचीन कथा जुड़ी हुई है एक समय ऋषि श्रृंगी भक्त जनों को दर्शन दे रहे थे अचानक भीड़ से एक स्त्री निकल कर आई और करबद्ध होकर ऋषि श्रृंगी से बोली कि मेरे पति दुर्व्यसनों से सदा घिरे रहते हैं। जिस कारण मैं कोई पूजा-पाठ नहीं कर पाती धर्म और भक्ति से जुड़े पवित्र कार्यों का संपादन भी नहीं कर पाती। यहां तक कि ऋषियों को उनके हिस्से का अन्न भी समर्पित नहीं कर पाती मेरा पति मांसाहारी हैं, जुआरी है । लेकिन मैं मां दुर्गा कि सेवा करना चाहती हूं। उनकी भक्ति साधना से जीवन को पति सहित सफल बनाना चाहती हूं। ऋषि श्रृंगी महिला के भक्तिभाव से बहुत प्रभावित हुए। ऋषि ने उस स्त्री को आदरपूर्वक उपाय बताते हुए कहा कि वासंतिक और शारदीय नवरात्रों से तो आम जनमानस परिचित है लेकिन इसके अतिरिक्त दो नवरात्र और भी होते हैं । जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है प्रकट नवरात्रों में नौ देवियों की उपासना हाती है और गुप्त नवरात्रों में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है । इन नवरात्रों की प्रमुख देवी स्वरुप का नाम सर्वैश्वर्यकारिणी देवी है । यदि इन गुप्त नवरात्रों में कोई भी भक्त माता दुर्गा की पूजा साधना करता है तो मां उसके जीवन को सफल कर देती हैं । लोभी, कामी, व्यसनी, मांसाहारी अथवा पूजा पाठ न कर सकने वाला भी यदि गुप्त नवरात्रों में माता की पूजा करता है तो उसे जीवन में कुछ और करने की आवश्यकता ही नहीं रहती । उस स्त्री ने ऋषि श्रृंगी के वचनों पर पूर्ण श्रद्धा करते हुए गुप्त नवरात्र की पूजा की मां प्रसन्न हुई और उसके जीवन में परिवर्तन आने लगा, घर में सुख शांति आ गई । पति सन्मार्ग पर आ गया और जीवन माता की कृपा से खिल उठा । यदि आप भी एक या कई तरह के दुर्व्यसनों से ग्रस्त हैं और आपकी इच्छा है कि माता की कृपा से जीवन में सुख समृद्धि आए तो गुप्त नवरात्र की साधना अवश्य करें । तंत्र और शाक्त मतावलंबी साधना के दृष्टि से गुप्त नवरात्रों के कालखंड को बहुत सिद्धिदायी मानते हैं। मां वैष्णो देवी, पराम्बा देवी और कामाख्या देवी का का अहम् पर्व माना जाता है। हिंगलाज देवी की सिद्धि के लिए भी इस समय को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार दस महाविद्याओं को सिद्ध करने के लिए ऋषि विश्वामित्र और ऋषि वशिष्ठ ने बहुत प्रयास किए लेकिन उनके हाथ सिद्धि नहीं लगी । वृहद काल गणना और ध्यान की स्थिति में उन्हें यह ज्ञान हुआ कि केवल गुप्त नवरात्रों में शक्ति के इन स्वरूपों को सिद्ध किया जा सकता है। गुप्त नवरात्रों में दशमहाविद्याओं की साधना कर ऋषि विश्वामित्र अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन गए उनकी सिद्धियों की प्रबलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक नई सृष्टि की रचना तक कर डाली थी । इसी तरह, लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद ने अतुलनीय शक्तियां प्राप्त करने के लिए गुप्त नवरात्र में साधना की थी शुक्राचार्य ने मेघनाद को परामर्श दिया था कि गुप्त नवरात्रों में अपनी कुल देवी निकुम्बाला कि साधना करके वह अजेय बनाने वाली शक्तियों का स्वामी बन सकता है मेघनाद ने ऐसा ही किया और शक्तियां हासिल की राम, रावण युद्ध के समय केवल मेघनाद ने ही भगवान राम सहित लक्ष्मण जी को नागपाश मे बांध कर मृत्यु के द्वार तक पहुंचा दिया था ऐसी मान्यता है कि यदि नास्तिक भी परिहासवश इस समय मंत्र साधना कर ले तो उसका भी फल सफलता के रूप में अवश्य ही मिलता है । यही इस गुप्त नवरात्र की महिमा है यदि आप मंत्र साधना, शक्ति साधना करना चाहते हैं और काम-काज की उलझनों के कारण साधना के नियमों का पालन नहीं कर पाते तो यह समय आपके लिए माता की कृपा ले कर आता है गुप्त नवरात्रों में साधना के लिए आवश्यक न्यूनतम नियमों का पालन करते हुए मां शक्ति की मंत्र साधना कीजिए । गुप्त नवरात्र की साधना सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं गुप्त नवरात्र के बारे में यह कहा जाता है कि इस कालखंड में की गई साधना निश्चित ही फलवती होती है। इस समय की जाने वाली साधना की गुप्त बनाए रखना बहुत आवश्यक है। अपना मंत्र और देवी का स्वरुप गुप्त बनाए रखें। गुप्त नवरात्र में शक्ति साधना का संपादन आसानी से घर में ही किया जा सकता है। इस महाविद्याओं की साधना के लिए यह सबसे अच्छा समय होता है गुप्त व चामत्कारिक शक्तियां प्राप्त करने का यह श्रेष्ठ अवसर होता है। धार्मिक दृष्टि से हम सभी जानते हैं कि नवरात्र देवी स्मरण से शक्ति साधना की शुभ घड़ी है। दरअसल इस शक्ति साधना के पीछे छुपा व्यावहारिक पक्ष यह है कि नवरात्र का समय मौसम के बदलाव का होता है। आयुर्वेद के मुताबिक इस बदलाव से जहां शरीर में वात, पित्त, कफ में दोष पैदा होते हैं, वहीं बाहरी वातावरण में रोगाणु जो अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं सुखी-स्वस्थ जीवन के लिये इनसे बचाव बहुत जरूरी है नवरात्र के विशेष काल में देवी उपासना के माध्यम से खान-पान, रहन-सहन और देव स्मरण में अपनाने गए संयम और अनुशासन तन व मन को शक्ति और ऊर्जा देते हैं जिससे इंसान निरोगी होकर लंबी आयु और सुख प्राप्त करता है धर्म ग्रंथों के अनुसार गुप्त नवरात्र में प्रमुख रूप से भगवान शंकर व देवी शक्ति की आराधना की जाती है। 

देवी दुर्गा शक्ति का साक्षात स्वरूप है दुर्गा शक्ति में दमन का भाव भी जुड़ा है । यह दमन या अंत होता है शत्रु रूपी दुर्गुण, दुर्जनता, दोष, रोग या विकारों का ये सभी जीवन में अड़चनें पैदा कर सुख-चैन छीन लेते हैं । यही कारण है कि देवी दुर्गा के कुछ खास और शक्तिशाली मंत्रों का देवी उपासना के विशेष काल में जाप शत्रु, रोग, दरिद्रता रूपी भय बाधा का नाश करने वाला माना गया है सभी’नवरात्र’ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक किए जाने वाले पूजन, जाप और उपवास का प्रतीक है- ‘नव शक्ति समायुक्तां नवरात्रं तदुच्यते’ । देवी पुराण के अनुसार एक वर्ष में चार माह नवरात्र के लिए निश्चित हैं। 

नवरात्र के नौ दिनों तक समूचा परिवेश श्रद्धा व भक्ति, संगीत के रंग से सराबोर हो उठता है। धार्मिक आस्था के साथ नवरात्र भक्तों को एकता, सौहार्द, भाईचारे के सूत्र में बांधकर उनमें सद्भावना पैदा करता है शाक्त ग्रंथो में गुप्त नवरात्रों का बड़ा ही माहात्म्य गाया गया है। मानव के समस्त रोग-दोष व कष्टों के निवारण के लिए गुप्त नवरात्र से बढ़कर कोई साधनाकाल नहीं हैं। श्री, वर्चस्व, आयु, आरोग्य और धन प्राप्ति के साथ ही शत्रु संहार के लिए गुप्त नवरात्र में अनेक प्रकार के अनुष्ठान व व्रत-उपवास के विधान शास्त्रों में मिलते हैं।  इन अनुष्ठानों के प्रभाव से मानव को सहज ही सुख व अक्षय ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ‘दुर्गावरिवस्या’ नामक ग्रंथ में स्पष्ट लिखा है कि साल में दो बार आने वाले गुप्त नवरात्रों में माघ में पड़ने वाले गुप्त नवरात्र मानव को न केवल आध्यात्मिक बल ही प्रदान करते हैं, बल्कि इन दिनों में संयम-नियम व श्रद्धा के साथ माता दुर्गा की उपासना करने वाले व्यक्ति को अनेक सुख व साम्राज्य भी प्राप्त होते हैं । ‘शिवसंहिता’ के अनुसार ये नवरात्र भगवान शंकर और आदिशक्ति मां पार्वती की उपासना के लिए भी श्रेष्ठ हैं। गुप्त नवरात्रों के साधनाकाल में मां शक्ति का जप, तप, ध्यान करने से जीवन में आ रही सभी बाधाएं नष्ट होने लगती हैं। 
                         
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम् ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥
          
देवी भागवत के अनुसार जिस तरह वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है । ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। 

गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है । इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं। गुप्त नवरात्र के दौरान कई साधक महाविद्या (तंत्र साधना) के लिए मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं। मान्यता है कि नवरात्र में महाशक्ति की पूजा कर श्रीराम ने अपनी खोई हुई शक्ति पाई। इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर विशेष बल दिया गया है। संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण हैं। नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुलिंग रूप 'नवरात्र' में ही शुद्ध है।

गुप्त नवरात्र पूजा विधि
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घट स्थापना, अखंड ज्योति प्रज्ज्‍वलित करना व जवारे स्थापित करना-श्रद्धालुगण अपने सामर्थ्य के अनुसार उपर्युक्त तीनों ही कार्यों से नवरात्रि का प्रारंभ कर सकते हैं अथवा क्रमश: एक या दो कार्यों से भी प्रारम्भ किया जा सकता है। यदि यह भी संभव नहीं तो केवल घट स्थापना से देवी पूजा का प्रारंभ किया जा सकता है।

मान्यतानुसार गुप्त नवरात्र के दौरान अन्य नवरात्रों की तरह ही पूजा करनी चाहिए। नौ दिनों के उपवास का संकल्प लेते हुए प्रतिप्रदा यानि पहले दिन घटस्थापना करनी चाहिए। घटस्थापना के बाद प्रतिदिन सुबह और शाम के समय मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन के साथ नवरात्र व्रत का उद्यापन करना चाहिए।

गुप्तनवरात्री पूजा तिथि
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प्रतिपदा तिथि 
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22 जून 2020, सोमवार, शैलपुत्री पूजा घटस्थापना, कलश स्थापना शुभ मुहूर्त सुबह 8 से 9 बजकर 27 मिनट तक इसके बाद 11:46 से 2:03 तक अभिजीत मुहूर्त में भी कर सकते है।

प्रतिपदा तिथि का आरंभ 21 जनवरी को दिन 12 बजकर 11 मिनट से होगा।

द्वितीया तिथि
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23 जून 2020, मंगलवार
ब्रह्मचारिणी पूजा, सिन्धारा दूज।
 
तृतीया तिथि 
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24 जून 2020, बुधवार
चंद्रघंटा पूजा, पूजा, सौभाग्य तीज।

चतुर्थी तिथि 
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25 जून 2020, गुरुवार
कुष्मांडा पूजा।
 
पंचमी तिथि 
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26 जून 2020, शुक्रवार
स्कन्ध पूजा, वरद विनायक चौथ,
लक्ष्मी पञ्चमी, बसंत पञ्चमी।

षष्ठी तिथि क्षय
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इस वर्ष गुप्त नवरात्रि पर षष्ठी तिथि क्षय होने के कारण 26 जून शुक्रवार के दिन ही कात्यायनी पूजा की जाएगी।

सप्तमी तिथि 
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27 जून 2020, शनिवार
कालरात्रि पूजा, महासप्तमी, विवस्वतः सप्तमी।
 
अष्टमी तिथि 
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28 जून 2020, रविवार
महागौरी पूजा, दुर्गा अष्टमी, महाष्टमी पूजा, संधि पूजा, अन्नपूर्णा अष्टमी, भीष्माष्टमी।

नवमी तिथि 
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30 जून 2020, सोमवार
सिद्धिदात्री पूजा, नवरात्री हवन।

नवरात्रि पारण
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31 जून।

नवरात्रि में दस महाविद्या पूजा
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पहला दिन- मां काली👉  गुप्त नवरात्रि के पहले दिन मां काली की पूजा के दौरान उत्तर दिशा की ओर मुंह करके काली हकीक माला से पूजा करनी है. इस दिन काली माता के साथ आप भगवान कृष्ण की पूजा करनी चाहिए. ऐसा करने से आपकी किस्मत चमक जाएगी. शनि के प्रकोप से भी छुटकारा मिल जाएगा. नवरात्रि में पहले दिन दिन मां काली को अर्पित होते हैं वहीं बीच के तीन दिन मां लक्ष्मी को अर्पित होते हैं और अंत के तीन दिन मां सरस्वति को अर्पित होते हैं.
मां काली की पूजा में मंत्रों का उच्चारण करना है।

मंत्र- क्रीं ह्रीं काली ह्रीं क्रीं स्वाहा।
 
ऊँ क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा।

दूसरी महाविद्या👉  मां तारा- दूसरे दिन मां तारा की पूजा की जाती है. इस पूजा को बुद्धि और संतान के लिये किया जाता है. इस दिन एमसथिस्ट व नीले रंग की माला का जप करने हैं।

मंत्र- ऊँ ह्रीं स्त्रीं हूं फट।

तीसरी महाविद्या👉  मां त्रिपुरसुंदरी और मां शोडषी पूजा- अच्छे व्यक्ति व निखरे हुए रूप के लिये इस दिन मां त्रिपुरसुंदरी की पूजा की जाती है. इस दिन बुध ग्रह के लिये पूजा की जाती है. इस दिन रूद्राक्ष की माला का जप करना चाहिए।

मंत्र- ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीये नम:।

चौथी महाविद्या👉  मां भुवनेश्वरी पूजा- इस दिन मोक्ष और दान के लिए पूजा की जाती है. इस दिन विष्णु भगवान की पूजा करना काफी शुभ होगा. चंद्रमा ग्रह संबंधी परेशानी के लिये इस पूजा की जाती है।

मंत्र- ह्रीं भुवनेश्वरीय ह्रीं नम:।

ऊं ऐं ह्रीं श्रीं नम:।

पांचवी महाविद्या👉  माँ छिन्नमस्ता- नवरात्रि के पांचवे दिन माँ छिन्नमस्ता की पूजा होती है. इस दिन पूजा करने से शत्रुओं और रोगों का नाश होता है. इस दिन रूद्राक्ष माला का जप करना चाहिए. अगर किसी का वशीकरण करना है तो उस दौरान इस पूजा करना होता है. राहू से संबंधी किसी भी परेशानी से छुटकारा मिलता है. इस दिन मां को पलाश के फूल चढ़ाएं।

मंत्र- श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैररोचनिए हूं हूं फट स्वाहा।

छठी महाविद्या👉  मां त्रिपुर भैरवी पूजा- इस दिन नजर दोष व भूत प्रेत संबंधी परेशानी को दूर करने के लिए पूजा करनी होती है. मूंगे की माला से पूजा करें. मां के साथ बालभद्र की पूजा करना और भी शुभ होगा. इस दिन जन्मकुंडली में लगन में अगर कोई दोष है तो वो सभ दूर होता है।

मंत्र- ऊँ ह्रीं भैरवी क्लौं ह्रीं स्वाहा।

सांतवी महाविद्या👉  मां धूमावती पूजा- इस दिन पूजा करने से द्ररिता का नाश होता है. इस दिन हकीक की माला का पूजा करें।

मंत्र- धूं धूं धूमावती दैव्ये स्वाहा।

आंठवी महाविद्या👉  मां बगलामुखी- माँ बगलामुखी की पूजा करने से कोर्ट-कचहरी और नौकरी संबंधी परेशानी दूर हो जाती है. इस दिन पीले कपड़े पहन कर हल्दी माला का जप करना है. अगर आप की कुंडली में मंगल संबंधी कोई परेशानी है तो मा बगलामुखी की कृपा जल्द ठीक हो जाएगा।

मंत्र-ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं, पदम् स्तम्भय जिव्हा कीलय, शत्रु बुद्धिं विनाशाय ह्रलीं ऊँ स्वाहा।

नौवीं महाविद्या👉  मां मतांगी- मां मतांगी की पूजा धरती की ओर और मां कमला की पूजा आकाश की ओर मुंह करके पूजा करनी चाहिए. इस दिन पूजा करने से प्रेम संबंधी परेशानी का नाश होता है. बुद्धि संबंधी के लिये भी मां मातंगी पूजा की जाती है।

मंत्र- क्रीं ह्रीं मातंगी ह्रीं क्रीं स्वाहा।

दसवी महाविद्या👉 मां कमला- मां कमला की पूजा आकाश की ओर मुख करके पूजा करनी चाहिए. दरअसल गुप्त नवरात्रि के नौंवे दिन दो देवियों की पूजा करनी होती है।

मंत्र- क्रीं ह्रीं कमला ह्रीं क्रीं स्वाहा

नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व का समापन पूर्णाहुति हवन एवं कन्याभोज कराकर किया जाना चाहिए।  पूर्णाहुति हवन दुर्गा सप्तशती के मन्त्रों से किए जाने का विधान है किन्तु यदि यह संभव ना हो तो देवी के  'नवार्ण मंत्र', 'सिद्ध कुंजिका स्तोत्र' अथवा 'दुर्गाअष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र' से हवन संपन्न करना श्रेयस्कर रहता  है।
 
लग्न अनुसार घटस्थापना का फल
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देवी पूजा में शुद्ध मुहूर्त एवं सही व शास्त्रोक्त पूजन विधि का बहुत महत्व है। शास्त्रों में विभिन्न लग्नानुसार घट स्थापना का फल बताया गया है-
 
1. मेष- धन लाभ

2. वृष- कष्ट

3. मिथुन- संतान को कष्ट

4. कर्क- सिद्धि

5. सिंह- बुद्धि नाश

6. कन्या- लक्ष्मी प्राप्ति

7. तुला- ऐश्वर्य प्राप्ति

8. वृश्चिक- धन लाभ

9. धनु- मान भंग

10. मकर- पुण्यप्रद

11. कुंभ- धन-समृद्धि की प्राप्ति

12. मीन- हानि एवं दुःख की प्राप्ति होती है।

मेष राशि👉  इस राशि के लोगों को स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए। दुर्गा सप्तशती या दुर्गा चालीसा का पाठ करें।

वृषभ राशि👉  इस राशि के लोग देवी के महागौरी स्वरुप की पूजा करें व ललिता सहस्त्रनाम का पाठ करें।

मिथुन राशि👉 इस राशि के लोग देवी यंत्र स्थापित कर मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करें। इससे इन्हें लाभ होगा।

कर्क राशि👉  इस राशि के लोगों को मां शैलपुत्री की उपासना करनी चाहिए। लक्ष्मी सहस्त्रनाम का पाठ भी करें।
 
सिंह राशि👉  इस राशि के लोगों के लिए मां कूष्मांडा की पूजा विशेष फल देने वाली है। दुर्गा मन्त्रों का जाप करें।

कन्या राशि👉  इस राशि के लोग मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करें। लक्ष्मी मंत्रो का विधि-विधान पूर्वक जाप करें।

तुला राशि👉  इस राशि के लोगों को महागौरी की पूजा से लाभ होता है। काली चालीसा का पाठ करें।

वृश्चिक राशि👉  स्कंदमाता की पूजा से इस राशि वालों को शुभ फल मिलते हैं। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।

धनु राशि👉  इस राशि के लोग मां चंद्रघंटा की आराधना करें। साथ ही उनके मन्त्रों का विधि-विधान से जाप करें।


मकर राशि👉 इस राशि वालों के लिए मां काली की पूजा शुभ मानी गई है। नर्वाण मन्त्रों का जाप करें।

कुंभ राशि👉  इस राशि के लोग मां कालरात्रि की पूजा करें। नवरात्रि के दौरान रोज़ देवी कवच का पाठ करें।

मीन राशि👉  इस राशि वाले मां चंद्रघंटा की पूजा करें। हल्दी की माला से बगलामुखी मंत्रो का जाप भी करें।
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आचार्य मनोज तिवारी सहसेपुर
9005618107,9451280720

देवतुल्य पूज्य पिता जी को समर्पित
स्व. पंडित श्री राघव राम तिवारी
        कर्मकाण्ड मर्मज्ञ

बुधवार, 17 जून 2020

एकादशी महात्म्य

!! #श्रीएकादशी !!

 एकादशी व्रत भगवान् को अत्यंत प्रिय है हम संसारी जीवों को संसार चक्र से छुड़ाने के लिये भगवान् ने ही इस तिथि को प्रकट किया था , इस लिये मनुष्य मात्र को इस व्रत का पालन करना चाहिये । पद्म पुराण के उत्तर खण्ड में इस व्रत के सम्बंध में विस्तृत चर्चा प्राप्त होती है । श्रीमहादेव जी से श्रीपार्वती जी इस विषय में प्रश्न करतीं हैं और श्रीमहादेव जी इसका उत्तर देते हैं जिसमें बड़े ही स्पष्ट शब्दों में एकादशी की उपादेयता प्रतिपादित की गयी है । 

किसी समय पापपुरुष भगवान् के पास जाकर रोने लगा कि हे नाथ ! संसार के किसी व्रत नियम प्रायश्चित से मुझे भय नहीं है । लेकिन प्रभु एकादशी से मुझे महान भय प्राप्त होता है प्रभु उस दिन मुझे कहीं स्थान प्राप्त नहीं होता आप कृपा कर मुझे स्थान प्रदान करें । तब श्रीप्रभु बोले हे पाप पुरुष ! तुम एकादशी के दिन अन्न में वास करो -
     
अन्नमाश्रित्य तिष्ठन्तं भवन्तं पापपूरुषम् ।।                                    (प०पु०क्रि०२२/४९)
 
एकादशी के दिन जो अन्न खाता है वह साक्षात् पाप का ही भक्षण करता है । इस लिये ब्राह्मण , क्षत्रिय, वैश्य , शुद्र एवं स्त्री सभी को इस व्रत का पालन विशेष रूप से करना ही चाहिये । 

एकादशीं परित्यज्य योह्यन्यद्व्रतमाचरेत् ।
स करस्थं महद्राज्यं त्यक्त्वा भैक्ष्यं तु याचते ।।
                                    ( पद्मपु०उ०२३४/९ )

एकादशी व्रत को छोड़ कर जो मन्द बुद्धि अन्य व्रत को करता है उसका वह व्रत निष्फल ही होता है । जैसे कोई हाथ आये महान राज्य को छोड़ कर भिक्षा मांगे उसी के समान समझना चाहिये ।

एकादशेन्द्रियै: पापं यत्कृतं भवति प्रिये ।
एकादश्युपवासेन तत्सर्वं विलयं ब्रजेत् ।। (२३४/१०)
 
हे प्रिये ! पार्वती ! एकादश इन्द्रियों ( मन , पञ्च ज्ञानेन्द्रिय एवं पञ्च कर्मेन्द्रिय ) के द्वारा जो भी पाप ये जीव करता है वे सब एकादशी व्रत से समाप्त हो जाते हैं । इस लिये एकादशी व्रत अवश्य करना चाहिये । एकादशी के दिन भोजन करने वाले को ब्रह्महत्या , मद्यपान , चोरी और गुरुपत्नी गमन के जैसे महापाप लगते हैं । 

वर्णाश्रमाश्रमाणां च सर्वेषां वरवर्णिनि ।
एकादश्युपवासस्तु कर्तव्यो नाsत्रसंशयः ।। ( २३४/१७ )

हे वरवर्णिनि ! सभी वर्ण वालों एवं वर्णाश्रमियों को एकादशी का व्रत जरूर करना चाहिये इसमें कोई संशय नहीं है । बिना एकादशी व्रत के कोई भी प्रभु को प्राप्त नहीं कर सकता । भागवत जी में तो नंद बाबा द्वारा एकादशी व्रत करने का वर्णन आया है जिसके प्रभाव से ही प्रभु उनके बालक बन कर उनके मनोरथ को पूर्ण किये । 

नोट :- कुछ लोगों को भ्रांति है कि गुरु दीक्षा लेने के बाद ही एकादशी व्रत करना चाहिये लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है यह व्रत निश्चित ही सबको करना चाहिये ।

आचार्य मनोज तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही
9005618107

सोमवार, 15 जून 2020

उग्र विरभद्र सर्वेश्वरी साधना

वीरभद्र साधना

वीरभद्र, भगवान शिव के परम आज्ञाकारी हैं. उनका रूप भयंकर है, देखने में वे प्रलयाग्नि के समान, हजार भुजाओं से युक्त और मेघ के समान श्यामवर्ण हैं. सूर्य के तीन जलते हुए बड़े-बड़े नेत्र एवं विकराल दाढ़ें हैं. शिव ने उन्हें अपनी जटा से प्रकट किया था. इसलिए उनकी जटाएं साक्षात ज्वालामुखी के लावा के समान हैं. गले में नरमुंड माला वाले वीरभद्र सभी अस्त्र-शस्त्र धारण करते हैं. उनका रूप भले ही भयंकर है पर शिवस्वरूप होने के कारण वे परम कल्याणकारी हैं. शिवजी की तरह शीघ्र प्रसन्न होने वाले है.

वीरभद्र उपासना तंत्र में वीरभद्र सर्वेश्वरी साधना मंत्र आता है. यह एक स्वयं सिद्ध चमत्कारिक तथा तत्काल फल देने वाला मंत्र है. स्वयंसिद्ध मंत्र होने के कारण इसे सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती. अचानक कोई बाधा आ जाए, दुर्घटना का भय हो, कोई समस्या बार-बार प्रकट होकर कष्ट देती हो, कार्यों में बाधाएं आती हों, हिंसक पशुओं का भय हो या कोई अज्ञात भय परेशान करता है तो वीरभद्र सर्वेश्वरी साधना से उससे तत्काल राहत मिलती है.

यह तत्काल फल देने वाला मंत्र कहा गया है.

वीरभद्र मंत्र 1
ॐ हं ठ: ठ: ठ: सैं चां ठं ठ: ठ: ठ: ह्र: ह्रौं ह्रौं ह्रैं क्षैं क्षों क्षैं क्षं ह्रौं ह्रौं क्षैं ह्रीं स्मां ध्मां स्त्रीं सर्वेश्वरी हुं फट् स्वाहा

1. यदि पशुओं से या हिंसक जीवों से प्राणहानि का भय हो तब मंत्र के सात बार जप से निवारण हो जाता है.

2. यदि मंत्र को एक हज़ार बार बिना रुके लगातार जप लिया जाए तो स्मरण शक्ति में अद्भुत चमत्कार देखा जा सकता है.

3. यदि मंत्र का जप बिना रुके लगातार दस हजार बार कर लिया जाय तो त्रिकालदृष्टि यानी भूत, वर्त्तमान, भविष्य के संकेत पढ़ने की शक्ति आने लगती है.

4. मंत्र का बिना रुके लगातार लक्षजप यानी एक लाख जप रुद्राक्ष की माला से करने पर खेचरत्व और भूचरत्व की प्राप्ति हो जाती है. इसके लिए लाल वस्त्र धारण करके, लाल आसन पर विराजमान होकर उत्तर दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए.

5. इस साधना को हंसी खेल ना समझे. न ही इसे हंसी ठहाके में प्रयास करना चाहिए. आवश्यकता पड़ने पर ही और स्वयं या किसी अन्य के कल्याण के उद्देश्य से ही होना चाहिए. किसी को परेशान करने के उद्देश्य से होने पर उल्टा फल होगा.

6. महिलाओं के लिए यह वीरभद्र साधना पूर्णतः वर्जित है. महिलाएं निम्न रक्ततारा महामंत्र प्रयोग कर सकती हैं.

श्री रक्ततारा तंत्रनाशक महामंत्र
रक्तवर्णकारिणी,मुण्ड मुकुटधारिणी, त्रिलोचने शिव प्रिये, भूतसंघ विहारिणी
भालचंद्रिके वामे, रक्त तारिणी परे, पर तंत्र-मंत्र नाशिनी, प्रेतोच्चाटन कारिणी
नमो कालाग्नि रूपिणी,ग्रह संताप हारिणि, अक्षोभ्य प्रिये तुरे, पञ्चकपाल धारिणी
नमो तारे नमो तारे, श्री रक्त तारे नमो।
ॐ स्त्रीं स्त्रीं स्त्रीं रं रं रं रं रं रं रं रं रक्तताराय हं हं हं हं हं घोरे-अघोरे वामे खं खं खं खं खं खर्परे सं सं सं सं सं सकल तन्त्राणि शोषय-शोषय सर सर सर सर सर भूतादि नाशय-नाशय स्त्रीं हुं फट।

वीरभद्र तीव्र मंत्र 2
ॐ ड्रं ह्रौं बं जूं बं हूं बं स: बीर वीरभद्राय प्रस्फुर प्रज्वल आवेशय जाग्रय विध्वंसय क्रुद्धगणाय हुं
: ध्यानम्
 गोक्षीराभं दधानं परशुडमरुको खङ्गखेटौ कपालम् । शूलञ्चाभीतिदाने त्रिनयनमसितं व्याघ्र चर्माम्बराढ्यम् । वेतालारूढमुग्रं कपिशतर जटाबद्ध शीतांशुखण्डम् । ध्यायेद्भोगीन्द्रभूषं निजगणसहितं सन्ततं वीरभद्रम् ॥


आचार्य मनोज तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही
9005618107

मंत्र शक्ति एवं विविध मंत्र जप नियम एवं विधि

💯✔ मन्त्र शक्ती

देवताओं के मंत्रों में अपार शक्ति हैं । कई मंत्र ऐसे होते जिनके जपने से हमारे संकट दूर हो जाते हैं। आइए जानें अलग अलग देवताओं के अलग अलग मंत्रों के बारे में। धर्मग्रंथों के अनुसार ताकत, सफलता व इच्छाएं पूरी करने के लिए इष्टसिद्धि बहुत आवश्यक है इष्टसिद्धि का मतलब है कि व्यक्ति जिस देव शक्ति के लिए श्रद्धा और आस्था मन में बना लेता है, उस देवता से जुड़ी सभी शक्तियां, प्रभाव और चीजें उसे मिलने लगती हैं।

इष्टसिद्धि मे मां गायत्री का ध्यान बहुत शुभ होता है। गायत्री उपासना के लिए गायत्री मंत्र बहुत ही चमत्कारी और शक्तिशाली माना गया है। शास्त्रों के मुताबिक इस मंत्र के 24 अक्षर 24 महाशक्तियों के प्रतीक हैं। एक गायत्री के महामंत्र द्वारा इन देवशक्तियों का स्मरण हो जाता है।

24 देव शक्तियों के ऐसे 24 चमत्कारी गायत्री मंत्र मे से, जो देवी-देवता आपके इष्ट है, उनका विशेष देव गायत्री मंत्र बोलने से चमत्कारी फल प्राप्त होगा। शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक व भौतिक शक्तियों की प्राप्ति के लिए गायत्री उपासना सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। गायत्री ही वह शक्ति है जो पूरी

सृष्टि की रचना, स्थिति या पालन और संहार का कारण है। वेदों में गायत्री शक्ति ही प्राण, आयु, शक्ति, तेज, कीर्ति और धन देने वाली मानी गई है। गायत्री मंत्र को महामन्त्र पुकारा जाता है, जो शरीर की कई शक्तियों को जाग्रत करता है।

इष्टसिद्धी से मनचाहा काम बनाने के लिए गायत्री मंत्र के 24 अक्षरो के हर देवता विशेष के मंत्रों का स्मरण करें।

श्रीगणेश – मुश्किल कामों में कामयाबी, रुकावटों को दूर करने, बुद्धि लाभ के लिए इस गणेश गायत्री मंत्र का स्मरण करना चाहिए –

ॐ एकदृंष्ट्राय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो बुद्धिः प्रचोदयात्।

नृसिंह – शत्रु को हराने, बहादुरी, भय व दहशत दूर करने, पुरुषार्थी बनने व किसी भी आक्रमण से बचने के लिए नृसिंह गायत्री असरदार साबित होता है –

ॐ उग्रनृसिंहाय विद्महे वज्रनखाय धीमहि तन्नो नृसिंह प्रचोदयात्।

विष्णु – पालन-पोषण की क्षमता व काबिलियत बढ़ाने या किसी भी तरह से सबल बनने के लिए विष्णु गायत्री का महत्व है –

नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्।

शिव – दायित्वों व कर्तव्यों को लेकर दृढ़ बनने, अमंगल का नाश व शुभता को बढ़ाने के लिए शिव गायत्री मंत्र बड़ा ही प्रभावी माना गया है –

ॐ पञ्चवक्त्राय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।

कृष्ण – सक्रियता, समर्पण, निस्वार्थ व मोह से दूर रहकर काम करने, खूबसूरती व सरल स्वभाव की चाहत कृष्ण गायत्री मंत्र पूरी करता है –

ॐ देवकीनन्दाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्णः प्रचोदयात्।

राधा – प्रेम भाव को बढ़ाने व द्वेष या घृणा को दूर रखने के लिए राधा गायत्री मंत्र का स्मरण बढ़ा ही लाभ देता है

ॐ वृषभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि तन्नो राधा प्रचोदयात्।

लक्ष्मी – रुतबा, पैसा, पद, यश व भौतिक सुख-सुविधाओं की चाहत लक्ष्मी गायत्री मंत्र शीघ्र पूरी कर देता है –

ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे विष्णुप्रियायै धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।

अग्रि – ताकत बढ़ाने, प्रभावशाल व होनहार बनने के लिए अग्निदेव का स्मरण अग्नि गायत्री मंत्र से करना शुभ होता है-

ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निदेवाय धीमहि तन्नो अग्निः प्रचोदयात्।

इन्द्र – संयम के जरिए बीमारियों, हिंसा के भाव रोकने व भूत-प्रेत या अनिष्ट से रक्षा में इन्द्र गायत्री मंत्र प्रभावी माना गया है –

ॐ सहस्त्रनेत्राय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि तन्नो इन्द्रः प्रचोदयात्।

सरस्वती – बुद्धि व विवेक, दूरदर्शिता, चतुराई से सफलता मां सरस्वती गायत्री मंत्र से फौरन मिलती है –

ॐ सरस्वत्यै विद्महे ब्रह्मपुत्र्यै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्।

दुर्गा – विघ्नों के नाश, दुर्जनों व शत्रुओं को मात व अहंकार के नाश के लिए दु्र्गा गायत्री मंत्र का महत्व है-

ॐ गिरिजायै विद्महे शिव धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्।

हनुमानजी – निष्ठावान, भरोसेमंद, संयमी, शक्तिशाली, निडर व दृढ़ संकल्पित होने के लिए हनुमान गायत्री मंत्र का अचूक माना गया है –

ॐ अञ्जनीसुताय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि तन्नो मारुतिः प्रचोदयात्।

पृथ्वी – पृथ्वी गायत्री मंत्र सहनशील बनाने वाला, इरादों को मजबूत करने वाला व क्षमाभाव बढ़ाने वाला होता है –

ॐ पृथ्वी देव्यै विद्महे सहस्त्र मूर्त्यै धीमहि तन्नो पृथ्वी प्रचोदयात्।

सूर्य – निरोगी बनने, लंबी आयु, तरक्की व दोषों का शमन करने के लिए सूर्य गायत्री मंत्र प्रभावी माना गया है –

ॐ भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नो सूर्य्यः प्रचोदयात्।

राम – धर्म पालन, मर्यादा, स्वभाव में विनम्रता, मैत्री भाव की चाहत राम गायत्री मंत्र से पूरी होती है –

ॐ दाशरथये विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात्।

सीता – सीता गायत्री मंत्र मन, वचन व कर्म से विकारों को दूर कर पवित्र करता है। साथ ही स्वभाव मे भी मिठास घोलता है –

ॐ जनकनन्दिन्यै विद्महे भूमिजायै धीमहि तन्नो सीता प्रचोदयात्।

चन्द्रमा – काम, क्रोध, लोभ, मोह, निराशा व शोक को दूर कर शांति व सुख की चाहत चन्द्र गायत्री मंत्र से पूरी होती है –

ॐ क्षीरपुत्रायै विद्महे अमृततत्वाय धीमहि तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात्।

यम – मृत्यु सहित हर भय से छुटकारा, वक्त को अनुकूल बनाने व आलस्य दूर करने के लिए यम गायत्री मंत्र असरदार होता है –

ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि तन्नो यमः प्रचोदयात्।

ब्रह्मा – किसी भी रूप में सृजन शक्ति व रचनात्कमता बढ़ाने के लिए ब्रह्मा गायत्री मंत्र मंगलकारी होता है –

ॐ चतु्र्मुखाय विद्महे हंसारुढ़ाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्।

वरुण – दया, करुणा, कला, प्रसन्नता, सौंदर्य व भावुकता की कामना वरुण गायत्री मंत्र पूरी करता है –

ॐ जलबिम्बाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्।

नारायण – चरित्रवान बनने, महत्वकांक्षा पूरी करने, अनूठी खूबियां पैदा करने व प्रेरणास्त्रोत बनने के लिए नारायण गायत्री मंत्र शुभ होता है –

ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो नारायणः प्रचोदयात्।

हयग्रीव – मुसीबतों को पछाड़ने, बुरे वक्त को टालने, साहसी बनने, उत्साह बढ़ाने व मेहनती बनने के कामना ह्यग्रीव गायत्री मंत्र पूरी करता है –

ॐ वाणीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि तन्नो हयग्रीवः प्रचोदयात्।

हंस – यश, कीर्ति पाने के साथ संतोष व विवेक शक्ति जगाने के लिए हंस गायत्री मंत्र असरदार होता है –

ॐ परमहंसाय विद्महे महाहंसाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात्।

तुलसी – सेवा भावना, सच्चाई को अपनाने, सुखद दाम्पत्य, शांति व परोपकारी बनने की चाहत तुलसी गायत्री मंत्र पूरी करता है –

ॐ श्री तुलस्यै विद्महे विष्णु प्रियायै धीमहि तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।

ये देवशक्तियां जाग्रत, आत्मिक और भौतिक शक्तियों से संपन्न मानी गई है। इष्टसिद्धि के नजरिए से मात्र एक मंत्र से ही 24 देवताओं का इष्ट और उनसे जुड़ी शक्ति पाना साधक को सिद्ध बना देता

किसी भी सोमवार से पुर्व दिशा मे मुख करके मंत्र का 1 माला जाप रुद्राक्ष के माला से 21 दिनो तक करें। आसन-वस्त्र-समय को कोइ बंधन नही है। मंत्र जाप से पुर्व गुरु और गणेश स्मरण अवश्य करे,साथ मे हो सके तो "ॐ नमः शिवाय" का भी जाप करें और शिवलिंग का पुजन भी किया करे।
शम्भुनाथ शाबर मंत्र:-

।। ॐ नमो आदेश गुरु को,शम्भूनाथ कैलाश पर्वत पर रहेने वाले,पुरब से आवो पच्छिम से आवो उत्तर से आवो दक्षिण से आवो,आवो बाबा शम्भूनाथ मेरा कारज सिद्ध करो,दुहाई पार्वती माई की सब्द साचा पिंड काचा स्फुरो मंत्र इस्वरि वाचा आतम भाव साचा

इस मंत्र के जाप से कोई भी कार्य शिघ्र पुर्ण होता है। प्रत्येक मनोकामना पुर्ण होता है। सभी प्रकार के विद्या मे सफलता प्राप्त होता है। शिवजी के स्वप्न मे दर्शन भी प्राप्त हो सकते है। शिवप्रसाद प्राप्त होता है एवं किसी भी इतर योनी (भुत-प्रेत-यक्षिणी....इत्यादि) को इस मंत्र के सिद्धि से आकर्षित किया जा सकता है।

दुश्मनों से छुटकारा पाने के लिए करें काली की उपासना
मां काली की उपासना शत्रु और विरोधी को शांत करने के लिए करनी चाहिए किसी के मृत्यु के लिए नहीं.

आप विरोधी या किसी शत्रु से परेशान हैं तो उस समस्या से बचने के यह उपाय हैं -

आपके शत्रु अगर आपको परेशान करते हों तो आप लाल कपड़े पहनकर लाल आसन पर बैठें मां काली के समक्ष दीपक और गुग्गल की धूप जलाएं.

मां को प्रसाद में पेड़े और लौंग चढ़ाएं. इसके
बाद 'ॐ क्रीं कालिकायै नमः' का 11 माला जाप करके, शत्रु और मुकदमे से मुक्ति की प्रार्थना करें. आसन से उठने के पहले एक नींबू अवश्य काटे । कपूर भी जलावे
यह अर्चना लगातार 41 रातों तक करें.
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💯✔ भैरव साबर मन्त्र और शिव शावर मन्त्र वशीकरण मंत्र

ॐ गुरु जी सत नाम आदेश आदि पुरुष को !
काला भैरूं, गोरा भैरूं, भैरूं रंग बिरंगा !!
शिव गौरां को जब जब ध्याऊं, भैरूं आवे पास
पूरण होय मनसा वाचा पूरण होय आस
लक्ष्मी ल्यावे घर आंगन में,
जिव्हा विराजे सुर की देवी ,खोल घडा दे दड़ा !!
काला भैरूं खप्पर राखे,गौरा झांझर पांव
लाल भैरूं,पीला भैरूं,पगां लगावे गाँव
दशों दिशाओं में पञ्च पञ्च भैरूं !!
पहरा लगावे आप !दोनों भैरूं मेरे संग में चालें
बम बम करते जाप !! बावन भैरव मेरे सहाय हो
गुरु रूप से ,धर्म रूप से,सत्य रूप से, मर्यादा रूप से,
देव रूप से, शंकर रूप से, माता पिता रूप से,
लक्ष्मी रूप से,सम्मान सिद्धि रूप से,
स्व कल्याण जन कल्याण हेतु सहाय हो,
श्री शिव गौरां पुत्र भैरव !!
शब्द सांचा पिंड कांचा  चलो मंत्र ईश्वरो वाचा !!  

सिद्धि की द्रष्टि से इस मन्त्र का विधि विधान अलग है, परन्तु साधारण रूप में मात्र 11 बार रोज जपने की आज्ञा है ! श्री शिव पुत्र भैरव आपकी सहायत करेंगे !चार लड्डू बूंदी के ,मन्त्र बोलकर 7  रविवार को काले कुत्ते को खिलाएं

शक्तिशाली सिद्ध शाबर मंत्र और सुलेमानी शाबर मंत्र  को स्वयंसिद्धि मन्त्र के नाम से भी पुकारा जाता है यह मन्त्र अत्यन्त शक्तिशाली एवं अचूक है. अगर आप को लग रहा है की आप के दूकान अथवा घर आदि में किसी ने टोटका आदि कर रखा है अथवा घर में कोई व्यक्ति ज्यादा बीमार है, निर्धनता आपका पीछा नहीं छोड़ती, या कोई कार्य बनते बनते बिगड़ जाता हो

अथवा कोई तांत्रिक क्रिया द्वारा आपको बार बार परेशान कर रहा हो तो इन सब कष्टों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए शाबर मन्त्र को सबसे सिद्ध एवं प्रभावकारी माना गया है.

शाबर मन्त्र अन्य शास्त्रीय मंत्रो के भाँति उच्चारण में कठिन नहीं होते है, तथा इस अचूक मन्त्र को कोई भी बड़े आसनी प्रयोग कर अपने कायो को सिद्ध कर सकता है.

इन मंत्रो को थोड़े से जाप द्वारा सिद्ध किया जा सकता है तथा यह मन्त्र शीघ्र प्रभाव डालते है. इन मंत्रो का जो प्रभाव होता वह स्थायी है तथा शक्तिशाली हनुमान मन्त्र का कोई भी दुसरा काट नहीं है.

शाबर मंत्रो के सरल भाषा में होने के कारण इनका प्रयोग बहुत ही आसान है कोई भी इन्हे सुगमता से प्रयोग कर सकता है. यह मन्त्र दूसरे दुष्प्रभावी मंत्रो के काट में सहायक है.

शाबर मन्त्र के प्रयोग से प्रत्येक समस्या का निराकरण सहज ही जाता है. इस मन्त्र का प्रयोग कर व्यक्ति अपने परिवार, मित्र, संबंधी आदि की समस्याओं का निवारण करने में सक्षम है.

वैदिक, पौराणिक एवम् तांत्रिक मंत्रों के समान ‘शाबर-मंत्र’ भी अनादि हैं. सभी मंत्रों के प्रवर्तक मूल रूप से भगवान शंकर ही हैं, परंतु शाबर मंत्रों के प्रवर्तक भगवान शंकर प्रत्यक्षतया नहीं हैं, फिर भी इन मंत्रों का आविष्कार जिन्होंने किया वे परम शिव भक्त थे.

गुरु गोरखनाथ तथा गुरु मछन्दर नाथ शबरतंत्र के जनक माने जाते है. अपने साधन, जप-तप एवं सिद्धियो के प्रभाव से उन्होंने वह स्थान प्राप्त कर लिया जिसकी मनोकामना बड़े-बड़े तपस्वी एवं ऋषि मुनि करते है.
शाबर मंत्रो में ”आन शाप” तथा ”श्रद्धा और धमकी” दोनों का प्रयोग किया जाता है. साधक याचक होते हुए भी देवता को सब कुछ कहने का सामर्थ्य रखता है व उसी से सब कुछ करना चाहता है.
विशेष बात यह है कि उसकी यह ‘आन’ भी फलदायी होती है. आन का अर्थ है सौगन्ध. अभी वह युग गए अधिक समय नहीं बीता है, जब सौगन्ध का प्रभाव आश्चर्यजनक व अमोघ हुआ करता था.

शाबर मंत्रो में गुजराती, तम्मिल, कन्नड़ आदि भाषाओं का मिश्रण है. वैसे समान्यतः अधिकतर शाबर मन्त्र हिंदी में ही मिलते है.
प्रत्येक शाबर मंत्र अपने आप में पूर्ण होता है. उपदेष्टा ‘ऋषि’ के रूप में गोरखनाथ, सुलेमान जैसे सिद्ध पुरूष हैं. कई मंत्रों में इनके नाम का प्रवाह प्रत्यक्ष रूप से तो कहीं केवल गुरु नाम से ही कार्य बन जाता है.
इन मंत्रों में विनियोग, न्यास, तर्पण, हवन, मार्जन, शोधन आदि जटिल विधियों की कोई आवश्यकता नहीं होती. फिर भी वशीकरण, सम्मोहन, उच्चाटन आदि सहकर्मों, रोग-निवारण तथा प्रेत-बाधा शांति हेतु जहां शास्त्रीय प्रयोग कोई फल तुरंत या विश्वसनीय रूप में नहीं दे पाते, वहां ‘शाबर-मंत्र’ तुरंत, विश्वसनीय, अच्छा और पूरा काम करते हैं.

अब हम आपको सिद्ध शाबर मन्त्र के प्रयोग के बारे में बताए तथा इससे जुडी कुछ विशेष तथा ध्यान रखने वाली बातो के विषय में बताए.
शक्तिशाली शाबर मंत्र पहले से ही शक्तियों से परिपूर्ण और सिद्ध होते हैं.

सिद्ध शाबर मंत्र :-

”ॐ शिव गुरु गोरखनाथाय नमः !”

शाबर मंत्र के महत्त्वपूर्ण तथ्य :-

* किसी भी आयु, जाति और वर्ण के पुरुष या स्त्रियां इस मंत्र का प्रयोग कर सकते है.

* इन मंत्रों की साधना के लिए गुरु की आवश्यकता महत्त्वपूर्ण नहीं होती है.

* षट्कर्म की साधना को करने के लिए गुरु की राय अवश्य लेनी चाहिए.

* मंत्र के जाप के लिए लाल या सफेद आसन बिछाकर उस पर बैठना चाहिए.

* शाबर मंत्र का जाप श्रद्धा और विश्वास के साथ ही करना चाहिए.

विकटमुखी वशिकरण मंत्र

यह मंत्र अद्भुत है स्वयं सिद्ध है आप सिद्ध करने कि जरुरत नही सिधे प्रयग मे लाय। प्रतिदिन इस मत्र से अन्न के सात ग्रास अभिमत्रित कर साध्य के रुप. नाम चिँनता कर भोजन करे वो साध्य आपके वश मेँ होगा। इसमे सदेह करने का कई कारण नही है।लेकिन आप कुछ दिन तक आगर पाँच माल जाप कर यह प्रयग करे तो लाभ दोगुना होगा मंत्र-ॐ नमः कट् विकट घोररुपिणी स्वाहा

सर्वजन वशिकरण
यह एक भुत डामर तंत्र का सिद्ध वशीकरण प्रयोग हैं! इस मंत्र से आप अपनी माता ,पिता,भाई,बहन ,रिश्तेदार या किसी का भी वशीकरण कर सकतें हैं! इस मंत्र को सिर्फ ५०० बार रुद्राक्ष की माला से पूर्व या उत्तर दिशा में लाल रंग के आसन पर बैठकर जपने से आप किसी को भी अपने वशीभूत बना सकतें है!इसे सिर्फ ५०० बार जिसका ध्यान कर या जिसकी तस्वीर के सामने जपा जायेगा वे आपके वशीभूत होगा! जब तक काम ना बने जपते रहिये। दुसरा प्रयग- मन हि मन मेँ जाप करे और ध्यान करे जिसको आप वशिकरण करना चाहते हे वो आपका वश मेँ होगी या होगा। यह सिद्ध है आलग से सिद्ध करने कि जरुरत नही सिधा प्रयग मेँ लाय। मंत्र-म्रोँ ड़ोँ

चिँतन

आगर आप को कहा जाय कि आप हवा मेँ उड साकते है, पानी पर चाल साकते है, कुछ भी कर साकते है, आप कहगे पागल है, ऐसा होता है किया?? मेँ (मनोज तिवारी) कहुगा तो पागल लेकिन कोई विदेसि कहेगा तो शाच है। आज हम हिप्नाटिज्म को जानते है, विदेश मेँ वह एक टाईमपास खेल है, लेकिन हम डरते है।भारत मेँ ईसको वशिकरण विद्या कहाजाता है।वशिकरण नाम मात्र से लौग भागने लागते है,किया ए भयकंर है,मेरा मानना है नही।आप एक नजर से देखते है,ईस लिय आप को ए भयकंर विद्या लागता है,दुसरी नजर से देखगे तो आपको ए हाथ का खेलना लागेगा।आज वशिकरण वादल कर हिप्नाटिज्म वान गया है। विना मंत्र के आज ए विद्या काम करता है,समय के साथ वादला और ईसान का विमारी दुर कर रहा है। डकटरी विद्या मेँ ए एक विषय है।तंत्र को विज्ञान के नजर से देखगे तो आप का कायाकल्प कर देगा। कुछ नया करना चाहते तो तंत्र को विज्ञान के नजर से देखे ,नाकि ढगी साधुउ के नजर से देखे।सम्मोहन विद्या मेँ सफलता पाने मे तिस दिन लगता है । आप को भि ए मान ले कि कई काम एक दिन मेँ पुरा नही होगी,प्रतिदिन साधना (प्रेकटिस) करनी होगी। तंत्र मेँ वादलव करे और नया खेज करे फिर उड पायगे, जल पर चाल पायगे कुछ भी कर पायगे, लागता है ना अजिव ,साच माने सव संभाव है लेकिन इतना आसान भी नहीं है आज के समय में

विरभद्र साधना:-

भगवान वीरभद्र जो कि शिव शम्भू के अवतार हैं, उनकी पूजा-उपासना करने से बड़े-बड़े कष्ट दूर हो जाते हैं, वीरभद्र, भगवान शिव के परम आज्ञाकारी हैं, उनका रूप भयंकर है, देखने में वे प्रलयाग्नि के समान प्रतीत होते हैं। उनका शरीर महान ऊंचा है,। वे एक हजार भुजाओं से युक्त हैं। वे मेघ के समान श्यामवर्ण हैं! उनके सूर्य के समान जलते हुए तीन नेत्र हैं। एवं विकराल दाढ़ें हैं और अग्नि की ज्वालाओं की तरह लाल-लाल जटाएं हैं। गले में नरमुंडों की माला तो हाथों में तरह-तरह के अस्त्र-शस्त्र हैं! परन्तु वे भी भगवान शिव की तरह परम कल्याणकारी तथा जल्दी प्रसन्न होने वाले है! उनकी निम्नलिखित साधना पद्धति से तत्काल फल मिलता है, "वीरभद्र सर्वेश्वरी साधना मंत्र" जो उनके "वीरभद्र उपासना तंत्र" से लिया गया है, एक स्वयं सिद्ध चमत्कारिक तथा तत्काल फल देने वाला मंत्र है, स्वयंसिद्ध मंत्र से तात्पर्य उन मंत्रो से होता है जिन्हे सिद्ध करने की जरुरत नहीं पड़ती, वे अपने आप में सिद्ध होते हैं, इस मंत्र के जाप से अकस्मात् आयी दुर्घटना, कष्ट, समस्या आदि से क्षण भर में निपटा जा सकता है, (उदाहरण- कार्यबाधा, हिंसक पशु कष्ट, डर! इत्यादि) ये तत्काल फल देने वाला मंत्र है, और साथ ही साथ ये बेहद तीव्र तेज वाला मंत्र है, इसे मजाक अथवा हंसी ठिठोली में कदापि नहीं लेना चाहिए, इसके द्वारा प्राप्त किये जा सकने वाले लाभ - (१). इस मंत्र के स्मरण मात्र से डर भाग जाता है, और अकस्मात् आयी बाधाओ का निवारण होता है. जब भी किसी प्रकार के कोई पशुजन्य या दूसरे तरह से प्राणहानि आशंका हो तब इस मंत्र का ७ बार जाप करना चाहिए. इस प्रयोग के लिए मात्र मंत्र याद होना ज़रुरी है. मंत्र कंठस्थ करने के बाद केवल ७ बार शुद्ध जाप करें व चमत्कार देंखे! (२). अगर इस मंत्र का एक हज़ार बार बिना रुके लगातार जाप कर लिया जाए तो व्यक्ति की स्मरण शक्ति विश्व के उच्चतम स्तर तक हो जाती है तथा वह व्यक्ति परम मेधावी बन जाता है! (३). अगर इस मंत्र का बिना रुके लगातार १०,००० बार जप कर लिया जाए तो उसे त्रिकाल दृष्टि (भूत, वर्त्तमान, भविष्य का ज्ञान) की प्राप्ति हो जाती है! (४). अगर इस मंत्र का बिना रुके लगातार एक लाख बार, रुद्राक्ष की माला के साथ, लाल वस्त्र धारण करके तथा लाल आसान पर बैठकर, उत्तर दिशा की और मुख करके शुद्ध जाप कर लिया जाये, तो उस व्यक्ति को "खेचरत्व" एवं "भूचरत्व" की प्राप्ति हो जायेगी! मंत्र इस प्रकार है -ॐ हं ठ ठ ठ सैं चां ठं ठ ठ ठ ह्र: ह्रौं ह्रौं ह्रैं क्षैं क्षों क्षैं क्षं ह्रौं ह्रौं क्षैं ह्रीं स्मां ध्मां स्त्रीं सर्वेश्वरी हुं फट् स्वाहा

:ऋण मुक्ति भैरव साधना:-

: हर व्यक्ति के जीवन में ऋण एक अभिशाप है !एक वार व्यक्ति इस में फस गया तो धस्ता चला जाता है ! सूत की चिंता धीरे धीरे मष्तश पे हावी होती चली जाती है जिस का असर स्वस्थ पे होना भी स्वाभिक है ! प्रत्येक व्क्यती पे छ किस्म का ऋण होता है जिस में पित्र ऋण मार्त ऋण भूमि ऋण गुरु ऋण और भ्राता ऋण और ऋण जिसे ग्रह ऋण भी कहते है !संसारी ऋण (कर्ज )व्यक्ति की कमर तोड़ देता है मगर हजार परयत्न के बाद भी व्यक्ति छुटकारा नहीं पाता तो मेयूस हो के ख़ुदकुशी तक सोच लेता है !मैं जहां एक बहुत ही सरल अनुभूत साधना प्रयोग दे रहा हु आप निहचिंत हो कर करे बहुत जल्द आप इस अभिशाप से मुक्ति पा लेंगे ! विधि – शुभ दिन जिस दिन रवि पुष्य योग हो जा रवि वार हस्त नक्षत्र हो शूकल पक्ष हो तो इस साधना को शुरू करे वस्त्र --- लाल रंग की धोती पहन सकते है ! माला – काले हकीक की ले ! दिशा –दक्षिण ! सामग्री – भैरव यन्त्र जा चित्र और हकीक माला काले रंग की ! मंत्र संख्या – 12 माला 21 दिन करना है ! पहले गुरु पूजन कर आज्ञा ले और फिर श्री गणेश जी का पंचौपचार पूजन करे तद पहश्चांत संकल्प ले ! अपने जीवन में स्मस्थ ऋण मुक्ति के लिए यह साधना कर रहा हु हे भैरव देव मुझे ऋण मुक्ति दे !जमीन पे थोरा रेत विशा के उस उपर कुक्म से तिकोण बनाए उस में एक पलेट में स्वास्तिक लिख कर उस पे लाल रंग का फूल रखे उस पे भैरव यन्त्र की स्थापना करे उस यन्त्र का जा चित्र का पंचौपचार से पूजन करे तेल का दिया लगाए और भोग के लिए गुड रखे जा लड्डू भी रख सकते है ! मन को स्थिर रखते हुये मन ही मन ऋण मुक्ति के लिए पार्थना करे और जप शुरू करे 12 माला जप रोज करे इस प्रकार21 दिन करे साधना के बाद स्मगरी माला यन्त्र और जो पूजन किया है वोह समान जल प्रवाह कर दे साधना के दोरान रवि वार जा मंगल वार को छोटे बच्चो को मीठा भोजन आदि जरूर कराये ! शीघ्र ही कर्ज से मुक्ति मिलेगी और कारोबार में प्रगति भी होगी ! मंत्र—ॐ ऐं क्लीम ह्रीं भम भैरवाये मम ऋणविमोचनाये महां महा धन प्रदाय क्लीम स्वाहा !!

हनुमान साधना:-

ये साधना आप किसी भी मंगलवार से आरंभ कर सकते हे । साधना सुरू करने से पहले साधना शुद्ध जल से स्नान कर के साधना के लिए लाल वस्त्र एवं लाल आसान ओर लाल रंग का ही पोशाक पहने । इस साधना मे साधक को 11 दिन मंत्र का जाप करना हे । ओर इस तरह साधक को रोज 108 मंत्र यानि रोज 1 माला मंत्र का जाप करना हे । साधना के दौरान धूप, दीप, ओर खुशबूदार अगरबत्ती जलाए ओर ये साधना रात के समय ने ही करे । मंत्र :- ओम गुरूजी हनुमानजी कावल कुंडा हाथी खप्पर छडी मसान गुग्गल धुप जाप तेरा, तेरा रूप शाकिनी बांधू डाकिनी बांधू भूत को बांधू अटल को बांधू पाताल टेकरी को बांधू हनुमानजी के रोचना को बांधू, घर घर जाओ, ना माने चार गदा लगाओ, जेसे सीता माँ के सतको राखे वैसे मेरे सतको रखो, आवो आवो हनुमान घट्ट पिंड में समाओ हनुमान, हनुमान बेठे रानी आई, गदा बेठी, राजा ये मंत्रबहुतहीशक्तिशालीहेओरइससाधनाकरनेसेसाधनाकोहरपलआपनेपासभगवानहनुमानकोअपनेपासमहसूसपाओगे।औरसाधकहनुमानजीकीकृपासेसबखतरोंसेबचजाएगीजय

सर्व सिद्धि साधना

यह साधना मेरी ही नहीं कई साधको की अनुभूत है !काफी उच कोटी के संतो से प्राप्त हुई है और फकीरो में की जाने वाली साधना है !इस के क्यी लाभ है !यह एक बहुत ही चमत्कारी साधना है ! 1 इस साधना से किसी भी अनसुलझे प्रशन का उतर जाना जा सकता है !अगर इस को सिद्ध कर लिया जाए और मात्र 5 जा 10 मिंट इस मंत्र का जप कर सो जाए जा आंखे बंद कर लेट जाए तो यह चल चित्र की तरह सभी कुश दिखा देती है ! और जो भी आपका प्रश्न है! उसका उतर दिखा देती है !क्यी वार कान में आवाज भी दे देती है जो आप जानना चाहते है ऐसा बहुत वार परखा गया है ! 2 इस साधना से किसी भी शारीरिक दर्द का इलाज किया जा सकता है !दर्द चाहे कही भी हो इस मंत्र को पढ़ते जदी कुश देर दर्द वाली जगह पे हाथ फेरा जाए तो कुश ही मिंटो में दर्द गायब हो जाता है ! 3 इस से किसी भी भूत प्रेत को शांत किया जा सकता है!इस मंत्र से बतासे अभिमंत्रिक कर रोगी को पहले एक दिया जाता है फिर दूसरा और फिर तीसरा और उस पे जो भी छाया हो वोह उसी वक़्त सवारी में हाजर हो जाती है!तब उस से पूछ लिया जाता है के उसे क्या चाहिए और कहा से आई है किस ने भेजा है आदि आदि और फिर उसे और बताशा दिया जाता है जिस से वोह शांत हो चले जाती है इस तरह बहुत वार परखा गया है! यह बहुत ही आसान साधना है भूत प्रेत भागने की और अगर देवता की क्रोपी भी हो वोह भी बता देते है के उन्हे क्या चाहिए इस का प्रयोग सिर्फ अनुभवी व्यक्ति ही करे इसका एक अलग विधान है के कैसे करना है !इस साधना को होली और फिर आने वाले ग्रहण में करे जितनी वार की जाती है इसकी ताकत बढ़ती है ! 4 जदी इसे अनुष्ठान रूप में स्वा लाख जप लिया जाए तो व्यक्ति हवा में से मन चाहा भोजन प्राप्त कर सकता है जब अनुष्ठान के रूप में की जाती है तो साधना समाप्ती पे दो आदमी प्रकट होते है जिन के हाथो में वाजे होते है जब वोह दिख जाए तो सवाल जबाब कर लेना चाहिए उस के बाद वोह शून्य में से पदार्थ प्राप्त करा देते है! हमारे संत बताते थे के इस से स्वर्ग तक की चीजे भी प्राप्त कर सकते है और हर प्रकार का स्वादिष्ट भोजन भी क्यी साधू लोग इसी के बल पे जंगल में बैठे वढ़िया भोजन प्राप्त कर लेते है ! इसका अनुष्ठान 40 दिन में सवा लाख मंत्र जप करे !अगर किसी कारण वश पहली वार सफलता न मिले तो घबराए न दुयारा करे यह अनुभूत है ! इस साधना के भूत भविष्य दर्शन की एक बेजोड़ साधना है! इस का साधक कभी भूत प्रेत के चक्र में नहीं फसता और अपनी व अपने सभी साथियो की सुरक्षा कर लेता है !इस से किसी के भी मन की बात जान सकते है और उस अपने अनुकूल बना सकते है ! और यह साधना घर से गए व्यक्ति का पता कुश ही मिंटो में लगा लेती है ! कुश ही दिन करने से इस साधना की दिव्य्य्ता का स्व पता चल जाता है ! विधि – 1 इस साधना को सफ़ेद वस्त्र धारण कर करे ! 2 आसान सफ़ेद हो ! 3 माला सफ़ेद हकीक की ले ! 4 दिशा उतर रहे ! 5 अगर होली या ग्रहण पे कर रहे है तो 11 माला कर ले ! मगर इस से पूर्ण लाभ नहीं मिलेगे सिर्फ आने वाले समय के वारे स्वपन में जानकारी मिल जाएगी और किसी प्रश्न का उतर पता लगाया जा सकता है ! 6 अगर इसे अनुष्ठान के रूप में करते है जो उपर वाले सभी लाभ मिल जाते है 7 आसन पे बैठ जाए पहले गुरु पूजन और गणेश पूजन कर फिर शिव आज्ञा और अपने सहमने एक कागज पे थोरे चावल चीनी और घी जो की गऊ का हो रख ले कागज पे बस थोरा थोरा ही डाले और मंत्र जप पूर्ण होने पर उसे किसी चोराहे पे छोड़ दे और घर आके मुह हाथ दो ले इस तरह यह साधना सिद्ध हो जाती है !अगर सवा लाख कर रहे है तो यह स्मगरी रोज भी ले सकते है और पहले जा अंतिम दिन भी ले सकते है जैसी आपकी ईशा कर ले मगर इस स्मगरी को बिना रखे साधना न करे नहीं तो शरीर मिटी के समान बेजान सा लगता है जब तक आप यह पुजा नहीं रखते ! 8 जब किसी के घर जा रहे है अगर कोई बुलाने आया है के हमारा घर देखो क्या हुया है तो इस मंत्र से कुश बतासे पढ़ कर छत पे डाल दे फिर जाए और जा 7 बतासे ले उन्हे पढ़ कर उन में से चार छत पे डाल दे बाकी तीन साथ ले जाए और रोगी को एक एक करके दे देने से वोह ठीक हो जाता है जा उस पे अगर कुश होगा तो सिर या कर बोल देगा! 9 साधना काल में शुद्ध घी का दीपक जलता रहना चाहिए और अगरवती आदि लगा दे ! 10 साधना काल में ब्रह्मचारेय का पालन अनिवार्य है !साबर मंत्र --- ॐ नमो परमात्मा मामन शरीर पई पई कुरु कुरु सवाहा !!

लक्षमी यक्षणी साधना

लक्ष्मी यक्षणी कुबेर ने धन पूर्ति के लिए जेबी महा लक्ष्मी की साधना की तो महा लक्ष्मी ने पर्सन हो कर वर मांगने को कहा तो श्री कुबेर जी ने उन्हे अपने लोक अल्का पूरी में निवास करने को कहा तो लक्ष्मी जी ने व्हा यक्षणी रूप में निवास किया और तभी से वहाँ धन की स्दह पूर्ति होती रहती है ! हर एक चाहता है उस के पास सभी सुख हो और उसे कभी किसी का मोहताज न होना पड़े जीवन में हर क्षेत्र में उच्ता मिले शरीर भी सोन्द्र्यवान हो और धन की भी प्रचुर अवस्ता में प्राप्ति हो ! इस के लिए यक्षणी साधनाए काफी महत्व पूर्ण मानी जाती है ! और उनसे भी उत्म यह है के ऐसी यक्षणी साधना हो जो जल्द सीध हो और जो सभी मनोरथ पूरे करे ! यह लक्ष्मी यक्षणी की साधना है इस एक साधना को करने से 108 यक्षणिए सिद्ध हो जाती ! और साधक की हर ईछा पूर्ण करती है ! इस साधना का विधान जटिल है फिर भी उसे आसान तरीके से दे रहा हु ! एक कटोरी में चावल संदूर चन्दन और कपूर मिश्रत कर ले और लक्ष्मी के 108 नाम से नमा लगा कर पूजन करे और लक्ष्मी के 108 नाम आप किसी भी लक्ष्मी पूजन की बूक में देख सकते है ! सुंगधित तेल का दिया लगा दे एक पात्र में कुश उपले जला के उस में गूगल और लोहवान धुखा दे सुगधित अगरवाती भी लगाई जा सकती है ! लाल कनेर से पूजन करे ! और गुरु मंत्र का एक माला जप कर के लक्ष्मी यक्षणी मंत्र का 101 माला जप करे यह कर्म 14 दिन करना है ! और साधना पूरी होने पे कनेर के फूल और घी से हवन करना है 10000 मंत्रो से ! इस प्रकार यह साधना सिद्ध हो जाती है और साधक को रसयान सिधी प्रदान करती है ! इस से साधक के जीवन में कभी धन की कमी नहीं आती जैसे चाहे जितना भी खर्चे धन घर में आता ही रेहता है इस के लिए कुबेर यंत्र और श्री यंत्र का पूजन करे और कमल गट्टे की माला जा लाल चन्दन की माला का उपयोग करे ! दिशा उतर और वस्त्र पीले धारण करे ! हवन के बाद घर में बनी खीर जा मिष्ठान का भोग लगाए ! यह साधना सोमवार स्वाति नक्षत्र से शुरू करे ! मंत्र — ॐ लक्ष्मी वं श्रीं कमलधारणी हंसह सवाहा !!

पाताल क्रिया साधना

इस साधना कि कई अनुभूतिया है,और साधना भि एक दिन कि है.कई येसे रोग या बीमारिया है जिनका निवारण नहीं हो पाता ,और दवाईया भि काम नहीं करती ,येसे समय मे यह प्रयोग अति आवश्यक है.यह प्रयोग आज तक अपनी कसौटी पर हमेशा से ही खरा उतरा है .
प्रयोग सामग्री :-
एक मट्टी कि कुल्हड़ (मटका) छोटासा,सरसों का तेल ,काले तिल,सिंदूर,काला कपडा .
प्रयोग विधि :-
शनिवार के दिन श्याम को ४ या ४:३० बजे स्नान करके साधना मे प्रयुक्त हो जाये,सामने गुरुचित्र हो ,गुरुपूजन संपन्न कीजिये और गुरुमंत्र कि कम से कम ५ माला अनिवार्य है.गुरूजी के समक्ष अपनी रोग बाधा कि मुक्ति कि लिए प्रार्थना कीजिये.मट्टी कि कुल्हड़ मे सरसों कि तेल को भर दीजिये,उसी तेल मे ८ काले तिल डाल दीजिये.और काले कपडे से कुल्हड़ कि मुह को बंद कर दीजिये.अब ३६ अक्षर वाली बगलामुखी मंत्र कि १ माला जाप कीजिये.और कुल्हड़ के उप्पर थोडा सा सिंदूर डाल दीजिये.और माँ बगलामुखी से भि रोग बाधा मुक्ति कि प्रार्थना कीजिये.और एक माला बगलामुखी रोग बाधा मुक्ति मंत्र कीजिये.
मंत्र :-
|| ओम ह्लीम् श्रीं ह्लीम् रोग बाधा नाशय नाशय फट ||
मंत्र जाप समाप्ति के बाद कुल्हड़ को जमींन गाड दीजिये,गड्डा प्रयोग से पहिले ही खोद के रख दीजिये.और ये प्रयोग किसी और के लिए कर रहे है तो उस बीमार व्यक्ति से कुल्हड़ को स्पर्श करवाते हुये कुल्हड़ को जमींन मे गाड दीजिये.और प्रार्थना भि बीमार व्यक्ति के लिए ही करनी है.चाहे व्यक्ति कोमा मे भि क्यों न हो ७ घंटे के अंदर ही उसे राहत मिलनी शुरू हो जाती है.कुछ परिस्थितियों मे एक शनिवार मे अनुभूतिया कम हो तो यह प्रयोग आगे भि किसी शनिवार कर सकते है.

भैरव साधना

मंत्र-:ॐ नमो भैंरुनाथ, काली का पुत्र! हाजिर होके, तुम मेरा कारज करो तुरत। कमर
बिराज मस्तङ्गा लँगोट, घूँघर-माल। हाथ बिराज डमरु खप्पर त्रिशूल। मस्तक
बिराज तिलक सिन्दूर। शीश बिराज जटा-जूट, गल बिराज नोद जनेऊ। ॐ नमो
भैंरुनाथ, काली का पुत्र ! हाजिर होके तुम मेरा कारज करो तुरत। नित उठ करो
आदेश-आदेश।”
विधिः पञ्चोपचार से पूजन। रविवार से शुरु करके २१ दिन तक मृत्तिका की
मणियों की माला से नित्य अट्ठाइस (२८) जप करे। भोग में गुड़ व तेल का शीरा
तथा उड़द का दही-बड़ा चढ़ाए और पूजा-जप के बाद उसे काले श्वान को खिलाए। यह
प्रयोग किसी अटके हुए कार्य में सफलता प्राप्ति हेतु है।

कालि साधना
“डण्ड
भुज-डण्ड, प्रचण्ड नो खण्ड। प्रगट देवि, तुहि झुण्डन के झुण्ड। खगर दिखा
खप्पर लियां, खड़ी कालका। तागड़दे मस्तङ्ग, तिलक मागरदे मस्तङ्ग। चोला जरी
का, फागड़ दीफू, गले फुल-माल, जय जय जयन्त। जय आदि-शक्ति। जय कालका
खपर-धनी। जय मचकुट छन्दनी देव। जय-जय महिरा, जय मरदिनी। जय-जय चुण्ड-मुण्ड
भण्डासुर-खण्डनी, जय रक्त-बीज बिडाल-बिहण्डनी। जय निशुम्भ को दलनी, जय शिव
राजेश्वरी। अमृत-यज्ञ धागी-धृट, दृवड़ दृवड़नी। बड़ रवि डर-डरनी ॐ ॐ ॐ।।”
विधि - नवरात्रों में प्रतिपदा से नवमी तक घृत का दीपक प्रज्वलित रखते हुए
अगर-बत्ती जलाकर प्रातः-सायं उक्त मन्त्र का ४०-४० जप करे। कम या ज्यादा न
करे। जगदम्बा के दर्शन होते हैं।

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💯✔ #लाखो_मंत्र_जपे_पर_लाभ_कुछ_नहीं #समय_श्रम_दोनों_बर्बाद

   आज के समय में साधकों की बाढ़ आई हुई है ,#ज्योतिषियों की बाढ़ आई हुई है |#ज्योतिषी सलाह देता है ,अमुक मंत्र इतना संख्या में जपो ,अमुक पूजा करो ,आपकी समस्या हल हो जायेगी |उसके बारे में बताया कुछ नहीं की कैसे करें ,पद्धति-तरीका क्या हो ,बस जप लो |आधे को तो खुद पता नहीं होता ,कुछ को पता होता है तो समय बचाने के लिए बस #मंत्र बता कर छुट्टी कर लेते हैं |#मंत्र जपने वाल दुगुना जप लेता है पर उसे कोई परिणाम समझ नहीं आता ,तो वह सोचता है की #ज्योतिषी सही नहीं ,#पूजा -#मंत्र #जप से कुछ नहीं होता |उसकी गलती भी नहीं होती |उसे जितना पता होता है वह करता तो है ही |

           ऐसा ही नवागंतुक साधकों के साथ होता है ,#तंत्र अथवा #मंत्र -#यन्त्र के क्षेत्र में अधिकतर आते हैं शक्ति पाने ,चमत्कार करने के #लालच में ,कुछ अपनी समस्या दूर करने चक्कर में और कुछ वास्तव में मुक्ति की इच्छा से ,पर ९९ प्रतिशत को अपेक्षित सफलता नहीं मिलती |कारण सही पद्धति -सही ज्ञान -सही तरीका नहीं पता |या तो किताब से कुछ करने का प्रयास करते हैं या अधकचरे ज्ञान वाले गुरुओं के चक्कर में पड़ जाते हैं जिन्हें या तो खुद कुछ आता नहीं या एकाध मंत्र अपने गुरु से पाकर कुछ सिद्धियाँ करके #गुरु बन बैठते हैं |साधक बेचारे क्या करेंगे जब #गुरु ही उन्हें सही मार्गदर्शन नहीं दे पाता |गुरु जी को मंत्र का विज्ञान पता ही नहीं है |कैसे काम करता है ,कहाँ किस मंत्र का क्या प्रभाव होता है |कैसे इसकी ऊर्जा साधक तक आती है ,कहाँ से आती है |कैसे इस ऊर्जा को प्राप्त किया जाए |कैसे #मंत्र को जपा जाए |कैसे उसका उच्चारण हो |कहाँ आरोह अवरोह हो |कहाँ नाद हो |किस #मंत्र को करने में कितना समय लें |आदि आदि

           अधिकतर व्यक्ति या साधक #मंत्र जप करते समय जप की संख्या पर ध्यान देते हैं |अधिकतर का ध्यान होता है की इतनी संख्या करनी है या इतनी संख्या करेंगे तो इतने दिन में इतना हो जाएगा और साधना या अनुष्ठान या संकल्प पूरा हो जाएगा |रेट रटाये ढंग से जल्दबाजी में #मंत्र जप करते हैं ,करते रोज हैं और निश्चित संख्या के दिनों तक भी करते हैं पर जब कर चुकते हैं  तो परिणाम की प्रतीक्षा करते हैं पर समझ में कुछ नहीं आता |अब उनमे #अविश्वास जन्म लेता है की किया तो इतना दिन ,इतनी तपस्या की कुछ नहीं हुआ ,#मंत्र #जप #पूजा आदि से कुछ नहीं होता जो भाग्य में लिखा है वही होता है |आदि आदि |

लोग यह #ध्यान नहीं देते की वह जिस मंत्र का जप कर रहे हैं वह सही है की नहीं ,#शुद्ध है की नहीं ,सही लक्ष्य के लिए सही मंत्र है की नहीं |मंत्र का उच्चारण क्या होना चाहिए ,मंत्र कितने समय में होना चाहिए या कितना लम्बा या किस स्वर  में होना चाहिए |इसका समय क्या होना चाहिए |आदि |अधिकतर का #ध्यान मंत्र जप के समय कहीं और घूमता रहता है |अधिकतर जल्दबाजी में होते हैं की कब जप पूरा हो और अमुक कार्य किया जाए |जैसे साधना -पूजा न कर रहे हों एक जिम्मेदारी पूरी कर रहे हों |देवता या ईष्ट की ओर #ध्यान एकाग्र होता ही नहीं |भावहीनता में होते हैं ,एकमात्र अपना लक्ष्य दिखाई देता है |देवता से मानसिक जुड़ाव हुआ ही नहीं होता |परिणाम होता है की प्रकृति की सम्बंधित ऊर्जा मंत्र के द्वारा व्यक्ति से जुड़ पाती ही नहीं |#देवता को मंत्र सुनाई देता ही नहीं |मंत्र जप मात्र रटने से ,बिना नाद के जपने से उसमे कोई ऊर्जा उत्पन्न नहीं होती ,वह आपके ही चक्रों को आंदोलित नहीं करता तो प्रकृति की ऊर्जा से क्या जुड़ पायेगा और उन्हें आकर्षित कर पायेगा |यहाँ तक की शाबर मन्त्र जिनमे न अर्थ होते हैं न नाद वह भी बिना भाव के काम नहीं करते |बिना भाव और आत्मबल के आप शाबर मंत्र भी रटेंगे तो आपको परिणाम मुश्किल है मिलना |

         ध्यान दीजिये हर मंत्र की एक #विशिष्ट_नाद होती है ,विशिष्ट उच्चारण होता है ,विशिष्ट देवता होते हैं |#विशिष्ट_मंत्र का #विशिष्ट_चक्र से सम्बन्ध होता है |विशिष्ट मंत्र प्रकृति के विशिष्ट प्रकार की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है और उसे #आकर्षित करता है ,साधक या मंत्र जपने वाले से जोड़ता है |अतः उसका पाठ उसी तरह के भाव ,नाद ,उच्चारण के साथ होना चाहिए |आपका मानसिक तारतम्य सम्बंधित शक्ति और मंत्र की ऊर्जा से बना होना चाहिए |नहीं तो वह अगर आकर्षित हो भी गई तो आपसे जुड़ नहीं पाएगी और वातावरण में पुनः बिखर जायेगी |महत्त्व #मंत्र की संख्या जपने का नहीं होता ,सही उच्चारण ,सही नाद का होता है |सही भाव का होता है ,सही भावना का होता है |सही तरीके और पद्धति का होता है |सही समय का होता है .एकाग्रता का होता है |अगर यह सब नहीं है तो आप कई लाख भी जप कर लीजिये आपको परिणाम मिलना मुश्किल है |#मंत्र असंदिग्ध रूप से काम करते हैं बशर्ते आप सही ढंग से उन्हें जप सकें |अगर रटंत जप करेंगे तो कुछ नहीं मिलेगा ,इससे तो अच्छा होगा की आप कोई जप न करो और केवल सम्बंधित देवता के रूप -गुण -भाव में ही डूबिये आपको जरुर लाभ मिलेगा |अगर मंत्र कर रहे हैं तो ढंग से कीजिये |

          सवा लाख ,लाखों लाख या निश्चित संख्या में जप करना कोई मायने नहीं रखता |आप कुछ हजार ही जप कर लीजिये और सही ढंग से कर लीजिये तो आपको लाखों लाख से अधिक लाभ हो जाएगा |उदाहरण के लिए #ॐ का जप कुछ लोग करते हैं ,अधिकतर #ॐ को मंत्र के आगे लगाते हैं |पर बहुत कम को पता है की अगर #ॐ का सही ढंग से जप कर दिया जाए तो दीवार टूट जाती है ,यह वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो चूका है |हम क्या करते हैं #ॐ को लगाया या #ॐ #ॐ करते चले गए ,न नाद न समयांतराल न उच्चारण न गूँज किसी पर ध्यान नहीं दिया |#ऊर्जा उत्पन्न हुई ही नहीं ,आपके चक्र को आन्दोलित की ही नहीं |प्रकृति की ऊर्जा से जुडी ही नहीं तो लाभ क्या होगा |#ॐ का जप जब भी हो एक गूँज पैदा होनी चाहिए ,जो आपको और वातावरण को गुंजित करें |इसकी गूँज ह्रदय में गुंजित होनी चाहिए |तभी यह आंदोलित करेगा आपके सम्बंधित #चक्र को और वहां से तरंग उत्पादन बढ़ेगा और वातावरण की #ऊर्जा को आकर्षित करेगा |ऐसा ही सभी #मन्त्रों में है |अगर ऐसा न होता तो अलग बीज और #बिन्दुओं का प्रयोग क्यों होता |हर बीज का हर मंत्र का अपना उच्चारण ,नाद है उसे उसी ढंग से किया जाना चाहिए |सही ढंग से कर दीजिये कुछ हजार में आपको लाभ मिल जाएगा |रोज हजारों जप मत कीजिये कुछ सौ कीजिये पर आराम से धीरे धीरे पूरी एकाग्रता ,#ध्यान ,#भाव ,#नाद ,#उच्चारण से कीजिये #देवता प्रसन्न हो जाएगा |



आचार्य मनोज तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही
9005618107