रविवार, 21 जून 2020

मां बगलामुखी माला मंत्र

मां बगलामुखी माला मंत्र बहुत ही उत्तम एवं विशेष प्रभावी है। किसी भी देवता का माला मंत्र बहुत ही
उग्र होता है किसी जानकार से या गुरु के सानिध्य में
इसका जप करना चाहिए। अगर नियम पूर्वक जप किया जाए तो मां अपने साधक के समस्त शत्रुओं का शमन कर देती है। और उसके समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करती है। और अंत में मोक्ष प्रदान करती है। पर माला मंत्र का जप वृद्धावस्था में विशेष प्रभावी होता है।
🚩🌺🌺🐚🔱 जय माई की 🔱🐚🌺🌺🚩
देवतुल्य पूज्य पिता जी को समर्पित
        कर्मकाण्ड मर्मज्ञ
स्व. पंडित श्री राघव राम तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही

🚩🌺🌺🌺 जय माई की 🌺🌺🌺🚩

किसी भी प्रकार की साधना के लिए सम्पर्क करें
          आचार्य मनोज तिवारी
          सहसेपुर खमरिया भदोही
      9005618107,9451280720
   

आषाढ़ मास के गुप्त नवरात्रि में दशमहाविद्या कि साधना विशेष रूप से लाभदायक होती है।

गुप्त नवरात्रि विशेष
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इस वर्ष आषाढ़ गुप्त नवरात्र 22 जून 2020 से लेकर 29 जून 2020 तक रहेगी। गुप्त नवरात्रि में साधक गुप्त साधनाएं करने शमशान व गुप्त स्थान पर जाते हैं। नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों में वृद्धि करने के लिये अनेक प्रकार के उपवास, संयम, नियम, भजन, पूजन योग साधना आदि करते हैं । सभी नवरात्रों में माता के सभी 51पीठों पर भक्त विशेष रुप से माता के दर्शनों के लिये एकत्रित होते हैं। माघ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं, क्योंकि इसमें गुप्त रूप से शिव व शक्ति की उपासना की जाती है जबकि चैत्र व शारदीय नवरात्रि में सार्वजिनक रूप में माता की भक्ति करने का विधान है । आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि में जहां वामाचार उपासना की जाती है । वहीं माघ मास की गुप्त नवरात्रि में वामाचार पद्धति को अधिक मान्यता नहीं दी गई है । ग्रंथों के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष का विशेष महत्व है।

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते 

“सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित: ।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय: ॥”

प्रत्यक्ष फल देते हैं गुप्त नवरात्र
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गुप्त नवरात्र में दशमहाविद्याओं की साधना कर ऋषि विश्वामित्र अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन गए। उनकी सिद्धियों की प्रबलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक नई सृष्टि की रचना तक कर डाली थी । इसी तरह, लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद ने अतुलनीय शक्तियां प्राप्त करने के लिए गुप्त नवरात्रों में साधना की थी शुक्राचार्य ने मेघनाद को परामर्श दिया था कि गुप्त नवरात्रों में अपनी कुलदेवी निकुम्बाला की साधना करके वह अजेय बनाने वाली शक्तियों का स्वामी बन सकता है…गुप्त नवरात्र दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्रों से एक प्राचीन कथा जुड़ी हुई है एक समय ऋषि श्रृंगी भक्त जनों को दर्शन दे रहे थे अचानक भीड़ से एक स्त्री निकल कर आई और करबद्ध होकर ऋषि श्रृंगी से बोली कि मेरे पति दुर्व्यसनों से सदा घिरे रहते हैं। जिस कारण मैं कोई पूजा-पाठ नहीं कर पाती धर्म और भक्ति से जुड़े पवित्र कार्यों का संपादन भी नहीं कर पाती। यहां तक कि ऋषियों को उनके हिस्से का अन्न भी समर्पित नहीं कर पाती मेरा पति मांसाहारी हैं, जुआरी है । लेकिन मैं मां दुर्गा कि सेवा करना चाहती हूं। उनकी भक्ति साधना से जीवन को पति सहित सफल बनाना चाहती हूं। ऋषि श्रृंगी महिला के भक्तिभाव से बहुत प्रभावित हुए। ऋषि ने उस स्त्री को आदरपूर्वक उपाय बताते हुए कहा कि वासंतिक और शारदीय नवरात्रों से तो आम जनमानस परिचित है लेकिन इसके अतिरिक्त दो नवरात्र और भी होते हैं । जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है प्रकट नवरात्रों में नौ देवियों की उपासना हाती है और गुप्त नवरात्रों में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है । इन नवरात्रों की प्रमुख देवी स्वरुप का नाम सर्वैश्वर्यकारिणी देवी है । यदि इन गुप्त नवरात्रों में कोई भी भक्त माता दुर्गा की पूजा साधना करता है तो मां उसके जीवन को सफल कर देती हैं । लोभी, कामी, व्यसनी, मांसाहारी अथवा पूजा पाठ न कर सकने वाला भी यदि गुप्त नवरात्रों में माता की पूजा करता है तो उसे जीवन में कुछ और करने की आवश्यकता ही नहीं रहती । उस स्त्री ने ऋषि श्रृंगी के वचनों पर पूर्ण श्रद्धा करते हुए गुप्त नवरात्र की पूजा की मां प्रसन्न हुई और उसके जीवन में परिवर्तन आने लगा, घर में सुख शांति आ गई । पति सन्मार्ग पर आ गया और जीवन माता की कृपा से खिल उठा । यदि आप भी एक या कई तरह के दुर्व्यसनों से ग्रस्त हैं और आपकी इच्छा है कि माता की कृपा से जीवन में सुख समृद्धि आए तो गुप्त नवरात्र की साधना अवश्य करें । तंत्र और शाक्त मतावलंबी साधना के दृष्टि से गुप्त नवरात्रों के कालखंड को बहुत सिद्धिदायी मानते हैं। मां वैष्णो देवी, पराम्बा देवी और कामाख्या देवी का का अहम् पर्व माना जाता है। हिंगलाज देवी की सिद्धि के लिए भी इस समय को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार दस महाविद्याओं को सिद्ध करने के लिए ऋषि विश्वामित्र और ऋषि वशिष्ठ ने बहुत प्रयास किए लेकिन उनके हाथ सिद्धि नहीं लगी । वृहद काल गणना और ध्यान की स्थिति में उन्हें यह ज्ञान हुआ कि केवल गुप्त नवरात्रों में शक्ति के इन स्वरूपों को सिद्ध किया जा सकता है। गुप्त नवरात्रों में दशमहाविद्याओं की साधना कर ऋषि विश्वामित्र अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन गए उनकी सिद्धियों की प्रबलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक नई सृष्टि की रचना तक कर डाली थी । इसी तरह, लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद ने अतुलनीय शक्तियां प्राप्त करने के लिए गुप्त नवरात्र में साधना की थी शुक्राचार्य ने मेघनाद को परामर्श दिया था कि गुप्त नवरात्रों में अपनी कुल देवी निकुम्बाला कि साधना करके वह अजेय बनाने वाली शक्तियों का स्वामी बन सकता है मेघनाद ने ऐसा ही किया और शक्तियां हासिल की राम, रावण युद्ध के समय केवल मेघनाद ने ही भगवान राम सहित लक्ष्मण जी को नागपाश मे बांध कर मृत्यु के द्वार तक पहुंचा दिया था ऐसी मान्यता है कि यदि नास्तिक भी परिहासवश इस समय मंत्र साधना कर ले तो उसका भी फल सफलता के रूप में अवश्य ही मिलता है । यही इस गुप्त नवरात्र की महिमा है यदि आप मंत्र साधना, शक्ति साधना करना चाहते हैं और काम-काज की उलझनों के कारण साधना के नियमों का पालन नहीं कर पाते तो यह समय आपके लिए माता की कृपा ले कर आता है गुप्त नवरात्रों में साधना के लिए आवश्यक न्यूनतम नियमों का पालन करते हुए मां शक्ति की मंत्र साधना कीजिए । गुप्त नवरात्र की साधना सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं गुप्त नवरात्र के बारे में यह कहा जाता है कि इस कालखंड में की गई साधना निश्चित ही फलवती होती है। इस समय की जाने वाली साधना की गुप्त बनाए रखना बहुत आवश्यक है। अपना मंत्र और देवी का स्वरुप गुप्त बनाए रखें। गुप्त नवरात्र में शक्ति साधना का संपादन आसानी से घर में ही किया जा सकता है। इस महाविद्याओं की साधना के लिए यह सबसे अच्छा समय होता है गुप्त व चामत्कारिक शक्तियां प्राप्त करने का यह श्रेष्ठ अवसर होता है। धार्मिक दृष्टि से हम सभी जानते हैं कि नवरात्र देवी स्मरण से शक्ति साधना की शुभ घड़ी है। दरअसल इस शक्ति साधना के पीछे छुपा व्यावहारिक पक्ष यह है कि नवरात्र का समय मौसम के बदलाव का होता है। आयुर्वेद के मुताबिक इस बदलाव से जहां शरीर में वात, पित्त, कफ में दोष पैदा होते हैं, वहीं बाहरी वातावरण में रोगाणु जो अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं सुखी-स्वस्थ जीवन के लिये इनसे बचाव बहुत जरूरी है नवरात्र के विशेष काल में देवी उपासना के माध्यम से खान-पान, रहन-सहन और देव स्मरण में अपनाने गए संयम और अनुशासन तन व मन को शक्ति और ऊर्जा देते हैं जिससे इंसान निरोगी होकर लंबी आयु और सुख प्राप्त करता है धर्म ग्रंथों के अनुसार गुप्त नवरात्र में प्रमुख रूप से भगवान शंकर व देवी शक्ति की आराधना की जाती है। 

देवी दुर्गा शक्ति का साक्षात स्वरूप है दुर्गा शक्ति में दमन का भाव भी जुड़ा है । यह दमन या अंत होता है शत्रु रूपी दुर्गुण, दुर्जनता, दोष, रोग या विकारों का ये सभी जीवन में अड़चनें पैदा कर सुख-चैन छीन लेते हैं । यही कारण है कि देवी दुर्गा के कुछ खास और शक्तिशाली मंत्रों का देवी उपासना के विशेष काल में जाप शत्रु, रोग, दरिद्रता रूपी भय बाधा का नाश करने वाला माना गया है सभी’नवरात्र’ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक किए जाने वाले पूजन, जाप और उपवास का प्रतीक है- ‘नव शक्ति समायुक्तां नवरात्रं तदुच्यते’ । देवी पुराण के अनुसार एक वर्ष में चार माह नवरात्र के लिए निश्चित हैं। 

नवरात्र के नौ दिनों तक समूचा परिवेश श्रद्धा व भक्ति, संगीत के रंग से सराबोर हो उठता है। धार्मिक आस्था के साथ नवरात्र भक्तों को एकता, सौहार्द, भाईचारे के सूत्र में बांधकर उनमें सद्भावना पैदा करता है शाक्त ग्रंथो में गुप्त नवरात्रों का बड़ा ही माहात्म्य गाया गया है। मानव के समस्त रोग-दोष व कष्टों के निवारण के लिए गुप्त नवरात्र से बढ़कर कोई साधनाकाल नहीं हैं। श्री, वर्चस्व, आयु, आरोग्य और धन प्राप्ति के साथ ही शत्रु संहार के लिए गुप्त नवरात्र में अनेक प्रकार के अनुष्ठान व व्रत-उपवास के विधान शास्त्रों में मिलते हैं।  इन अनुष्ठानों के प्रभाव से मानव को सहज ही सुख व अक्षय ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ‘दुर्गावरिवस्या’ नामक ग्रंथ में स्पष्ट लिखा है कि साल में दो बार आने वाले गुप्त नवरात्रों में माघ में पड़ने वाले गुप्त नवरात्र मानव को न केवल आध्यात्मिक बल ही प्रदान करते हैं, बल्कि इन दिनों में संयम-नियम व श्रद्धा के साथ माता दुर्गा की उपासना करने वाले व्यक्ति को अनेक सुख व साम्राज्य भी प्राप्त होते हैं । ‘शिवसंहिता’ के अनुसार ये नवरात्र भगवान शंकर और आदिशक्ति मां पार्वती की उपासना के लिए भी श्रेष्ठ हैं। गुप्त नवरात्रों के साधनाकाल में मां शक्ति का जप, तप, ध्यान करने से जीवन में आ रही सभी बाधाएं नष्ट होने लगती हैं। 
                         
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम् ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥
          
देवी भागवत के अनुसार जिस तरह वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है । ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। 

गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है । इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं। गुप्त नवरात्र के दौरान कई साधक महाविद्या (तंत्र साधना) के लिए मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं। मान्यता है कि नवरात्र में महाशक्ति की पूजा कर श्रीराम ने अपनी खोई हुई शक्ति पाई। इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर विशेष बल दिया गया है। संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण हैं। नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुलिंग रूप 'नवरात्र' में ही शुद्ध है।

गुप्त नवरात्र पूजा विधि
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घट स्थापना, अखंड ज्योति प्रज्ज्‍वलित करना व जवारे स्थापित करना-श्रद्धालुगण अपने सामर्थ्य के अनुसार उपर्युक्त तीनों ही कार्यों से नवरात्रि का प्रारंभ कर सकते हैं अथवा क्रमश: एक या दो कार्यों से भी प्रारम्भ किया जा सकता है। यदि यह भी संभव नहीं तो केवल घट स्थापना से देवी पूजा का प्रारंभ किया जा सकता है।

मान्यतानुसार गुप्त नवरात्र के दौरान अन्य नवरात्रों की तरह ही पूजा करनी चाहिए। नौ दिनों के उपवास का संकल्प लेते हुए प्रतिप्रदा यानि पहले दिन घटस्थापना करनी चाहिए। घटस्थापना के बाद प्रतिदिन सुबह और शाम के समय मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन के साथ नवरात्र व्रत का उद्यापन करना चाहिए।

गुप्तनवरात्री पूजा तिथि
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प्रतिपदा तिथि 
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22 जून 2020, सोमवार, शैलपुत्री पूजा घटस्थापना, कलश स्थापना शुभ मुहूर्त सुबह 8 से 9 बजकर 27 मिनट तक इसके बाद 11:46 से 2:03 तक अभिजीत मुहूर्त में भी कर सकते है।

प्रतिपदा तिथि का आरंभ 21 जनवरी को दिन 12 बजकर 11 मिनट से होगा।

द्वितीया तिथि
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23 जून 2020, मंगलवार
ब्रह्मचारिणी पूजा, सिन्धारा दूज।
 
तृतीया तिथि 
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24 जून 2020, बुधवार
चंद्रघंटा पूजा, पूजा, सौभाग्य तीज।

चतुर्थी तिथि 
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25 जून 2020, गुरुवार
कुष्मांडा पूजा।
 
पंचमी तिथि 
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26 जून 2020, शुक्रवार
स्कन्ध पूजा, वरद विनायक चौथ,
लक्ष्मी पञ्चमी, बसंत पञ्चमी।

षष्ठी तिथि क्षय
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इस वर्ष गुप्त नवरात्रि पर षष्ठी तिथि क्षय होने के कारण 26 जून शुक्रवार के दिन ही कात्यायनी पूजा की जाएगी।

सप्तमी तिथि 
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27 जून 2020, शनिवार
कालरात्रि पूजा, महासप्तमी, विवस्वतः सप्तमी।
 
अष्टमी तिथि 
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28 जून 2020, रविवार
महागौरी पूजा, दुर्गा अष्टमी, महाष्टमी पूजा, संधि पूजा, अन्नपूर्णा अष्टमी, भीष्माष्टमी।

नवमी तिथि 
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30 जून 2020, सोमवार
सिद्धिदात्री पूजा, नवरात्री हवन।

नवरात्रि पारण
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31 जून।

नवरात्रि में दस महाविद्या पूजा
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पहला दिन- मां काली👉  गुप्त नवरात्रि के पहले दिन मां काली की पूजा के दौरान उत्तर दिशा की ओर मुंह करके काली हकीक माला से पूजा करनी है. इस दिन काली माता के साथ आप भगवान कृष्ण की पूजा करनी चाहिए. ऐसा करने से आपकी किस्मत चमक जाएगी. शनि के प्रकोप से भी छुटकारा मिल जाएगा. नवरात्रि में पहले दिन दिन मां काली को अर्पित होते हैं वहीं बीच के तीन दिन मां लक्ष्मी को अर्पित होते हैं और अंत के तीन दिन मां सरस्वति को अर्पित होते हैं.
मां काली की पूजा में मंत्रों का उच्चारण करना है।

मंत्र- क्रीं ह्रीं काली ह्रीं क्रीं स्वाहा।
 
ऊँ क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा।

दूसरी महाविद्या👉  मां तारा- दूसरे दिन मां तारा की पूजा की जाती है. इस पूजा को बुद्धि और संतान के लिये किया जाता है. इस दिन एमसथिस्ट व नीले रंग की माला का जप करने हैं।

मंत्र- ऊँ ह्रीं स्त्रीं हूं फट।

तीसरी महाविद्या👉  मां त्रिपुरसुंदरी और मां शोडषी पूजा- अच्छे व्यक्ति व निखरे हुए रूप के लिये इस दिन मां त्रिपुरसुंदरी की पूजा की जाती है. इस दिन बुध ग्रह के लिये पूजा की जाती है. इस दिन रूद्राक्ष की माला का जप करना चाहिए।

मंत्र- ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीये नम:।

चौथी महाविद्या👉  मां भुवनेश्वरी पूजा- इस दिन मोक्ष और दान के लिए पूजा की जाती है. इस दिन विष्णु भगवान की पूजा करना काफी शुभ होगा. चंद्रमा ग्रह संबंधी परेशानी के लिये इस पूजा की जाती है।

मंत्र- ह्रीं भुवनेश्वरीय ह्रीं नम:।

ऊं ऐं ह्रीं श्रीं नम:।

पांचवी महाविद्या👉  माँ छिन्नमस्ता- नवरात्रि के पांचवे दिन माँ छिन्नमस्ता की पूजा होती है. इस दिन पूजा करने से शत्रुओं और रोगों का नाश होता है. इस दिन रूद्राक्ष माला का जप करना चाहिए. अगर किसी का वशीकरण करना है तो उस दौरान इस पूजा करना होता है. राहू से संबंधी किसी भी परेशानी से छुटकारा मिलता है. इस दिन मां को पलाश के फूल चढ़ाएं।

मंत्र- श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैररोचनिए हूं हूं फट स्वाहा।

छठी महाविद्या👉  मां त्रिपुर भैरवी पूजा- इस दिन नजर दोष व भूत प्रेत संबंधी परेशानी को दूर करने के लिए पूजा करनी होती है. मूंगे की माला से पूजा करें. मां के साथ बालभद्र की पूजा करना और भी शुभ होगा. इस दिन जन्मकुंडली में लगन में अगर कोई दोष है तो वो सभ दूर होता है।

मंत्र- ऊँ ह्रीं भैरवी क्लौं ह्रीं स्वाहा।

सांतवी महाविद्या👉  मां धूमावती पूजा- इस दिन पूजा करने से द्ररिता का नाश होता है. इस दिन हकीक की माला का पूजा करें।

मंत्र- धूं धूं धूमावती दैव्ये स्वाहा।

आंठवी महाविद्या👉  मां बगलामुखी- माँ बगलामुखी की पूजा करने से कोर्ट-कचहरी और नौकरी संबंधी परेशानी दूर हो जाती है. इस दिन पीले कपड़े पहन कर हल्दी माला का जप करना है. अगर आप की कुंडली में मंगल संबंधी कोई परेशानी है तो मा बगलामुखी की कृपा जल्द ठीक हो जाएगा।

मंत्र-ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं, पदम् स्तम्भय जिव्हा कीलय, शत्रु बुद्धिं विनाशाय ह्रलीं ऊँ स्वाहा।

नौवीं महाविद्या👉  मां मतांगी- मां मतांगी की पूजा धरती की ओर और मां कमला की पूजा आकाश की ओर मुंह करके पूजा करनी चाहिए. इस दिन पूजा करने से प्रेम संबंधी परेशानी का नाश होता है. बुद्धि संबंधी के लिये भी मां मातंगी पूजा की जाती है।

मंत्र- क्रीं ह्रीं मातंगी ह्रीं क्रीं स्वाहा।

दसवी महाविद्या👉 मां कमला- मां कमला की पूजा आकाश की ओर मुख करके पूजा करनी चाहिए. दरअसल गुप्त नवरात्रि के नौंवे दिन दो देवियों की पूजा करनी होती है।

मंत्र- क्रीं ह्रीं कमला ह्रीं क्रीं स्वाहा

नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व का समापन पूर्णाहुति हवन एवं कन्याभोज कराकर किया जाना चाहिए।  पूर्णाहुति हवन दुर्गा सप्तशती के मन्त्रों से किए जाने का विधान है किन्तु यदि यह संभव ना हो तो देवी के  'नवार्ण मंत्र', 'सिद्ध कुंजिका स्तोत्र' अथवा 'दुर्गाअष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र' से हवन संपन्न करना श्रेयस्कर रहता  है।
 
लग्न अनुसार घटस्थापना का फल
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देवी पूजा में शुद्ध मुहूर्त एवं सही व शास्त्रोक्त पूजन विधि का बहुत महत्व है। शास्त्रों में विभिन्न लग्नानुसार घट स्थापना का फल बताया गया है-
 
1. मेष- धन लाभ

2. वृष- कष्ट

3. मिथुन- संतान को कष्ट

4. कर्क- सिद्धि

5. सिंह- बुद्धि नाश

6. कन्या- लक्ष्मी प्राप्ति

7. तुला- ऐश्वर्य प्राप्ति

8. वृश्चिक- धन लाभ

9. धनु- मान भंग

10. मकर- पुण्यप्रद

11. कुंभ- धन-समृद्धि की प्राप्ति

12. मीन- हानि एवं दुःख की प्राप्ति होती है।

मेष राशि👉  इस राशि के लोगों को स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए। दुर्गा सप्तशती या दुर्गा चालीसा का पाठ करें।

वृषभ राशि👉  इस राशि के लोग देवी के महागौरी स्वरुप की पूजा करें व ललिता सहस्त्रनाम का पाठ करें।

मिथुन राशि👉 इस राशि के लोग देवी यंत्र स्थापित कर मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करें। इससे इन्हें लाभ होगा।

कर्क राशि👉  इस राशि के लोगों को मां शैलपुत्री की उपासना करनी चाहिए। लक्ष्मी सहस्त्रनाम का पाठ भी करें।
 
सिंह राशि👉  इस राशि के लोगों के लिए मां कूष्मांडा की पूजा विशेष फल देने वाली है। दुर्गा मन्त्रों का जाप करें।

कन्या राशि👉  इस राशि के लोग मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करें। लक्ष्मी मंत्रो का विधि-विधान पूर्वक जाप करें।

तुला राशि👉  इस राशि के लोगों को महागौरी की पूजा से लाभ होता है। काली चालीसा का पाठ करें।

वृश्चिक राशि👉  स्कंदमाता की पूजा से इस राशि वालों को शुभ फल मिलते हैं। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।

धनु राशि👉  इस राशि के लोग मां चंद्रघंटा की आराधना करें। साथ ही उनके मन्त्रों का विधि-विधान से जाप करें।


मकर राशि👉 इस राशि वालों के लिए मां काली की पूजा शुभ मानी गई है। नर्वाण मन्त्रों का जाप करें।

कुंभ राशि👉  इस राशि के लोग मां कालरात्रि की पूजा करें। नवरात्रि के दौरान रोज़ देवी कवच का पाठ करें।

मीन राशि👉  इस राशि वाले मां चंद्रघंटा की पूजा करें। हल्दी की माला से बगलामुखी मंत्रो का जाप भी करें।
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आचार्य मनोज तिवारी सहसेपुर
9005618107,9451280720

देवतुल्य पूज्य पिता जी को समर्पित
स्व. पंडित श्री राघव राम तिवारी
        कर्मकाण्ड मर्मज्ञ

बुधवार, 17 जून 2020

एकादशी महात्म्य

!! #श्रीएकादशी !!

 एकादशी व्रत भगवान् को अत्यंत प्रिय है हम संसारी जीवों को संसार चक्र से छुड़ाने के लिये भगवान् ने ही इस तिथि को प्रकट किया था , इस लिये मनुष्य मात्र को इस व्रत का पालन करना चाहिये । पद्म पुराण के उत्तर खण्ड में इस व्रत के सम्बंध में विस्तृत चर्चा प्राप्त होती है । श्रीमहादेव जी से श्रीपार्वती जी इस विषय में प्रश्न करतीं हैं और श्रीमहादेव जी इसका उत्तर देते हैं जिसमें बड़े ही स्पष्ट शब्दों में एकादशी की उपादेयता प्रतिपादित की गयी है । 

किसी समय पापपुरुष भगवान् के पास जाकर रोने लगा कि हे नाथ ! संसार के किसी व्रत नियम प्रायश्चित से मुझे भय नहीं है । लेकिन प्रभु एकादशी से मुझे महान भय प्राप्त होता है प्रभु उस दिन मुझे कहीं स्थान प्राप्त नहीं होता आप कृपा कर मुझे स्थान प्रदान करें । तब श्रीप्रभु बोले हे पाप पुरुष ! तुम एकादशी के दिन अन्न में वास करो -
     
अन्नमाश्रित्य तिष्ठन्तं भवन्तं पापपूरुषम् ।।                                    (प०पु०क्रि०२२/४९)
 
एकादशी के दिन जो अन्न खाता है वह साक्षात् पाप का ही भक्षण करता है । इस लिये ब्राह्मण , क्षत्रिय, वैश्य , शुद्र एवं स्त्री सभी को इस व्रत का पालन विशेष रूप से करना ही चाहिये । 

एकादशीं परित्यज्य योह्यन्यद्व्रतमाचरेत् ।
स करस्थं महद्राज्यं त्यक्त्वा भैक्ष्यं तु याचते ।।
                                    ( पद्मपु०उ०२३४/९ )

एकादशी व्रत को छोड़ कर जो मन्द बुद्धि अन्य व्रत को करता है उसका वह व्रत निष्फल ही होता है । जैसे कोई हाथ आये महान राज्य को छोड़ कर भिक्षा मांगे उसी के समान समझना चाहिये ।

एकादशेन्द्रियै: पापं यत्कृतं भवति प्रिये ।
एकादश्युपवासेन तत्सर्वं विलयं ब्रजेत् ।। (२३४/१०)
 
हे प्रिये ! पार्वती ! एकादश इन्द्रियों ( मन , पञ्च ज्ञानेन्द्रिय एवं पञ्च कर्मेन्द्रिय ) के द्वारा जो भी पाप ये जीव करता है वे सब एकादशी व्रत से समाप्त हो जाते हैं । इस लिये एकादशी व्रत अवश्य करना चाहिये । एकादशी के दिन भोजन करने वाले को ब्रह्महत्या , मद्यपान , चोरी और गुरुपत्नी गमन के जैसे महापाप लगते हैं । 

वर्णाश्रमाश्रमाणां च सर्वेषां वरवर्णिनि ।
एकादश्युपवासस्तु कर्तव्यो नाsत्रसंशयः ।। ( २३४/१७ )

हे वरवर्णिनि ! सभी वर्ण वालों एवं वर्णाश्रमियों को एकादशी का व्रत जरूर करना चाहिये इसमें कोई संशय नहीं है । बिना एकादशी व्रत के कोई भी प्रभु को प्राप्त नहीं कर सकता । भागवत जी में तो नंद बाबा द्वारा एकादशी व्रत करने का वर्णन आया है जिसके प्रभाव से ही प्रभु उनके बालक बन कर उनके मनोरथ को पूर्ण किये । 

नोट :- कुछ लोगों को भ्रांति है कि गुरु दीक्षा लेने के बाद ही एकादशी व्रत करना चाहिये लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है यह व्रत निश्चित ही सबको करना चाहिये ।

आचार्य मनोज तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही
9005618107

सोमवार, 15 जून 2020

उग्र विरभद्र सर्वेश्वरी साधना

वीरभद्र साधना

वीरभद्र, भगवान शिव के परम आज्ञाकारी हैं. उनका रूप भयंकर है, देखने में वे प्रलयाग्नि के समान, हजार भुजाओं से युक्त और मेघ के समान श्यामवर्ण हैं. सूर्य के तीन जलते हुए बड़े-बड़े नेत्र एवं विकराल दाढ़ें हैं. शिव ने उन्हें अपनी जटा से प्रकट किया था. इसलिए उनकी जटाएं साक्षात ज्वालामुखी के लावा के समान हैं. गले में नरमुंड माला वाले वीरभद्र सभी अस्त्र-शस्त्र धारण करते हैं. उनका रूप भले ही भयंकर है पर शिवस्वरूप होने के कारण वे परम कल्याणकारी हैं. शिवजी की तरह शीघ्र प्रसन्न होने वाले है.

वीरभद्र उपासना तंत्र में वीरभद्र सर्वेश्वरी साधना मंत्र आता है. यह एक स्वयं सिद्ध चमत्कारिक तथा तत्काल फल देने वाला मंत्र है. स्वयंसिद्ध मंत्र होने के कारण इसे सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती. अचानक कोई बाधा आ जाए, दुर्घटना का भय हो, कोई समस्या बार-बार प्रकट होकर कष्ट देती हो, कार्यों में बाधाएं आती हों, हिंसक पशुओं का भय हो या कोई अज्ञात भय परेशान करता है तो वीरभद्र सर्वेश्वरी साधना से उससे तत्काल राहत मिलती है.

यह तत्काल फल देने वाला मंत्र कहा गया है.

वीरभद्र मंत्र 1
ॐ हं ठ: ठ: ठ: सैं चां ठं ठ: ठ: ठ: ह्र: ह्रौं ह्रौं ह्रैं क्षैं क्षों क्षैं क्षं ह्रौं ह्रौं क्षैं ह्रीं स्मां ध्मां स्त्रीं सर्वेश्वरी हुं फट् स्वाहा

1. यदि पशुओं से या हिंसक जीवों से प्राणहानि का भय हो तब मंत्र के सात बार जप से निवारण हो जाता है.

2. यदि मंत्र को एक हज़ार बार बिना रुके लगातार जप लिया जाए तो स्मरण शक्ति में अद्भुत चमत्कार देखा जा सकता है.

3. यदि मंत्र का जप बिना रुके लगातार दस हजार बार कर लिया जाय तो त्रिकालदृष्टि यानी भूत, वर्त्तमान, भविष्य के संकेत पढ़ने की शक्ति आने लगती है.

4. मंत्र का बिना रुके लगातार लक्षजप यानी एक लाख जप रुद्राक्ष की माला से करने पर खेचरत्व और भूचरत्व की प्राप्ति हो जाती है. इसके लिए लाल वस्त्र धारण करके, लाल आसन पर विराजमान होकर उत्तर दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए.

5. इस साधना को हंसी खेल ना समझे. न ही इसे हंसी ठहाके में प्रयास करना चाहिए. आवश्यकता पड़ने पर ही और स्वयं या किसी अन्य के कल्याण के उद्देश्य से ही होना चाहिए. किसी को परेशान करने के उद्देश्य से होने पर उल्टा फल होगा.

6. महिलाओं के लिए यह वीरभद्र साधना पूर्णतः वर्जित है. महिलाएं निम्न रक्ततारा महामंत्र प्रयोग कर सकती हैं.

श्री रक्ततारा तंत्रनाशक महामंत्र
रक्तवर्णकारिणी,मुण्ड मुकुटधारिणी, त्रिलोचने शिव प्रिये, भूतसंघ विहारिणी
भालचंद्रिके वामे, रक्त तारिणी परे, पर तंत्र-मंत्र नाशिनी, प्रेतोच्चाटन कारिणी
नमो कालाग्नि रूपिणी,ग्रह संताप हारिणि, अक्षोभ्य प्रिये तुरे, पञ्चकपाल धारिणी
नमो तारे नमो तारे, श्री रक्त तारे नमो।
ॐ स्त्रीं स्त्रीं स्त्रीं रं रं रं रं रं रं रं रं रक्तताराय हं हं हं हं हं घोरे-अघोरे वामे खं खं खं खं खं खर्परे सं सं सं सं सं सकल तन्त्राणि शोषय-शोषय सर सर सर सर सर भूतादि नाशय-नाशय स्त्रीं हुं फट।

वीरभद्र तीव्र मंत्र 2
ॐ ड्रं ह्रौं बं जूं बं हूं बं स: बीर वीरभद्राय प्रस्फुर प्रज्वल आवेशय जाग्रय विध्वंसय क्रुद्धगणाय हुं
: ध्यानम्
 गोक्षीराभं दधानं परशुडमरुको खङ्गखेटौ कपालम् । शूलञ्चाभीतिदाने त्रिनयनमसितं व्याघ्र चर्माम्बराढ्यम् । वेतालारूढमुग्रं कपिशतर जटाबद्ध शीतांशुखण्डम् । ध्यायेद्भोगीन्द्रभूषं निजगणसहितं सन्ततं वीरभद्रम् ॥


आचार्य मनोज तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही
9005618107

मंत्र शक्ति एवं विविध मंत्र जप नियम एवं विधि

💯✔ मन्त्र शक्ती

देवताओं के मंत्रों में अपार शक्ति हैं । कई मंत्र ऐसे होते जिनके जपने से हमारे संकट दूर हो जाते हैं। आइए जानें अलग अलग देवताओं के अलग अलग मंत्रों के बारे में। धर्मग्रंथों के अनुसार ताकत, सफलता व इच्छाएं पूरी करने के लिए इष्टसिद्धि बहुत आवश्यक है इष्टसिद्धि का मतलब है कि व्यक्ति जिस देव शक्ति के लिए श्रद्धा और आस्था मन में बना लेता है, उस देवता से जुड़ी सभी शक्तियां, प्रभाव और चीजें उसे मिलने लगती हैं।

इष्टसिद्धि मे मां गायत्री का ध्यान बहुत शुभ होता है। गायत्री उपासना के लिए गायत्री मंत्र बहुत ही चमत्कारी और शक्तिशाली माना गया है। शास्त्रों के मुताबिक इस मंत्र के 24 अक्षर 24 महाशक्तियों के प्रतीक हैं। एक गायत्री के महामंत्र द्वारा इन देवशक्तियों का स्मरण हो जाता है।

24 देव शक्तियों के ऐसे 24 चमत्कारी गायत्री मंत्र मे से, जो देवी-देवता आपके इष्ट है, उनका विशेष देव गायत्री मंत्र बोलने से चमत्कारी फल प्राप्त होगा। शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक व भौतिक शक्तियों की प्राप्ति के लिए गायत्री उपासना सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। गायत्री ही वह शक्ति है जो पूरी

सृष्टि की रचना, स्थिति या पालन और संहार का कारण है। वेदों में गायत्री शक्ति ही प्राण, आयु, शक्ति, तेज, कीर्ति और धन देने वाली मानी गई है। गायत्री मंत्र को महामन्त्र पुकारा जाता है, जो शरीर की कई शक्तियों को जाग्रत करता है।

इष्टसिद्धी से मनचाहा काम बनाने के लिए गायत्री मंत्र के 24 अक्षरो के हर देवता विशेष के मंत्रों का स्मरण करें।

श्रीगणेश – मुश्किल कामों में कामयाबी, रुकावटों को दूर करने, बुद्धि लाभ के लिए इस गणेश गायत्री मंत्र का स्मरण करना चाहिए –

ॐ एकदृंष्ट्राय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो बुद्धिः प्रचोदयात्।

नृसिंह – शत्रु को हराने, बहादुरी, भय व दहशत दूर करने, पुरुषार्थी बनने व किसी भी आक्रमण से बचने के लिए नृसिंह गायत्री असरदार साबित होता है –

ॐ उग्रनृसिंहाय विद्महे वज्रनखाय धीमहि तन्नो नृसिंह प्रचोदयात्।

विष्णु – पालन-पोषण की क्षमता व काबिलियत बढ़ाने या किसी भी तरह से सबल बनने के लिए विष्णु गायत्री का महत्व है –

नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्।

शिव – दायित्वों व कर्तव्यों को लेकर दृढ़ बनने, अमंगल का नाश व शुभता को बढ़ाने के लिए शिव गायत्री मंत्र बड़ा ही प्रभावी माना गया है –

ॐ पञ्चवक्त्राय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।

कृष्ण – सक्रियता, समर्पण, निस्वार्थ व मोह से दूर रहकर काम करने, खूबसूरती व सरल स्वभाव की चाहत कृष्ण गायत्री मंत्र पूरी करता है –

ॐ देवकीनन्दाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्णः प्रचोदयात्।

राधा – प्रेम भाव को बढ़ाने व द्वेष या घृणा को दूर रखने के लिए राधा गायत्री मंत्र का स्मरण बढ़ा ही लाभ देता है

ॐ वृषभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि तन्नो राधा प्रचोदयात्।

लक्ष्मी – रुतबा, पैसा, पद, यश व भौतिक सुख-सुविधाओं की चाहत लक्ष्मी गायत्री मंत्र शीघ्र पूरी कर देता है –

ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे विष्णुप्रियायै धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।

अग्रि – ताकत बढ़ाने, प्रभावशाल व होनहार बनने के लिए अग्निदेव का स्मरण अग्नि गायत्री मंत्र से करना शुभ होता है-

ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निदेवाय धीमहि तन्नो अग्निः प्रचोदयात्।

इन्द्र – संयम के जरिए बीमारियों, हिंसा के भाव रोकने व भूत-प्रेत या अनिष्ट से रक्षा में इन्द्र गायत्री मंत्र प्रभावी माना गया है –

ॐ सहस्त्रनेत्राय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि तन्नो इन्द्रः प्रचोदयात्।

सरस्वती – बुद्धि व विवेक, दूरदर्शिता, चतुराई से सफलता मां सरस्वती गायत्री मंत्र से फौरन मिलती है –

ॐ सरस्वत्यै विद्महे ब्रह्मपुत्र्यै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्।

दुर्गा – विघ्नों के नाश, दुर्जनों व शत्रुओं को मात व अहंकार के नाश के लिए दु्र्गा गायत्री मंत्र का महत्व है-

ॐ गिरिजायै विद्महे शिव धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्।

हनुमानजी – निष्ठावान, भरोसेमंद, संयमी, शक्तिशाली, निडर व दृढ़ संकल्पित होने के लिए हनुमान गायत्री मंत्र का अचूक माना गया है –

ॐ अञ्जनीसुताय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि तन्नो मारुतिः प्रचोदयात्।

पृथ्वी – पृथ्वी गायत्री मंत्र सहनशील बनाने वाला, इरादों को मजबूत करने वाला व क्षमाभाव बढ़ाने वाला होता है –

ॐ पृथ्वी देव्यै विद्महे सहस्त्र मूर्त्यै धीमहि तन्नो पृथ्वी प्रचोदयात्।

सूर्य – निरोगी बनने, लंबी आयु, तरक्की व दोषों का शमन करने के लिए सूर्य गायत्री मंत्र प्रभावी माना गया है –

ॐ भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नो सूर्य्यः प्रचोदयात्।

राम – धर्म पालन, मर्यादा, स्वभाव में विनम्रता, मैत्री भाव की चाहत राम गायत्री मंत्र से पूरी होती है –

ॐ दाशरथये विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात्।

सीता – सीता गायत्री मंत्र मन, वचन व कर्म से विकारों को दूर कर पवित्र करता है। साथ ही स्वभाव मे भी मिठास घोलता है –

ॐ जनकनन्दिन्यै विद्महे भूमिजायै धीमहि तन्नो सीता प्रचोदयात्।

चन्द्रमा – काम, क्रोध, लोभ, मोह, निराशा व शोक को दूर कर शांति व सुख की चाहत चन्द्र गायत्री मंत्र से पूरी होती है –

ॐ क्षीरपुत्रायै विद्महे अमृततत्वाय धीमहि तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात्।

यम – मृत्यु सहित हर भय से छुटकारा, वक्त को अनुकूल बनाने व आलस्य दूर करने के लिए यम गायत्री मंत्र असरदार होता है –

ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि तन्नो यमः प्रचोदयात्।

ब्रह्मा – किसी भी रूप में सृजन शक्ति व रचनात्कमता बढ़ाने के लिए ब्रह्मा गायत्री मंत्र मंगलकारी होता है –

ॐ चतु्र्मुखाय विद्महे हंसारुढ़ाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्।

वरुण – दया, करुणा, कला, प्रसन्नता, सौंदर्य व भावुकता की कामना वरुण गायत्री मंत्र पूरी करता है –

ॐ जलबिम्बाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्।

नारायण – चरित्रवान बनने, महत्वकांक्षा पूरी करने, अनूठी खूबियां पैदा करने व प्रेरणास्त्रोत बनने के लिए नारायण गायत्री मंत्र शुभ होता है –

ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो नारायणः प्रचोदयात्।

हयग्रीव – मुसीबतों को पछाड़ने, बुरे वक्त को टालने, साहसी बनने, उत्साह बढ़ाने व मेहनती बनने के कामना ह्यग्रीव गायत्री मंत्र पूरी करता है –

ॐ वाणीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि तन्नो हयग्रीवः प्रचोदयात्।

हंस – यश, कीर्ति पाने के साथ संतोष व विवेक शक्ति जगाने के लिए हंस गायत्री मंत्र असरदार होता है –

ॐ परमहंसाय विद्महे महाहंसाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात्।

तुलसी – सेवा भावना, सच्चाई को अपनाने, सुखद दाम्पत्य, शांति व परोपकारी बनने की चाहत तुलसी गायत्री मंत्र पूरी करता है –

ॐ श्री तुलस्यै विद्महे विष्णु प्रियायै धीमहि तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।

ये देवशक्तियां जाग्रत, आत्मिक और भौतिक शक्तियों से संपन्न मानी गई है। इष्टसिद्धि के नजरिए से मात्र एक मंत्र से ही 24 देवताओं का इष्ट और उनसे जुड़ी शक्ति पाना साधक को सिद्ध बना देता

किसी भी सोमवार से पुर्व दिशा मे मुख करके मंत्र का 1 माला जाप रुद्राक्ष के माला से 21 दिनो तक करें। आसन-वस्त्र-समय को कोइ बंधन नही है। मंत्र जाप से पुर्व गुरु और गणेश स्मरण अवश्य करे,साथ मे हो सके तो "ॐ नमः शिवाय" का भी जाप करें और शिवलिंग का पुजन भी किया करे।
शम्भुनाथ शाबर मंत्र:-

।। ॐ नमो आदेश गुरु को,शम्भूनाथ कैलाश पर्वत पर रहेने वाले,पुरब से आवो पच्छिम से आवो उत्तर से आवो दक्षिण से आवो,आवो बाबा शम्भूनाथ मेरा कारज सिद्ध करो,दुहाई पार्वती माई की सब्द साचा पिंड काचा स्फुरो मंत्र इस्वरि वाचा आतम भाव साचा

इस मंत्र के जाप से कोई भी कार्य शिघ्र पुर्ण होता है। प्रत्येक मनोकामना पुर्ण होता है। सभी प्रकार के विद्या मे सफलता प्राप्त होता है। शिवजी के स्वप्न मे दर्शन भी प्राप्त हो सकते है। शिवप्रसाद प्राप्त होता है एवं किसी भी इतर योनी (भुत-प्रेत-यक्षिणी....इत्यादि) को इस मंत्र के सिद्धि से आकर्षित किया जा सकता है।

दुश्मनों से छुटकारा पाने के लिए करें काली की उपासना
मां काली की उपासना शत्रु और विरोधी को शांत करने के लिए करनी चाहिए किसी के मृत्यु के लिए नहीं.

आप विरोधी या किसी शत्रु से परेशान हैं तो उस समस्या से बचने के यह उपाय हैं -

आपके शत्रु अगर आपको परेशान करते हों तो आप लाल कपड़े पहनकर लाल आसन पर बैठें मां काली के समक्ष दीपक और गुग्गल की धूप जलाएं.

मां को प्रसाद में पेड़े और लौंग चढ़ाएं. इसके
बाद 'ॐ क्रीं कालिकायै नमः' का 11 माला जाप करके, शत्रु और मुकदमे से मुक्ति की प्रार्थना करें. आसन से उठने के पहले एक नींबू अवश्य काटे । कपूर भी जलावे
यह अर्चना लगातार 41 रातों तक करें.
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💯✔ भैरव साबर मन्त्र और शिव शावर मन्त्र वशीकरण मंत्र

ॐ गुरु जी सत नाम आदेश आदि पुरुष को !
काला भैरूं, गोरा भैरूं, भैरूं रंग बिरंगा !!
शिव गौरां को जब जब ध्याऊं, भैरूं आवे पास
पूरण होय मनसा वाचा पूरण होय आस
लक्ष्मी ल्यावे घर आंगन में,
जिव्हा विराजे सुर की देवी ,खोल घडा दे दड़ा !!
काला भैरूं खप्पर राखे,गौरा झांझर पांव
लाल भैरूं,पीला भैरूं,पगां लगावे गाँव
दशों दिशाओं में पञ्च पञ्च भैरूं !!
पहरा लगावे आप !दोनों भैरूं मेरे संग में चालें
बम बम करते जाप !! बावन भैरव मेरे सहाय हो
गुरु रूप से ,धर्म रूप से,सत्य रूप से, मर्यादा रूप से,
देव रूप से, शंकर रूप से, माता पिता रूप से,
लक्ष्मी रूप से,सम्मान सिद्धि रूप से,
स्व कल्याण जन कल्याण हेतु सहाय हो,
श्री शिव गौरां पुत्र भैरव !!
शब्द सांचा पिंड कांचा  चलो मंत्र ईश्वरो वाचा !!  

सिद्धि की द्रष्टि से इस मन्त्र का विधि विधान अलग है, परन्तु साधारण रूप में मात्र 11 बार रोज जपने की आज्ञा है ! श्री शिव पुत्र भैरव आपकी सहायत करेंगे !चार लड्डू बूंदी के ,मन्त्र बोलकर 7  रविवार को काले कुत्ते को खिलाएं

शक्तिशाली सिद्ध शाबर मंत्र और सुलेमानी शाबर मंत्र  को स्वयंसिद्धि मन्त्र के नाम से भी पुकारा जाता है यह मन्त्र अत्यन्त शक्तिशाली एवं अचूक है. अगर आप को लग रहा है की आप के दूकान अथवा घर आदि में किसी ने टोटका आदि कर रखा है अथवा घर में कोई व्यक्ति ज्यादा बीमार है, निर्धनता आपका पीछा नहीं छोड़ती, या कोई कार्य बनते बनते बिगड़ जाता हो

अथवा कोई तांत्रिक क्रिया द्वारा आपको बार बार परेशान कर रहा हो तो इन सब कष्टों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए शाबर मन्त्र को सबसे सिद्ध एवं प्रभावकारी माना गया है.

शाबर मन्त्र अन्य शास्त्रीय मंत्रो के भाँति उच्चारण में कठिन नहीं होते है, तथा इस अचूक मन्त्र को कोई भी बड़े आसनी प्रयोग कर अपने कायो को सिद्ध कर सकता है.

इन मंत्रो को थोड़े से जाप द्वारा सिद्ध किया जा सकता है तथा यह मन्त्र शीघ्र प्रभाव डालते है. इन मंत्रो का जो प्रभाव होता वह स्थायी है तथा शक्तिशाली हनुमान मन्त्र का कोई भी दुसरा काट नहीं है.

शाबर मंत्रो के सरल भाषा में होने के कारण इनका प्रयोग बहुत ही आसान है कोई भी इन्हे सुगमता से प्रयोग कर सकता है. यह मन्त्र दूसरे दुष्प्रभावी मंत्रो के काट में सहायक है.

शाबर मन्त्र के प्रयोग से प्रत्येक समस्या का निराकरण सहज ही जाता है. इस मन्त्र का प्रयोग कर व्यक्ति अपने परिवार, मित्र, संबंधी आदि की समस्याओं का निवारण करने में सक्षम है.

वैदिक, पौराणिक एवम् तांत्रिक मंत्रों के समान ‘शाबर-मंत्र’ भी अनादि हैं. सभी मंत्रों के प्रवर्तक मूल रूप से भगवान शंकर ही हैं, परंतु शाबर मंत्रों के प्रवर्तक भगवान शंकर प्रत्यक्षतया नहीं हैं, फिर भी इन मंत्रों का आविष्कार जिन्होंने किया वे परम शिव भक्त थे.

गुरु गोरखनाथ तथा गुरु मछन्दर नाथ शबरतंत्र के जनक माने जाते है. अपने साधन, जप-तप एवं सिद्धियो के प्रभाव से उन्होंने वह स्थान प्राप्त कर लिया जिसकी मनोकामना बड़े-बड़े तपस्वी एवं ऋषि मुनि करते है.
शाबर मंत्रो में ”आन शाप” तथा ”श्रद्धा और धमकी” दोनों का प्रयोग किया जाता है. साधक याचक होते हुए भी देवता को सब कुछ कहने का सामर्थ्य रखता है व उसी से सब कुछ करना चाहता है.
विशेष बात यह है कि उसकी यह ‘आन’ भी फलदायी होती है. आन का अर्थ है सौगन्ध. अभी वह युग गए अधिक समय नहीं बीता है, जब सौगन्ध का प्रभाव आश्चर्यजनक व अमोघ हुआ करता था.

शाबर मंत्रो में गुजराती, तम्मिल, कन्नड़ आदि भाषाओं का मिश्रण है. वैसे समान्यतः अधिकतर शाबर मन्त्र हिंदी में ही मिलते है.
प्रत्येक शाबर मंत्र अपने आप में पूर्ण होता है. उपदेष्टा ‘ऋषि’ के रूप में गोरखनाथ, सुलेमान जैसे सिद्ध पुरूष हैं. कई मंत्रों में इनके नाम का प्रवाह प्रत्यक्ष रूप से तो कहीं केवल गुरु नाम से ही कार्य बन जाता है.
इन मंत्रों में विनियोग, न्यास, तर्पण, हवन, मार्जन, शोधन आदि जटिल विधियों की कोई आवश्यकता नहीं होती. फिर भी वशीकरण, सम्मोहन, उच्चाटन आदि सहकर्मों, रोग-निवारण तथा प्रेत-बाधा शांति हेतु जहां शास्त्रीय प्रयोग कोई फल तुरंत या विश्वसनीय रूप में नहीं दे पाते, वहां ‘शाबर-मंत्र’ तुरंत, विश्वसनीय, अच्छा और पूरा काम करते हैं.

अब हम आपको सिद्ध शाबर मन्त्र के प्रयोग के बारे में बताए तथा इससे जुडी कुछ विशेष तथा ध्यान रखने वाली बातो के विषय में बताए.
शक्तिशाली शाबर मंत्र पहले से ही शक्तियों से परिपूर्ण और सिद्ध होते हैं.

सिद्ध शाबर मंत्र :-

”ॐ शिव गुरु गोरखनाथाय नमः !”

शाबर मंत्र के महत्त्वपूर्ण तथ्य :-

* किसी भी आयु, जाति और वर्ण के पुरुष या स्त्रियां इस मंत्र का प्रयोग कर सकते है.

* इन मंत्रों की साधना के लिए गुरु की आवश्यकता महत्त्वपूर्ण नहीं होती है.

* षट्कर्म की साधना को करने के लिए गुरु की राय अवश्य लेनी चाहिए.

* मंत्र के जाप के लिए लाल या सफेद आसन बिछाकर उस पर बैठना चाहिए.

* शाबर मंत्र का जाप श्रद्धा और विश्वास के साथ ही करना चाहिए.

विकटमुखी वशिकरण मंत्र

यह मंत्र अद्भुत है स्वयं सिद्ध है आप सिद्ध करने कि जरुरत नही सिधे प्रयग मे लाय। प्रतिदिन इस मत्र से अन्न के सात ग्रास अभिमत्रित कर साध्य के रुप. नाम चिँनता कर भोजन करे वो साध्य आपके वश मेँ होगा। इसमे सदेह करने का कई कारण नही है।लेकिन आप कुछ दिन तक आगर पाँच माल जाप कर यह प्रयग करे तो लाभ दोगुना होगा मंत्र-ॐ नमः कट् विकट घोररुपिणी स्वाहा

सर्वजन वशिकरण
यह एक भुत डामर तंत्र का सिद्ध वशीकरण प्रयोग हैं! इस मंत्र से आप अपनी माता ,पिता,भाई,बहन ,रिश्तेदार या किसी का भी वशीकरण कर सकतें हैं! इस मंत्र को सिर्फ ५०० बार रुद्राक्ष की माला से पूर्व या उत्तर दिशा में लाल रंग के आसन पर बैठकर जपने से आप किसी को भी अपने वशीभूत बना सकतें है!इसे सिर्फ ५०० बार जिसका ध्यान कर या जिसकी तस्वीर के सामने जपा जायेगा वे आपके वशीभूत होगा! जब तक काम ना बने जपते रहिये। दुसरा प्रयग- मन हि मन मेँ जाप करे और ध्यान करे जिसको आप वशिकरण करना चाहते हे वो आपका वश मेँ होगी या होगा। यह सिद्ध है आलग से सिद्ध करने कि जरुरत नही सिधा प्रयग मेँ लाय। मंत्र-म्रोँ ड़ोँ

चिँतन

आगर आप को कहा जाय कि आप हवा मेँ उड साकते है, पानी पर चाल साकते है, कुछ भी कर साकते है, आप कहगे पागल है, ऐसा होता है किया?? मेँ (मनोज तिवारी) कहुगा तो पागल लेकिन कोई विदेसि कहेगा तो शाच है। आज हम हिप्नाटिज्म को जानते है, विदेश मेँ वह एक टाईमपास खेल है, लेकिन हम डरते है।भारत मेँ ईसको वशिकरण विद्या कहाजाता है।वशिकरण नाम मात्र से लौग भागने लागते है,किया ए भयकंर है,मेरा मानना है नही।आप एक नजर से देखते है,ईस लिय आप को ए भयकंर विद्या लागता है,दुसरी नजर से देखगे तो आपको ए हाथ का खेलना लागेगा।आज वशिकरण वादल कर हिप्नाटिज्म वान गया है। विना मंत्र के आज ए विद्या काम करता है,समय के साथ वादला और ईसान का विमारी दुर कर रहा है। डकटरी विद्या मेँ ए एक विषय है।तंत्र को विज्ञान के नजर से देखगे तो आप का कायाकल्प कर देगा। कुछ नया करना चाहते तो तंत्र को विज्ञान के नजर से देखे ,नाकि ढगी साधुउ के नजर से देखे।सम्मोहन विद्या मेँ सफलता पाने मे तिस दिन लगता है । आप को भि ए मान ले कि कई काम एक दिन मेँ पुरा नही होगी,प्रतिदिन साधना (प्रेकटिस) करनी होगी। तंत्र मेँ वादलव करे और नया खेज करे फिर उड पायगे, जल पर चाल पायगे कुछ भी कर पायगे, लागता है ना अजिव ,साच माने सव संभाव है लेकिन इतना आसान भी नहीं है आज के समय में

विरभद्र साधना:-

भगवान वीरभद्र जो कि शिव शम्भू के अवतार हैं, उनकी पूजा-उपासना करने से बड़े-बड़े कष्ट दूर हो जाते हैं, वीरभद्र, भगवान शिव के परम आज्ञाकारी हैं, उनका रूप भयंकर है, देखने में वे प्रलयाग्नि के समान प्रतीत होते हैं। उनका शरीर महान ऊंचा है,। वे एक हजार भुजाओं से युक्त हैं। वे मेघ के समान श्यामवर्ण हैं! उनके सूर्य के समान जलते हुए तीन नेत्र हैं। एवं विकराल दाढ़ें हैं और अग्नि की ज्वालाओं की तरह लाल-लाल जटाएं हैं। गले में नरमुंडों की माला तो हाथों में तरह-तरह के अस्त्र-शस्त्र हैं! परन्तु वे भी भगवान शिव की तरह परम कल्याणकारी तथा जल्दी प्रसन्न होने वाले है! उनकी निम्नलिखित साधना पद्धति से तत्काल फल मिलता है, "वीरभद्र सर्वेश्वरी साधना मंत्र" जो उनके "वीरभद्र उपासना तंत्र" से लिया गया है, एक स्वयं सिद्ध चमत्कारिक तथा तत्काल फल देने वाला मंत्र है, स्वयंसिद्ध मंत्र से तात्पर्य उन मंत्रो से होता है जिन्हे सिद्ध करने की जरुरत नहीं पड़ती, वे अपने आप में सिद्ध होते हैं, इस मंत्र के जाप से अकस्मात् आयी दुर्घटना, कष्ट, समस्या आदि से क्षण भर में निपटा जा सकता है, (उदाहरण- कार्यबाधा, हिंसक पशु कष्ट, डर! इत्यादि) ये तत्काल फल देने वाला मंत्र है, और साथ ही साथ ये बेहद तीव्र तेज वाला मंत्र है, इसे मजाक अथवा हंसी ठिठोली में कदापि नहीं लेना चाहिए, इसके द्वारा प्राप्त किये जा सकने वाले लाभ - (१). इस मंत्र के स्मरण मात्र से डर भाग जाता है, और अकस्मात् आयी बाधाओ का निवारण होता है. जब भी किसी प्रकार के कोई पशुजन्य या दूसरे तरह से प्राणहानि आशंका हो तब इस मंत्र का ७ बार जाप करना चाहिए. इस प्रयोग के लिए मात्र मंत्र याद होना ज़रुरी है. मंत्र कंठस्थ करने के बाद केवल ७ बार शुद्ध जाप करें व चमत्कार देंखे! (२). अगर इस मंत्र का एक हज़ार बार बिना रुके लगातार जाप कर लिया जाए तो व्यक्ति की स्मरण शक्ति विश्व के उच्चतम स्तर तक हो जाती है तथा वह व्यक्ति परम मेधावी बन जाता है! (३). अगर इस मंत्र का बिना रुके लगातार १०,००० बार जप कर लिया जाए तो उसे त्रिकाल दृष्टि (भूत, वर्त्तमान, भविष्य का ज्ञान) की प्राप्ति हो जाती है! (४). अगर इस मंत्र का बिना रुके लगातार एक लाख बार, रुद्राक्ष की माला के साथ, लाल वस्त्र धारण करके तथा लाल आसान पर बैठकर, उत्तर दिशा की और मुख करके शुद्ध जाप कर लिया जाये, तो उस व्यक्ति को "खेचरत्व" एवं "भूचरत्व" की प्राप्ति हो जायेगी! मंत्र इस प्रकार है -ॐ हं ठ ठ ठ सैं चां ठं ठ ठ ठ ह्र: ह्रौं ह्रौं ह्रैं क्षैं क्षों क्षैं क्षं ह्रौं ह्रौं क्षैं ह्रीं स्मां ध्मां स्त्रीं सर्वेश्वरी हुं फट् स्वाहा

:ऋण मुक्ति भैरव साधना:-

: हर व्यक्ति के जीवन में ऋण एक अभिशाप है !एक वार व्यक्ति इस में फस गया तो धस्ता चला जाता है ! सूत की चिंता धीरे धीरे मष्तश पे हावी होती चली जाती है जिस का असर स्वस्थ पे होना भी स्वाभिक है ! प्रत्येक व्क्यती पे छ किस्म का ऋण होता है जिस में पित्र ऋण मार्त ऋण भूमि ऋण गुरु ऋण और भ्राता ऋण और ऋण जिसे ग्रह ऋण भी कहते है !संसारी ऋण (कर्ज )व्यक्ति की कमर तोड़ देता है मगर हजार परयत्न के बाद भी व्यक्ति छुटकारा नहीं पाता तो मेयूस हो के ख़ुदकुशी तक सोच लेता है !मैं जहां एक बहुत ही सरल अनुभूत साधना प्रयोग दे रहा हु आप निहचिंत हो कर करे बहुत जल्द आप इस अभिशाप से मुक्ति पा लेंगे ! विधि – शुभ दिन जिस दिन रवि पुष्य योग हो जा रवि वार हस्त नक्षत्र हो शूकल पक्ष हो तो इस साधना को शुरू करे वस्त्र --- लाल रंग की धोती पहन सकते है ! माला – काले हकीक की ले ! दिशा –दक्षिण ! सामग्री – भैरव यन्त्र जा चित्र और हकीक माला काले रंग की ! मंत्र संख्या – 12 माला 21 दिन करना है ! पहले गुरु पूजन कर आज्ञा ले और फिर श्री गणेश जी का पंचौपचार पूजन करे तद पहश्चांत संकल्प ले ! अपने जीवन में स्मस्थ ऋण मुक्ति के लिए यह साधना कर रहा हु हे भैरव देव मुझे ऋण मुक्ति दे !जमीन पे थोरा रेत विशा के उस उपर कुक्म से तिकोण बनाए उस में एक पलेट में स्वास्तिक लिख कर उस पे लाल रंग का फूल रखे उस पे भैरव यन्त्र की स्थापना करे उस यन्त्र का जा चित्र का पंचौपचार से पूजन करे तेल का दिया लगाए और भोग के लिए गुड रखे जा लड्डू भी रख सकते है ! मन को स्थिर रखते हुये मन ही मन ऋण मुक्ति के लिए पार्थना करे और जप शुरू करे 12 माला जप रोज करे इस प्रकार21 दिन करे साधना के बाद स्मगरी माला यन्त्र और जो पूजन किया है वोह समान जल प्रवाह कर दे साधना के दोरान रवि वार जा मंगल वार को छोटे बच्चो को मीठा भोजन आदि जरूर कराये ! शीघ्र ही कर्ज से मुक्ति मिलेगी और कारोबार में प्रगति भी होगी ! मंत्र—ॐ ऐं क्लीम ह्रीं भम भैरवाये मम ऋणविमोचनाये महां महा धन प्रदाय क्लीम स्वाहा !!

हनुमान साधना:-

ये साधना आप किसी भी मंगलवार से आरंभ कर सकते हे । साधना सुरू करने से पहले साधना शुद्ध जल से स्नान कर के साधना के लिए लाल वस्त्र एवं लाल आसान ओर लाल रंग का ही पोशाक पहने । इस साधना मे साधक को 11 दिन मंत्र का जाप करना हे । ओर इस तरह साधक को रोज 108 मंत्र यानि रोज 1 माला मंत्र का जाप करना हे । साधना के दौरान धूप, दीप, ओर खुशबूदार अगरबत्ती जलाए ओर ये साधना रात के समय ने ही करे । मंत्र :- ओम गुरूजी हनुमानजी कावल कुंडा हाथी खप्पर छडी मसान गुग्गल धुप जाप तेरा, तेरा रूप शाकिनी बांधू डाकिनी बांधू भूत को बांधू अटल को बांधू पाताल टेकरी को बांधू हनुमानजी के रोचना को बांधू, घर घर जाओ, ना माने चार गदा लगाओ, जेसे सीता माँ के सतको राखे वैसे मेरे सतको रखो, आवो आवो हनुमान घट्ट पिंड में समाओ हनुमान, हनुमान बेठे रानी आई, गदा बेठी, राजा ये मंत्रबहुतहीशक्तिशालीहेओरइससाधनाकरनेसेसाधनाकोहरपलआपनेपासभगवानहनुमानकोअपनेपासमहसूसपाओगे।औरसाधकहनुमानजीकीकृपासेसबखतरोंसेबचजाएगीजय

सर्व सिद्धि साधना

यह साधना मेरी ही नहीं कई साधको की अनुभूत है !काफी उच कोटी के संतो से प्राप्त हुई है और फकीरो में की जाने वाली साधना है !इस के क्यी लाभ है !यह एक बहुत ही चमत्कारी साधना है ! 1 इस साधना से किसी भी अनसुलझे प्रशन का उतर जाना जा सकता है !अगर इस को सिद्ध कर लिया जाए और मात्र 5 जा 10 मिंट इस मंत्र का जप कर सो जाए जा आंखे बंद कर लेट जाए तो यह चल चित्र की तरह सभी कुश दिखा देती है ! और जो भी आपका प्रश्न है! उसका उतर दिखा देती है !क्यी वार कान में आवाज भी दे देती है जो आप जानना चाहते है ऐसा बहुत वार परखा गया है ! 2 इस साधना से किसी भी शारीरिक दर्द का इलाज किया जा सकता है !दर्द चाहे कही भी हो इस मंत्र को पढ़ते जदी कुश देर दर्द वाली जगह पे हाथ फेरा जाए तो कुश ही मिंटो में दर्द गायब हो जाता है ! 3 इस से किसी भी भूत प्रेत को शांत किया जा सकता है!इस मंत्र से बतासे अभिमंत्रिक कर रोगी को पहले एक दिया जाता है फिर दूसरा और फिर तीसरा और उस पे जो भी छाया हो वोह उसी वक़्त सवारी में हाजर हो जाती है!तब उस से पूछ लिया जाता है के उसे क्या चाहिए और कहा से आई है किस ने भेजा है आदि आदि और फिर उसे और बताशा दिया जाता है जिस से वोह शांत हो चले जाती है इस तरह बहुत वार परखा गया है! यह बहुत ही आसान साधना है भूत प्रेत भागने की और अगर देवता की क्रोपी भी हो वोह भी बता देते है के उन्हे क्या चाहिए इस का प्रयोग सिर्फ अनुभवी व्यक्ति ही करे इसका एक अलग विधान है के कैसे करना है !इस साधना को होली और फिर आने वाले ग्रहण में करे जितनी वार की जाती है इसकी ताकत बढ़ती है ! 4 जदी इसे अनुष्ठान रूप में स्वा लाख जप लिया जाए तो व्यक्ति हवा में से मन चाहा भोजन प्राप्त कर सकता है जब अनुष्ठान के रूप में की जाती है तो साधना समाप्ती पे दो आदमी प्रकट होते है जिन के हाथो में वाजे होते है जब वोह दिख जाए तो सवाल जबाब कर लेना चाहिए उस के बाद वोह शून्य में से पदार्थ प्राप्त करा देते है! हमारे संत बताते थे के इस से स्वर्ग तक की चीजे भी प्राप्त कर सकते है और हर प्रकार का स्वादिष्ट भोजन भी क्यी साधू लोग इसी के बल पे जंगल में बैठे वढ़िया भोजन प्राप्त कर लेते है ! इसका अनुष्ठान 40 दिन में सवा लाख मंत्र जप करे !अगर किसी कारण वश पहली वार सफलता न मिले तो घबराए न दुयारा करे यह अनुभूत है ! इस साधना के भूत भविष्य दर्शन की एक बेजोड़ साधना है! इस का साधक कभी भूत प्रेत के चक्र में नहीं फसता और अपनी व अपने सभी साथियो की सुरक्षा कर लेता है !इस से किसी के भी मन की बात जान सकते है और उस अपने अनुकूल बना सकते है ! और यह साधना घर से गए व्यक्ति का पता कुश ही मिंटो में लगा लेती है ! कुश ही दिन करने से इस साधना की दिव्य्य्ता का स्व पता चल जाता है ! विधि – 1 इस साधना को सफ़ेद वस्त्र धारण कर करे ! 2 आसान सफ़ेद हो ! 3 माला सफ़ेद हकीक की ले ! 4 दिशा उतर रहे ! 5 अगर होली या ग्रहण पे कर रहे है तो 11 माला कर ले ! मगर इस से पूर्ण लाभ नहीं मिलेगे सिर्फ आने वाले समय के वारे स्वपन में जानकारी मिल जाएगी और किसी प्रश्न का उतर पता लगाया जा सकता है ! 6 अगर इसे अनुष्ठान के रूप में करते है जो उपर वाले सभी लाभ मिल जाते है 7 आसन पे बैठ जाए पहले गुरु पूजन और गणेश पूजन कर फिर शिव आज्ञा और अपने सहमने एक कागज पे थोरे चावल चीनी और घी जो की गऊ का हो रख ले कागज पे बस थोरा थोरा ही डाले और मंत्र जप पूर्ण होने पर उसे किसी चोराहे पे छोड़ दे और घर आके मुह हाथ दो ले इस तरह यह साधना सिद्ध हो जाती है !अगर सवा लाख कर रहे है तो यह स्मगरी रोज भी ले सकते है और पहले जा अंतिम दिन भी ले सकते है जैसी आपकी ईशा कर ले मगर इस स्मगरी को बिना रखे साधना न करे नहीं तो शरीर मिटी के समान बेजान सा लगता है जब तक आप यह पुजा नहीं रखते ! 8 जब किसी के घर जा रहे है अगर कोई बुलाने आया है के हमारा घर देखो क्या हुया है तो इस मंत्र से कुश बतासे पढ़ कर छत पे डाल दे फिर जाए और जा 7 बतासे ले उन्हे पढ़ कर उन में से चार छत पे डाल दे बाकी तीन साथ ले जाए और रोगी को एक एक करके दे देने से वोह ठीक हो जाता है जा उस पे अगर कुश होगा तो सिर या कर बोल देगा! 9 साधना काल में शुद्ध घी का दीपक जलता रहना चाहिए और अगरवती आदि लगा दे ! 10 साधना काल में ब्रह्मचारेय का पालन अनिवार्य है !साबर मंत्र --- ॐ नमो परमात्मा मामन शरीर पई पई कुरु कुरु सवाहा !!

लक्षमी यक्षणी साधना

लक्ष्मी यक्षणी कुबेर ने धन पूर्ति के लिए जेबी महा लक्ष्मी की साधना की तो महा लक्ष्मी ने पर्सन हो कर वर मांगने को कहा तो श्री कुबेर जी ने उन्हे अपने लोक अल्का पूरी में निवास करने को कहा तो लक्ष्मी जी ने व्हा यक्षणी रूप में निवास किया और तभी से वहाँ धन की स्दह पूर्ति होती रहती है ! हर एक चाहता है उस के पास सभी सुख हो और उसे कभी किसी का मोहताज न होना पड़े जीवन में हर क्षेत्र में उच्ता मिले शरीर भी सोन्द्र्यवान हो और धन की भी प्रचुर अवस्ता में प्राप्ति हो ! इस के लिए यक्षणी साधनाए काफी महत्व पूर्ण मानी जाती है ! और उनसे भी उत्म यह है के ऐसी यक्षणी साधना हो जो जल्द सीध हो और जो सभी मनोरथ पूरे करे ! यह लक्ष्मी यक्षणी की साधना है इस एक साधना को करने से 108 यक्षणिए सिद्ध हो जाती ! और साधक की हर ईछा पूर्ण करती है ! इस साधना का विधान जटिल है फिर भी उसे आसान तरीके से दे रहा हु ! एक कटोरी में चावल संदूर चन्दन और कपूर मिश्रत कर ले और लक्ष्मी के 108 नाम से नमा लगा कर पूजन करे और लक्ष्मी के 108 नाम आप किसी भी लक्ष्मी पूजन की बूक में देख सकते है ! सुंगधित तेल का दिया लगा दे एक पात्र में कुश उपले जला के उस में गूगल और लोहवान धुखा दे सुगधित अगरवाती भी लगाई जा सकती है ! लाल कनेर से पूजन करे ! और गुरु मंत्र का एक माला जप कर के लक्ष्मी यक्षणी मंत्र का 101 माला जप करे यह कर्म 14 दिन करना है ! और साधना पूरी होने पे कनेर के फूल और घी से हवन करना है 10000 मंत्रो से ! इस प्रकार यह साधना सिद्ध हो जाती है और साधक को रसयान सिधी प्रदान करती है ! इस से साधक के जीवन में कभी धन की कमी नहीं आती जैसे चाहे जितना भी खर्चे धन घर में आता ही रेहता है इस के लिए कुबेर यंत्र और श्री यंत्र का पूजन करे और कमल गट्टे की माला जा लाल चन्दन की माला का उपयोग करे ! दिशा उतर और वस्त्र पीले धारण करे ! हवन के बाद घर में बनी खीर जा मिष्ठान का भोग लगाए ! यह साधना सोमवार स्वाति नक्षत्र से शुरू करे ! मंत्र — ॐ लक्ष्मी वं श्रीं कमलधारणी हंसह सवाहा !!

पाताल क्रिया साधना

इस साधना कि कई अनुभूतिया है,और साधना भि एक दिन कि है.कई येसे रोग या बीमारिया है जिनका निवारण नहीं हो पाता ,और दवाईया भि काम नहीं करती ,येसे समय मे यह प्रयोग अति आवश्यक है.यह प्रयोग आज तक अपनी कसौटी पर हमेशा से ही खरा उतरा है .
प्रयोग सामग्री :-
एक मट्टी कि कुल्हड़ (मटका) छोटासा,सरसों का तेल ,काले तिल,सिंदूर,काला कपडा .
प्रयोग विधि :-
शनिवार के दिन श्याम को ४ या ४:३० बजे स्नान करके साधना मे प्रयुक्त हो जाये,सामने गुरुचित्र हो ,गुरुपूजन संपन्न कीजिये और गुरुमंत्र कि कम से कम ५ माला अनिवार्य है.गुरूजी के समक्ष अपनी रोग बाधा कि मुक्ति कि लिए प्रार्थना कीजिये.मट्टी कि कुल्हड़ मे सरसों कि तेल को भर दीजिये,उसी तेल मे ८ काले तिल डाल दीजिये.और काले कपडे से कुल्हड़ कि मुह को बंद कर दीजिये.अब ३६ अक्षर वाली बगलामुखी मंत्र कि १ माला जाप कीजिये.और कुल्हड़ के उप्पर थोडा सा सिंदूर डाल दीजिये.और माँ बगलामुखी से भि रोग बाधा मुक्ति कि प्रार्थना कीजिये.और एक माला बगलामुखी रोग बाधा मुक्ति मंत्र कीजिये.
मंत्र :-
|| ओम ह्लीम् श्रीं ह्लीम् रोग बाधा नाशय नाशय फट ||
मंत्र जाप समाप्ति के बाद कुल्हड़ को जमींन गाड दीजिये,गड्डा प्रयोग से पहिले ही खोद के रख दीजिये.और ये प्रयोग किसी और के लिए कर रहे है तो उस बीमार व्यक्ति से कुल्हड़ को स्पर्श करवाते हुये कुल्हड़ को जमींन मे गाड दीजिये.और प्रार्थना भि बीमार व्यक्ति के लिए ही करनी है.चाहे व्यक्ति कोमा मे भि क्यों न हो ७ घंटे के अंदर ही उसे राहत मिलनी शुरू हो जाती है.कुछ परिस्थितियों मे एक शनिवार मे अनुभूतिया कम हो तो यह प्रयोग आगे भि किसी शनिवार कर सकते है.

भैरव साधना

मंत्र-:ॐ नमो भैंरुनाथ, काली का पुत्र! हाजिर होके, तुम मेरा कारज करो तुरत। कमर
बिराज मस्तङ्गा लँगोट, घूँघर-माल। हाथ बिराज डमरु खप्पर त्रिशूल। मस्तक
बिराज तिलक सिन्दूर। शीश बिराज जटा-जूट, गल बिराज नोद जनेऊ। ॐ नमो
भैंरुनाथ, काली का पुत्र ! हाजिर होके तुम मेरा कारज करो तुरत। नित उठ करो
आदेश-आदेश।”
विधिः पञ्चोपचार से पूजन। रविवार से शुरु करके २१ दिन तक मृत्तिका की
मणियों की माला से नित्य अट्ठाइस (२८) जप करे। भोग में गुड़ व तेल का शीरा
तथा उड़द का दही-बड़ा चढ़ाए और पूजा-जप के बाद उसे काले श्वान को खिलाए। यह
प्रयोग किसी अटके हुए कार्य में सफलता प्राप्ति हेतु है।

कालि साधना
“डण्ड
भुज-डण्ड, प्रचण्ड नो खण्ड। प्रगट देवि, तुहि झुण्डन के झुण्ड। खगर दिखा
खप्पर लियां, खड़ी कालका। तागड़दे मस्तङ्ग, तिलक मागरदे मस्तङ्ग। चोला जरी
का, फागड़ दीफू, गले फुल-माल, जय जय जयन्त। जय आदि-शक्ति। जय कालका
खपर-धनी। जय मचकुट छन्दनी देव। जय-जय महिरा, जय मरदिनी। जय-जय चुण्ड-मुण्ड
भण्डासुर-खण्डनी, जय रक्त-बीज बिडाल-बिहण्डनी। जय निशुम्भ को दलनी, जय शिव
राजेश्वरी। अमृत-यज्ञ धागी-धृट, दृवड़ दृवड़नी। बड़ रवि डर-डरनी ॐ ॐ ॐ।।”
विधि - नवरात्रों में प्रतिपदा से नवमी तक घृत का दीपक प्रज्वलित रखते हुए
अगर-बत्ती जलाकर प्रातः-सायं उक्त मन्त्र का ४०-४० जप करे। कम या ज्यादा न
करे। जगदम्बा के दर्शन होते हैं।

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💯✔ #लाखो_मंत्र_जपे_पर_लाभ_कुछ_नहीं #समय_श्रम_दोनों_बर्बाद

   आज के समय में साधकों की बाढ़ आई हुई है ,#ज्योतिषियों की बाढ़ आई हुई है |#ज्योतिषी सलाह देता है ,अमुक मंत्र इतना संख्या में जपो ,अमुक पूजा करो ,आपकी समस्या हल हो जायेगी |उसके बारे में बताया कुछ नहीं की कैसे करें ,पद्धति-तरीका क्या हो ,बस जप लो |आधे को तो खुद पता नहीं होता ,कुछ को पता होता है तो समय बचाने के लिए बस #मंत्र बता कर छुट्टी कर लेते हैं |#मंत्र जपने वाल दुगुना जप लेता है पर उसे कोई परिणाम समझ नहीं आता ,तो वह सोचता है की #ज्योतिषी सही नहीं ,#पूजा -#मंत्र #जप से कुछ नहीं होता |उसकी गलती भी नहीं होती |उसे जितना पता होता है वह करता तो है ही |

           ऐसा ही नवागंतुक साधकों के साथ होता है ,#तंत्र अथवा #मंत्र -#यन्त्र के क्षेत्र में अधिकतर आते हैं शक्ति पाने ,चमत्कार करने के #लालच में ,कुछ अपनी समस्या दूर करने चक्कर में और कुछ वास्तव में मुक्ति की इच्छा से ,पर ९९ प्रतिशत को अपेक्षित सफलता नहीं मिलती |कारण सही पद्धति -सही ज्ञान -सही तरीका नहीं पता |या तो किताब से कुछ करने का प्रयास करते हैं या अधकचरे ज्ञान वाले गुरुओं के चक्कर में पड़ जाते हैं जिन्हें या तो खुद कुछ आता नहीं या एकाध मंत्र अपने गुरु से पाकर कुछ सिद्धियाँ करके #गुरु बन बैठते हैं |साधक बेचारे क्या करेंगे जब #गुरु ही उन्हें सही मार्गदर्शन नहीं दे पाता |गुरु जी को मंत्र का विज्ञान पता ही नहीं है |कैसे काम करता है ,कहाँ किस मंत्र का क्या प्रभाव होता है |कैसे इसकी ऊर्जा साधक तक आती है ,कहाँ से आती है |कैसे इस ऊर्जा को प्राप्त किया जाए |कैसे #मंत्र को जपा जाए |कैसे उसका उच्चारण हो |कहाँ आरोह अवरोह हो |कहाँ नाद हो |किस #मंत्र को करने में कितना समय लें |आदि आदि

           अधिकतर व्यक्ति या साधक #मंत्र जप करते समय जप की संख्या पर ध्यान देते हैं |अधिकतर का ध्यान होता है की इतनी संख्या करनी है या इतनी संख्या करेंगे तो इतने दिन में इतना हो जाएगा और साधना या अनुष्ठान या संकल्प पूरा हो जाएगा |रेट रटाये ढंग से जल्दबाजी में #मंत्र जप करते हैं ,करते रोज हैं और निश्चित संख्या के दिनों तक भी करते हैं पर जब कर चुकते हैं  तो परिणाम की प्रतीक्षा करते हैं पर समझ में कुछ नहीं आता |अब उनमे #अविश्वास जन्म लेता है की किया तो इतना दिन ,इतनी तपस्या की कुछ नहीं हुआ ,#मंत्र #जप #पूजा आदि से कुछ नहीं होता जो भाग्य में लिखा है वही होता है |आदि आदि |

लोग यह #ध्यान नहीं देते की वह जिस मंत्र का जप कर रहे हैं वह सही है की नहीं ,#शुद्ध है की नहीं ,सही लक्ष्य के लिए सही मंत्र है की नहीं |मंत्र का उच्चारण क्या होना चाहिए ,मंत्र कितने समय में होना चाहिए या कितना लम्बा या किस स्वर  में होना चाहिए |इसका समय क्या होना चाहिए |आदि |अधिकतर का #ध्यान मंत्र जप के समय कहीं और घूमता रहता है |अधिकतर जल्दबाजी में होते हैं की कब जप पूरा हो और अमुक कार्य किया जाए |जैसे साधना -पूजा न कर रहे हों एक जिम्मेदारी पूरी कर रहे हों |देवता या ईष्ट की ओर #ध्यान एकाग्र होता ही नहीं |भावहीनता में होते हैं ,एकमात्र अपना लक्ष्य दिखाई देता है |देवता से मानसिक जुड़ाव हुआ ही नहीं होता |परिणाम होता है की प्रकृति की सम्बंधित ऊर्जा मंत्र के द्वारा व्यक्ति से जुड़ पाती ही नहीं |#देवता को मंत्र सुनाई देता ही नहीं |मंत्र जप मात्र रटने से ,बिना नाद के जपने से उसमे कोई ऊर्जा उत्पन्न नहीं होती ,वह आपके ही चक्रों को आंदोलित नहीं करता तो प्रकृति की ऊर्जा से क्या जुड़ पायेगा और उन्हें आकर्षित कर पायेगा |यहाँ तक की शाबर मन्त्र जिनमे न अर्थ होते हैं न नाद वह भी बिना भाव के काम नहीं करते |बिना भाव और आत्मबल के आप शाबर मंत्र भी रटेंगे तो आपको परिणाम मुश्किल है मिलना |

         ध्यान दीजिये हर मंत्र की एक #विशिष्ट_नाद होती है ,विशिष्ट उच्चारण होता है ,विशिष्ट देवता होते हैं |#विशिष्ट_मंत्र का #विशिष्ट_चक्र से सम्बन्ध होता है |विशिष्ट मंत्र प्रकृति के विशिष्ट प्रकार की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है और उसे #आकर्षित करता है ,साधक या मंत्र जपने वाले से जोड़ता है |अतः उसका पाठ उसी तरह के भाव ,नाद ,उच्चारण के साथ होना चाहिए |आपका मानसिक तारतम्य सम्बंधित शक्ति और मंत्र की ऊर्जा से बना होना चाहिए |नहीं तो वह अगर आकर्षित हो भी गई तो आपसे जुड़ नहीं पाएगी और वातावरण में पुनः बिखर जायेगी |महत्त्व #मंत्र की संख्या जपने का नहीं होता ,सही उच्चारण ,सही नाद का होता है |सही भाव का होता है ,सही भावना का होता है |सही तरीके और पद्धति का होता है |सही समय का होता है .एकाग्रता का होता है |अगर यह सब नहीं है तो आप कई लाख भी जप कर लीजिये आपको परिणाम मिलना मुश्किल है |#मंत्र असंदिग्ध रूप से काम करते हैं बशर्ते आप सही ढंग से उन्हें जप सकें |अगर रटंत जप करेंगे तो कुछ नहीं मिलेगा ,इससे तो अच्छा होगा की आप कोई जप न करो और केवल सम्बंधित देवता के रूप -गुण -भाव में ही डूबिये आपको जरुर लाभ मिलेगा |अगर मंत्र कर रहे हैं तो ढंग से कीजिये |

          सवा लाख ,लाखों लाख या निश्चित संख्या में जप करना कोई मायने नहीं रखता |आप कुछ हजार ही जप कर लीजिये और सही ढंग से कर लीजिये तो आपको लाखों लाख से अधिक लाभ हो जाएगा |उदाहरण के लिए #ॐ का जप कुछ लोग करते हैं ,अधिकतर #ॐ को मंत्र के आगे लगाते हैं |पर बहुत कम को पता है की अगर #ॐ का सही ढंग से जप कर दिया जाए तो दीवार टूट जाती है ,यह वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो चूका है |हम क्या करते हैं #ॐ को लगाया या #ॐ #ॐ करते चले गए ,न नाद न समयांतराल न उच्चारण न गूँज किसी पर ध्यान नहीं दिया |#ऊर्जा उत्पन्न हुई ही नहीं ,आपके चक्र को आन्दोलित की ही नहीं |प्रकृति की ऊर्जा से जुडी ही नहीं तो लाभ क्या होगा |#ॐ का जप जब भी हो एक गूँज पैदा होनी चाहिए ,जो आपको और वातावरण को गुंजित करें |इसकी गूँज ह्रदय में गुंजित होनी चाहिए |तभी यह आंदोलित करेगा आपके सम्बंधित #चक्र को और वहां से तरंग उत्पादन बढ़ेगा और वातावरण की #ऊर्जा को आकर्षित करेगा |ऐसा ही सभी #मन्त्रों में है |अगर ऐसा न होता तो अलग बीज और #बिन्दुओं का प्रयोग क्यों होता |हर बीज का हर मंत्र का अपना उच्चारण ,नाद है उसे उसी ढंग से किया जाना चाहिए |सही ढंग से कर दीजिये कुछ हजार में आपको लाभ मिल जाएगा |रोज हजारों जप मत कीजिये कुछ सौ कीजिये पर आराम से धीरे धीरे पूरी एकाग्रता ,#ध्यान ,#भाव ,#नाद ,#उच्चारण से कीजिये #देवता प्रसन्न हो जाएगा |



आचार्य मनोज तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही
9005618107

शनिवार, 13 जून 2020

शनि ग्रह को अनुकूल बनाने का उपाय

🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩शनि_कवच_के_पाठ_नियमित_करने_से_जीवन_की_बड़ी_से_बड़ी_बाधा_दूर_हो_जाती_है।

शनि ग्रह की पीड़ा से बचने के लिए अनेकानेक मंत्र जाप, पाठ आदि शास्त्रों में दिए गए हैं। 
शनि देव के कई प्रकार के मंत्र, स्त्रोत, या पाठ हैं उनमे से शनि कवच एक है। 

जैसे की युद्ध क्षेत्र में जाने से पहले सिपाही अपने शरीर पर एक लोहे का कवच धारण करता था ताकि शत्रुओं के वार से उसे चोट ना आए और कवच के कारण सिपाही सुरक्षित रहता है। 

इसी प्रकार शनि कवच का पाठ है जिसे करने पर व्यक्ति कवच से सुरक्षित रहता है और किसी प्रकार की हानि उसे शनि की दशा/अन्तर्दशा में नहीं होती है। कवच का अर्थ ही ढाल या रक्षा होता।

जो व्यक्ति शनि कवच का पाठ नियम से करता है उसे शनि महाराज डराते नहीं है। शनि की दशा हो, अन्तर्दशा हो, शनि की ढैय्या हो अथवा शनि की साढ़ेसाती ही क्यों ना हो, कवच का पाठ करने पर कष्ट, व्याधियाँ, विपत्ति, आपत्ति, पराजय, अपमान, आरोप-प्रत्यारोप तथा हर प्रकार के शारीरिक, मानसिक तथा आर्थिक कष्टों से दूर रहता है। 

जो व्यक्ति इस कवच का पाठ निरंतर करता है उसे अकाल मृत्यु तथा हत्या का भय भी नहीं रहता है। क्योंकि ढाल की तरह जातक की सुरक्षा होती है और ना ही ऎसे व्यक्ति को लकवे आदि का डर ही होता है। यदि किसी कारणवश आघात हो भी जाए तब भी विकलांग नहीं होता है शीध्र ही ठीक हो जाता है। 
चिकित्सा के बाद व्यक्ति फिर से चलने-फिरने के लायक हो जाता है।

#विनियोग :- 
अस्य श्रीशनैश्चर कवच स्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषि:, अनुष्टुप् छन्द: शनैश्चरो देवता ।
श्रीं शक्ति: शूं कीलकम्, शनैश्चर प्रीत्यर्थे पाठे विनियोग: ।।

नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी गृध्रस्थितत्रासकरो धनुष्मान्।।
चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रसन्न: सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त:।।1।।

श्रृणुध्वमृषय: सर्वे शनिपीडाहरं महत् ।।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम् ।।2।।

कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।।
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम् ।।3।।

ॐ श्रीशनैश्चर: पातु भालं मे सूर्यनंदन: ।।
नेत्रे छायात्मज: पातु कर्णो यमानुज: ।।4।।

नासां वैवस्वत: पातु मुखं मे भास्कर: सदा ।।
स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठ भुजौ पातु महाभुज: ।।5।।

स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रद:।।
वक्ष: पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्थता ।।6।।

नाभिं गृहपति: पातु मन्द: पातु कटिं तथा ।।
ऊरू ममाSन्तक: पातु यमो जानुयुगं तथा ।।7।।

पदौ मन्दगति: पातु सर्वांग पातु पिप्पल: ।।
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दन: ।।8।।

इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य य: ।।
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवन्ति सूर्यज: ।।9।।

व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा ।।
कलत्रस्थो गतोवाSपि सुप्रीतस्तु सदा शनि: ।।10।।

अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे ।।
कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित् ।।11।।

इत्येतत् कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा ।।
जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभु: ।।12।।

इस कवच को “#ब्रह्माण पुराण” से लिया गया है, जिन व्यक्तियों पर शनि की ग्रह दशा का प्रभाव बना हुआ है उन्हें इसका पाठ अवश्य करना चाहिए। जो व्यक्ति इस कवच का पाठ कर शनिदेव को प्रसन्न करता है उसके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। जन्म कुंडली में शनि ग्रह के कारण अगर कोई दोष भी है तो वह इस कवच के नियम से किए पाठ से दूर हो जाते हैं।

अगर आप #शनि दशा से गुजर रहे हैं या गुजरने वाले हैं तो प्रति शनिवार ‘शनि कवच’ का पाठ अवश्य करें। यह पाठ शनि देव के प्रकोप को शांत करता है और साढ़ेसाती या ढैय्या जैसी दशा के समय इस पाठ से कष्ट की अनुभूति नहीं होती है, बल्कि शनिदेव की प्रसन्नता और कृपा प्राप्त होती है। 
हर शनिवार के दिन अथवा शनि जयंती को शनि कवच का पाठ करने से जीवन में शांति प्राप्त होती है।

अंत में शनि की धूप व दीप आरती कर जीवन में मन, वचन व कर्म से हुई त्रुटियों की क्षमा मांग प्रसाद ग्रहण करें। जाने-अनजाने में हुए पाप-कर्म एवं अपराधों के लिए शनिदेव से क्षमा याचना करें।

जिस किसी जातक को शनि की साढ़ेसाती व ढैया चल रही है उनको शनि कवच का पाठ करने से उन्हें मानसिक शांति प्राप्त होती है और एक अद्रश्य कवच उनको सुरक्षा देता है साथ में भाग्य उन्नति का लाभ प्राप्त होता है। 

#शनि कवच का पाठ एक प्रकार का शनिदेव के आशीर्वाद प्राप्त करने का एक माध्यम है। 
#शनि की ढैय्या या शनि की साढ़ेसाती के कारण बर्बादी से बचने के लिए शनि कवच रक्षक का काम करता है। यह मन के अवसाद और अकर्मण्यता राज्य से निपटने के लिए सहायक है। व्यापार में सफलता, पढ़ाई और जीवन के अन्य क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने के लिए शनि कवच का पाठ श्रेष्ठ।

शनि कवच शनि के अशुभ प्रभाव को दूर करने वाले गुणों के लिए जाना जाता है।
🙏🙏💐💐🕉🕉🔱🔱


आचार्य मनोज तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही
9005618107

शुक्रवार, 12 जून 2020

ओम् क्रीं काल्यै नमः मां काली का एकाक्षरी मंत्र

मां काली का एकाक्षरी क्रीं मंत्र बहुत ही प्रभावशाली है
इसके जप से साधक हर तरह के आपदा से मुक्त होकर
धर्म अर्थ काम और मोक्ष की प्राप्ति करता है। इस मंत्र का 11लाख जप अगर नियम पूर्वक किया जाए तो मां
अपनें साधक की हर इच्छा पूरी करती हैं। पर किसी योग्य गुरु के सानिध्य में ही करें। मां सबका कल्याण करें। जय माई की 🌺🚩🌺

मंगलवार, 9 जून 2020

सूर्य ग्रहण २१ जून २०२० को लग रहा है

*#सूर्यग्रहण की तिथि और समय- 21 जून रविवार को सूर्य ग्रहण सुबह 10 बजकर 20 मिनट से शुरू होगा और इस ग्रहण की समाप्ति दोपहर 1 बजकर 48 मिनट पर हो जायेगी। इस तरह से इस ग्रहण की कुल अवधि 03 घण्टे 28 मिनट्स की होगी।**सूर्य ग्रहण का सूतक काल*- सूर्य ग्रहण का सूतक 12 घंटे पहले शुरू हो जाता है। जो 20 जून की रात्रि 10 बजकर 20 मिनट पर शुरू होगा।*सूतक व ग्रहण काल में क्या न करें*- ग्रहण से पहले सूतक काल आरंभ हो जाता है। जिस दौरान कई कार्यों को करने की मनाही होती है। सूतक काल में खासकर गर्भवती महिलाओं को खास ध्यान रखना होता है। गर्भवती महिलाएं सूतक काल का प्रारंभ होती ही चाकू एवं छुरी का उपयोग न करें। माना जाता है कि इसका सीधा असर गर्भ में पल रहे बच्चे पर होता है। ना ही सूई धागा का उपयोग करें। सूर्य ग्रहण को नग्न आंखों से कभी नहीं देखें। सभी के लिए सलाह कि इस दौरान खाना न पकाएं न ही पूजा पाठ करें। मंदिर के द्वार भी सूतक काल लगते ही बंद कर दिये जाते हैं।केवल भगवान का मनन व चिंतन करें। अपने धारण किये मंत्रो को सिद्ध करें।पके हुए भोजन में तुलसी के पत्ते और कुशा डालकर रख सकते है🌸🌸 जय जय श्री राधे जय जय श्री राधे जय जय श्री राधे🌸🌸🌸🌸🌸🌹🚩🚩🚩🚩🚩🚩 जय माई की 🌺🚩 🌺🙏🌺

आचार्य मनोज तिवारी सहसेपुर खमरिया भदोही
9005618107 ,  9451280720

शनिवार, 6 जून 2020

यह पांच उपाय करने से घर में निवास करेंगी मां लक्ष्मी

 घर में सुख-समृद्धि बनाए रखने के लिए कई परंपराएं प्रचलित हैं। पुरानी मान्यताओं में बताए गए शुभ काम नियमित रूप से करते रहने से किसी भी स्त्री-पुरुष की किस्मत चमक सकती है। ये हैं ज्योतिष शास्त्र  के वो 5 ऐसे काम, जिनसे शुभ फल मिल सकते......
1. देवी देवताओं पर चढाए गए फूल और हार सूख जाने पर घर में नहीं रहने दें। सूखे हार-फूल को गमलों में या अन्य पेड़-पौधों की जड़ में डाल देना चाहिए।

2. भोजन हमेशा किचन में ही करना चाहिए, इससे राहु के अशुभ प्रभाव कम होते हैं। बेडरूम और ब‌िस्तर पर भोजन करना अशुभ माना जाता है।

3. रोज खाना बनाते समय पहली रोटी गाय के ल‌िए और अंत‌िम रोटी कुत्ते के ल‌िए न‌िकालकर
 रख दें। इससे ग्रहों के अशुभ प्रभाव खत्म हो जाते हैं।
 
4. न‌ियम‌ित तुलसी के पौधे को जल दें और शाम के समय दीपक जलाएं। इससे घर पर हमेशा लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
 
5. पूजा के समय तांबे के बर्तन में जल भरकर रखें और उसे पूजा के बाद घर के सभी कमरों में ये जल तुलसी के या अशोक के पत्तों से छ‌िड़क दें। इससे नकारात्मकता नष्ट होती हैl 


आचार्य मनोज तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही
9005618107

गुरुवार, 4 जून 2020

ब्रह्मा विष्णु और महेश में श्रेष्ठ कौन है

, :       *🙏श्री गणेशाय नम:🙏*    :

           ,     *जय माता दी*


*देव कथा*


*भृगु ऋषि कौन हैं?भगवान विष्णु को लात क्यो मारे ??*

संत कवि रहीमदास जी का बहुत ही प्रचलित दोहा है-
क्षमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात। 
का रहीम हरी का घट्यो, जो भृगु मारी लात।।

अर्थात उद्दंडता करने वाले हमेशा छोटे कहे जाते हैं और क्षमा करने वाले ही बड़े बनते हैं।

महर्षि भृगु ब्रह्माजी के मानस पुत्र थे। उनकी पत्नी का नाम ख्याति था जो दक्ष की पुत्री थी। महर्षि भृगु सप्तर्षिमंडल के एक ऋषि हैं। सावन और भाद्रपद में वे भगवान सूर्य के रथ पर सवार रहते हैं।

एक बार की बात है, सरस्वती नदी के तट पर ऋषि-मुनि एकत्रित होकर इस विषय पर चर्चा कर रहे थे कि ब्रह्माजी, शिवजी और श्रीविष्णु में सबसे बड़े और श्रेष्ठ कौन है? इसका कोई निष्कर्ष न निकलता देख उन्होंने त्रिदेवों की परीक्षा लेने का निश्चय किया और ब्रह्माजी के मानस पुत्र महर्षि भृगु को इस कार्य के लिए नियुक्त किया।

महर्षि भृगु सर्वप्रथम ब्रह्माजी के पास गए। उन्होंने न तो प्रणाम किया और न ही उनकी स्तुति की। यह देख ब्रह्माजी क्रोधित हो गए। क्रोध की अधिकता से उनका मुख लाल हो गया। आँखों में अंगारे दहकने लगे। लेकिन फिर यह सोचकर कि ये उनके पुत्र हैं, उन्होंने हृदय में उठे क्रोध के आवेग को विवेक-बुद्धि में दबा लिया।

वहाँ से महर्षि भृगु कैलाश गए। देवाधिदेव भगवान महादेव ने देखा कि भृगु आ रहे हैं तो वे प्रसन्न होकर अपने आसन से उठे और उनका आलिंगन करने के लिए भुजाएँ फैला दीं। किंतु उनकी परीक्षा लेने के लिए भृगु मुनि उनका आलिंगन अस्वीकार करते हुए बोले-“महादेव! आप सदा वेदों और धर्म की मर्यादा का उल्लंघन करते हैं। 
दुष्टों और पापियों को आप जो वरदान देते हैं, उनसे सृष्टि पर भयंकर संकट आ जाता है। इसलिए मैं आपका आलिंगन कदापि नहीं करूँगा।”

उनकी बात सुनकर भगवान शिव क्रोध से तिलमिला उठे। उन्होंने जैसे ही त्रिशूल उठा कर उन्हें मारना चाहा, वैसे ही भगवती सती ने बहुत अनुनय-विनय कर किसी प्रकार से उनका क्रोध शांत किया।
 इसके बाद भृगु मुनि वैकुण्ठ लोक गए। उस समय भगवान श्रीविष्णु देवी लक्ष्मी की गोद में सिर रखकर लेटे थे।

भृगु ने जाते ही उनके वक्ष पर एक तेज लात मारी। भक्त-वत्सल भगवान विष्णु शीघ्र ही अपने आसन से उठ खड़े हुए और उन्हें प्रणाम करके उनके चरण सहलाते हुए बोले-“भगवन! आपके पैर पर चोट तो नहीं लगी? कृपया इस आसन पर विश्राम कीजिए। भगवन! मुझे आपके शुभ आगमन का ज्ञान न था। 
इसलिए मैं आपका स्वागत नहीं कर सका। आपके चरणों का स्पर्श तीर्थों को पवित्र करने वाला है। आपके चरणों के स्पर्श से आज मैं धन्य हो गया।”

भगवान विष्णु का यह प्रेम-व्यवहार देखकर महर्षि भृगु की आँखों से आँसू बहने लगे। उसके बाद वे ऋषि-मुनियों के पास लौट आए और ब्रह्माजी, शिवजी और श्रीविष्णु के यहाँ के सभी अनुभव विस्तार से कह बताया। उनके अनुभव सुनकर सभी ऋषि-मुनि बड़े हैरान हुए और उनके सभी संदेह दूर हो गए। तभी से वे भगवान विष्णु को सर्वश्रेष्ठ मानकर उनकी पूजा-अर्चना करने लगे।

वास्तव में उन ऋषि-मुनियों ने अपने लिए नहीं, बल्कि मनुष्यों के संदेहों को मिटाने के लिए ही ऐसी लीला रची थी।


आचार्य मनोज तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही
9005618107

कुंडली में छठा स्थान का फलादेश

*पितृ दोष है या नहीं स्वयं जानें*

*हिन्दू धर्म में ज्योतिष को वेदों का छठा अंग माना गया है और किसी व्यक्ति की जन्म-कुण्डली देखकर आसानी से इस बात का पता लगाया जा सकता है कि वह व्याक्ति पितृ दोष से पीडित है या नहीं क्यों कि यदि व्यक्ति के पितृ असंतुष्ट होते हैं, वे अपने वंशजों की जन्म -कुण्डंली में पितृ दोष से सम्बंधित ग्रह-स्थितियों का सृजन करते हैं।*

*भारतीय ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार जन्म-पत्री में यदि सूर्य-केतु या सूर्य-राहु का दृष्टि या युति सम्बंध हो, जन्म-कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में से हो, तो इस प्रकार की जन्म-कुण्डली वाले जातक को पितृ दोष होता है। कुंडली के जिस भाव में ये योग होता है, उससे सम्बंधित अशुभ फल ही प्राथमिकता के साथ घटित होते हैं।*

*उदारहण के लिए यदि सूर्य-राहु अथवा सूर्य-केतु का अशुभ योग- प्रथम भाव में हो, तो वह व्यक्ति अशांत, गुप्त चिंता, दाम्पत्य एवं स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ होती हैं क्योंकि प्रथम भाव को ज्योतिष में लग्न कहते है और यह शरीर का प्रतिनिधित्व करता है।*

*दूसरे भाव में हो, तो धन व परिवार से संबंधित परेशानियाँ जैसे कि पारिवारिक कलह, वैमनस्य व आर्थिक उलझनें होती हैं।*

*तृतीय भाव मे होने पर साहस पराक्रम में कमी भाई बहन से वैमनस्य।*

*चतुर्थ भाव में हो तो भूमि, मकान, सम्पत्ति, वाहन, माता एवं गृह सुख में कमी या कष्ट होते हैं।*

*पंचम भाव में हो तो उच्च विद्या में विघ्न व संतान सुख में कमी होने के संकेत होते हैं।*

*छठे भाव मे होने पर गुप्त शत्रु बाधा पहुँचाते है कोर्ट कचहरी में पड़ने की संभावना बढ़ती है।*

*सप्तम भाव में हो तो यह योग वैवाहिक सुख व साझेदारी के व्योवसाय में कमी या परेशानी का कारण बनता है।*

*अष्टम भाव मे यह योग बनने से पिता से मतभेद पैतृक संपत्ति की हानि।*

*नवम भाव में हो, तो यह निश्चित रूप से पितृदोष होता है और भाग्य की हानि करता है।*

*दशम भाव में हो तो सर्विस या कार्य, सरकार व व्यवसाय संबंधी परेशानियाँ होती हैं।*

*एकादश एवं द्वादश भाव मे होने पर बने बनाए कार्य का नाश आय से खर्च अधिक होने पर आर्थिक उलझने बनती है।उपरोक्तानुसार किसी भी प्रकार की ग्रह-स्थिति होने पर अचानक वाहनादि के कारण दुर्घटना का भय, प्रेत बाधा, ज्वर, नेत्र रोग, तरक्की में रुकावट या बनते कार्यों में विघ्न, अपयश, धन हानि व मानसिक रोगों से सम्बं धित अनिष्ट फल प्राप्तक होते हैं।*

*पितृ दोष दो प्रकार से प्रभावित करता है।*

*अधोगति वाले पितरों के कारण और उर्ध्वगति वाले पितरों के कारण। अधोगति वाले पितरों के दोषों का मुख्य कारण परिजनों द्वारा किया गया गलत आचरण, परिजनों की अतृप्त इच्छाएं, जायदाद के प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोग होने पर, विवाहादि में परिजनों द्वारा गलत निर्णय, परिवार के किसी प्रियजन को अकारण कष्ट देने पर पितर क्रुद्ध हो जाते हैं , परिवार जनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति से नकारात्मक फल प्रदान करते हैं।*

*उर्ध्व गति वाले पितर सामान्यतः पितृदोष उत्पन्न नहीं करते , परन्तु उनका किसी भी रूप में अपमान होने पर अथवा परिवार के पारंपरिक रीति- रिवाजों का निर्वहन नहीं करने पर वह पितृदोष उत्पन्न करते हैं। इनके द्वारा उत्पन्न पितृदोष से व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बिलकुल बाधित हो जाती है , फिर चाहे कितने भी प्रयास क्यों ना किये जाए,कितने भी पूजा पाठ क्यों ना किये जाएँ, उनका कोई भी कार्य ये पितृदोष सफल नहीं होने देता।*

*उपाय ज्ञानी आचार्य द्वारा नारायनबली एवं पितृ गायत्री के सवा लाख जप और इनका दशांश हवन कराने से लाभ मिलता है।अन्य सामान्य उपाय*

*1. सोमवती अमावस्या को (जिस अमावस्या को सोमवार हो) पास के पीपल के पेड के पास जाइये,उस पीपल के पेड को एक जनेऊ दीजिये और एक जनेऊ भगवान विष्णु के नाम का उसी पीपल को दीजिये,पीपल के पेड की और भगवान विष्णु की प्रार्थना कीजिये,और एक सौ आठ परिक्रमा उस पीपल के पेड की दीजिये,हर परिक्रमा के बाद एक मिठाई जो भी आपके स्वच्छ रूप से हो पीपल को अर्पित कीजिये। परिक्रमा करते वक्त :ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करते जाइये। परिक्रमा पूरी करने के बाद फ़िर से पीपल के पेड और भगवान विष्णु के लिये प्रार्थना कीजिये और जो भी जाने अन्जाने में अपराध हुये है उनके लिये क्षमा मांगिये। सोमवती अमावस्या की पूजा से बहुत जल्दी ही उत्तम फ़लों की प्राप्ति होने लगती है। एक और उपाय है कौओं और मछलियों को चावल और घी मिलाकर बनाये गये लड्डू हर शनिवार को दीजिये।*

*2. शनिवार के दिन सूर्योदय से पूर्व कच्चा दूध तथा काले तिल नियमित रूप से पीतल के वृक्ष पर चढ़ाएं।*

*3. सोमवार के दिन आक के 21 फूलों से भगवान शिव जी की पूजा करने से भी पितृ दोष की शान्ति होती है।*

*4. अपने वंशजों से चांदी लेकर नदी में प्रवाहित करने तथा माता को सम्मान देने से परिजन दोष का समापन होता है।*

*5. परिवार के प्रत्येक सदस्य से धन एकत्र करके दान में देने तथा घर के निकट स्थित पीपल के पेड़ की श्रद्धापूर्वक देखभाल करने से दोष से छुटकारा मिलता है।*

*6. पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में विधिवत इमली का बांदा लाकर घर में रखने से पितृ दोष दूर होते हैं।*

*7. अपने इष्टदेव की नियमित रूप से पूजा-पाठ करने तथा कुत्ते को भोजन कराने से दोष का समापन होता है।*

*8. हनुमान जी की पूजा करने तथा बंदरों को चने और केले खाने को दें। भ्राता दोष से मुक्ति मिल जाएगी।*

*9. ब्रह्मा गायत्री का जप अनुष्ठान कराने से पितृ दोष से छुटकारा मिलता है।*

*10. घर की बड़ी-बूढ़ी स्त्री का नित्य चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लें। मातृ दोष दूर हो जाएगा।*

*11. उत्तराफाल्गुनी, उत्तराभाद्रपद या उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में ताड़ के वृक्ष की जड़ को घर ले आएं। उसे किसी पवित्र स्थान पर स्थापित करने से पितृ दोष दूर होता है।*

*12. प्रत्येक मास की अमावस्या को अंधेरा होने पर बबूल के वृक्ष के नीचे भोजन खाने से पितृ दोष नष्ट हो जाता है।*

*13. गाय को पालकर उसकी सेवा करें। मातृ दोष से मुक्ति मिलेगी।*

*14. प्रतिदिन देशी फिटकरी से दांत साफ करने से भगिनी दोष समाप्त हो जाता है।*

*15. किसी धर्मस्थान की सफाई आदि करके वहां पूजन करें प्रभु ऋण से छुटकारा मिल जाएगा।*

*16. वर्ष में एक बार किसी व्यक्ति को अमावस्या के दिन भोजन कराने, दक्षिणा एवं वस्त्र देने से ब्राह्मïण दोष का निवारण होता है।*

*17. अमावस्या के दिन घर में बने भोजन का भोग पितरों को लगाने तथा पितरों के नाम से ब्राह्मïण को भोजन कराने से पितृ दोष दूर हो जाते हैं।यदि छोटा बच्चा पितृ हो तो एकादशी या अमावस्या के दिन किसी बच्चे को दूध पिलाएं तथा मावे की बर्फी खिलाएं।श्राद्ध पक्ष में प्रतिदिन पितरों को जल और काले तिल अर्पण करने से पितृ प्रसन्न होते हैं तथा पितृ दोष दूर होता है।*

*18. सात मंगलवार तथा शनिवार को जावित्री और केसर की धूप घर में देने से रुष्ट पितृ के प्रसन्न होने से पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है।*

*19. अपने घर से यज्ञ का अनुष्ठान कराने से स्वऋण दूर होता है।*

*20. प्रतिदिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठकर सूर्यदेव को नमस्कार करके यज्ञ करने से पितृ दोष से छुटकारा मिल जाता है।*

*21. नाक-कान छिदवाने से भागिनी दोष का निवारण होता है।*

*22. देशी गाय के गोबर का कंडा जलाकर उसमें नित्य काले तिल, जौ, राल, देशी कपूर और घी की धूनी देने से पितृ दोष का समापन हो जाता है।*

*23. बेटी को स्नेह करने तथा चांदी की नथ पहनाने से भगिनी दोष से मुक्ति मिल जाती है।*

*24. भिखारी को भोजन और धन आदि से संतुष्ट करें। भ्राता दोष दूर हो जाएगा।*

*25. पशु-पक्षियों को रोटी आदि खिलाने से सभी प्रकार के दोषों का शमन हो जाता है।*

आचार्य मनोज तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही
9005618107

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र जप विधि

सशंखचक्रं सकिरीटकुण्डलं सपीतवस्त्रं सरसीरुहेक्षणं। संहार वक्षं स्थलकौस्तुभश्रियं नमामि विष्णुं शिरसा चतुर्भुजं।।
मूल मंत्रः- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।।
विनियोग : अस्य श्रीद्वादशाक्षर श्रीकृष्णमंत्रस्य नारद ऋषि गायत्रीछंदः श्रीकृष्णोदेवता, बीजं नमः शक्ति, सर्वार्थसिद्धये जपे विनियोगः। 
ऋष्यादि न्यास पंचांग न्यास नारदाय ऋषभे नमः शिरसि। हृदयाय नमः। गायत्रीछन्दसे नमःमुखे। नमो शिरसे स्वाहा। श्री कृष्ण देवतायै नमः, हृदि भगवते शिखायै वषट्। बीजाय नमः गुह्ये। वासुदेवाय कवचाय हुम्। नमः शक्तये नमः, पादयोः। नमो भगवते वासुदेवाय अस्त्राय फट्।'
 मन्त्र : ''ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय'' इस मन्त्र का बारह लाख जप करने से पुरश्चरण होता है। जप का दशांश हवन हवन का दशांश तर्पण तर्पण का दशांश मार्जन और मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। तब जाकर मंत्र प्रभावी होता है।
 दाम्पत्य जीवन एवं परिवारिक माहौल सुखमय रहता है। इस मन्त्र का नियमित जप करने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। गुरू—मुख से दीक्षा लेकर भगवान विष्णु के स्वरूप का ध्यान करके पूजन व जप करना शुभ होता है। पुराणों कहा जाता है। कि जिस भगवान के मंत्र का आप जप कर रहे है जप करते समय उनके स्वरूप का ध्यान करना चहिए अन्यथा उस जप का फल नहीं मिलता है। मंत्र के विधान तो और वृहद हैं । पर संक्षिप्त में इस विधि से भी जप किया जा सकता है।
🚩🌺 जय माई की 🌺🚩
आचार्य मनोज तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही
9005618107

सोमवार, 1 जून 2020

राहू का विशेष योग और फल

🚩🌺🌺 जय माई की 🌺🌺🚩
राहू के साथ युति के कुछ विशेष प्रभावी योग

👉 यदि मेष वृष या कर्क राशि का राहु तीसरे छठे अथवा ग्यारहवें भाव में हो तो यह राहु अनेक तो फलों का नाश करेगा।

👉 यदि केंद्र में राहु, त्रिकोण, 1,4,7,10,5,9वे भाव में हो और केंद्रेश या त्रिकोणेश से संबंध रखता हो तो यह राजयोग प्रदान कर देता है।

👉 यदि दसवें भाव में राहु हो तो यह राहु नेतृत्व शक्ति प्रदान करता है।

👉यदि सूर्य चंद्र के साथ राहु हो तो यह राहु इन की शक्ति को कम करता है।

👉जिस जातिका के पंचम भाव में राहु होता है उस जातिका का मासिक धर्म अनियमित होता है जिस कारण से जातिका को संतान होने में परेशानी हो सकती है।

👉यदि पंचम भाव में राहु शुक्र की युति हो तो वह जातिका योन रोग अथवा प्रसव रोगों से ग्रसित होती है।

👉यदि पंचम भाव में कर्क वृश्चिक व मीन राशि हो और राहु शुक्र की युति उसमें हो तो जातिका प्रेम जाल में फंस जाती है।

👉 यदि राहु के साथ शनि और सूर्य का प्रभाव सप्तम भाव से संबंध घटकों पर हो तो अशुभ फलों में और तेजी आ जाती है।

👉 यदि किसी कुंडली में राहु शनि की युति हो तो शनि का प्रभाव दोगुना हो जाता है।

👉यदि अष्टम भाव में मेष कर्क वृश्चिक या मीन राशि हो और उसमें राहु स्थित हो तो जातिका की शल्यक्रिया अवश्य होती है।

👉 सप्तम भाव में राहु शनि तथा मंगल की युति हो तो दांपत्य का जीवन कष्टमय होता है।

👉 यदि अष्टम भाव में शनि राहु वह मंगल हो तो उस जातक के 90 परसेंट तलाक की संभावना होती है अथवा जीवन भर मतभेद रहते हैं।

👉 यदि मेष या वृश्चिक राशि में आठवें भाव में या दूसरे भाव में राहु पाप ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट हो तो मनुष्य का जीवन कस्टमय होता है।

👉 यदि पंचम भाव में राहु मेष या वृश्चिक राशि का हो या मंगल की दृष्टि हो तो उस मनुष्य की संतान की हानि होती है।

👉 यदि राहु गुरु की युति हो तो जातिका का एक बार गर्भपात होता है।

👉 सप्तम भाव में स्थित राहु मनुष्य के जीवन को कस्टमय कर देता है।

👉 यदि दूसरे भाव में धनु राशि का राहु हो तो जातिका धनवान हो जाती है।

👉 ग्यारहवें भाव में राहु शुक्र की युति हो तो जातक का दांपत्य जीवन बहुत दुखी होता है।

👉 यदि शुक्र अथवा गुरु की राहु पर दृष्टि हो तो जातक का अंतर जातीय एवं प्रेम विवाह करती है।

👉 यदि दूसरे भाव में राहु हो तो उस जातिका का विवाह बहुत ही कठिनाई से होता है।

👉 यदि आठवें भाव में या ग्यारहवें भाव में राहु हो तो जातिका का विवाह तो हो जाता है किंतु दांपत्य जीवन कष्टप्रद होता है अथवा अलगाव या तलाक की आशंका अधिक होती है।

👉 राहु की दृष्टि सप्तम भाव सप्तमेश मंगलवार शुक्र पर हो तो ऐसी जातिका अंतरजातीय विवाह करती है।

राहु से युति मैं दांपत्य जीवन का रहस्य बतलाया है।

आचार्य मनोज तिवारी
सहसेपुर खमरिया भदोही
9005618107